अमरावती

सिपना नदी में लगा प्लास्टिक कचरे का ढेर

ग्राम पंचायत व व्याघ्र प्रकल्प की स्वच्छता मुहिम को ठेंगा

* वन्यजीवों का अस्तित्व खतरे में
परतवाडा/दि.6- जहां एक ओर कल बडी धूमधाम से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया. वहीं दूसरी ओर मेलघाट की मुख्य जलवाहिनियों में से एक रहनेवाली सिपना नदी के बहाव क्षेत्र में सेमाडोह के पास प्लास्टिक की प्रयोग में लायी जा चुकी बोतलों का ढेर फेंक जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. ग्राम पंचायत व व्याघ्र प्रकल्प द्वारा बडी गंभीरतापूर्वक स्वच्छता अभियान चलाये जाने के बावजूद यह घटना घटित हुई. जिससे क्षेत्र में रहनेवाले वन्यजीवों का अस्तित्व खतरे में कहा जा सकता है.
बता दें कि, चिखलदरा की तरह ही व्याघ्र प्रकल्प में पर्यटन स्थल के तौर पर प्रसिध्द रहनेवाले मध्यप्रदेश की कुकरूघाटी से सिपना नदी का उगम होता है और अति दुर्गम रहनेवाले व्याघ्र प्रकल्प के घने जंगल से होकर आगे बढनेवाली सिपना नदी अपने साथ कई नदी-नालों को समाहित करते हुए आगे चलकर विशालकाय रूप धारण करती है. किंतु इस नदी को भी अब प्लास्टिक के कचरे का ग्रहण लग गया है, क्योंकि जिन-जिन इलाकों से यह नदी शहरी क्षेत्र या इंसानी बस्ति के आसपास से होकर गुजरती है, उन इलाकों में इस नदी के जलपात्र में बडे पैमाने पर प्लास्टिक और कोल्ड्रींक की बोतल का कचरा पाया जाता है. जिससे पानी के प्रवाह में तो बाधा पैदा होती ही है, साथ ही पर्यावरण का भी नुकसान होता है. इसके अलावा वन्यजीवों की जान के लिए भी खतरा पैदा होता है.

* वन्यजीवों को खाद्यपदार्थ देने पर बंदी
व्याघ्र प्रकल्प में पर्यटकों द्वारा वन्य प्राणियों को किसी भी तरह का खाद्यपदार्थ नहीं दिया जा सकता. बल्कि ऐसा करने पर पाबंदी लगायी गई है और इसे लेकर व्याघ्र प्रकल्प में जगह-जगह पर फलक लगाये गये है. साथ ही व्याघ्र प्रकल्प में कहीं पर भी किसी भी तरह के प्लास्टिक पैकेट, प्लास्टिक बोतल व कचरा फेंकने पर भी पाबंदी है. लेकिन इसके बावजूद लोगबाग इन क्षेत्रों में घुमने हेतु आने पर यहां वन्यप्राणियों, विशेषकर बंदरों को प्लास्टिक पैकेट में बंद खाद्यपदार्थ खाने हेतु देते है. साथ ही बिसलेरी एवं कोल्ड्रींक की प्लास्टिक की बोतलें भी यहां फेंकते है. जिससे पूरे परिसर में जगह-जगह पर कचरा फैला दिखाई देता है.

*वन्यजीवों की जान खतरे में
सेमाडोह के निकट सिपना नदीपात्र में पुल के नीचे प्लास्टिक का कचरा फेंके जाने का मामला सामने आया है. अगले एक सप्ताह में बारिश का मौसम शुरू हो जायेगा और नदी में पानी का बहाव काफी तेज रहेगा. ऐसे में यह पूरा कचरा अतिदुर्गम व अति संरक्षित क्षेत्र के जंगलों की ओर बहकर चला जायेगा. इन दिनों शहरी क्षेत्र में जानवरों व मवेशियों के पेट से बडे पैमाने पर प्लास्टिक निकल रहा है, जिसकी वजह से कई पालतु मवेशियोें की जान भी जा चुकी है. ठीक उसी तरह घने जंगलों में रहनेवाले वन्य प्राणियों की जान पर भी अब खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में वन्यप्राणियों के अस्तित्व को लेकर चिंता जताई जा रही है.

* आखिर जिम्मेदारी किसकी?
सेमाडोह ग्राम पंचायत तथा वनविभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा विगत अनेक दिनों से इस परिसर में पर्यटकों द्वारा जगह-जगह फेंके गये प्लास्टिक कचरे को संकलित करने का अभियान चलाया गया. यह अभियान लगातार जारी रहने के दौरान ही विगत दिनों सिपना नदी के जलपात्र में किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा प्लास्टिक के कचरे का ढेर लाकर फेंका गया. ऐसे में संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग पर्यावरण प्रेमियों द्वारा की जा रही है. साथ ही यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि, आखिर इतने बडे पैमाने पर प्लास्टिक बोतलों का ढेर यहां लाकर फेंकने के पीछे किसका हाथ हो सकता है. माना जा रहा है कि, परिसर में ही बोतल बंद पानी व कोल्ड्रींक का व्यवसाय करनेवाले किसी दुकानदार द्वारा अपने यहां जमा हुई खाली बोतलों के ढेर को यहां लाकर फेंक दिया गया. क्योंकि किसी पर्यटक द्वारा इतने बडे पैमाने पर इतना सारा कचरा लाकर नहीं फेंका जा सकता.

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