पोला पर्व : किसानों द्वारा बठाडी, दोर और एठन व पायल की मांग अधिक
मिट्टी के पंढरपुरी बैलजोडी की डिमांड बढी
* बैलों से झूंड एक हजार रुपए से लेकर ढाई हजार रुपए तक
* बाजार में जमकर होने लगी खरीददारी
अमरावती/दि.31– किसानों के सबसे बडे त्यौहार के रुप में पोला पर्व माना जाता है. पोला निमित्त किसान अपने बैलों को सजाने के लिए बाजारों से आकर्षक साहित्य की खरीददारी करते है. साथ ही ताना पोला निमित्त सभी परिवार के सदस्य मिट्टी के बैल ले जाकर घर में पूजा करते है. इस वर्ष भारी वर्षा होने के बावजूद बाजार में बैलो साहित्य खरीदी करने किसानों की भारी भीड है. बठाडी, दोर, बोरका और एठन सहित बैलो को सजाने रंगो की मांग अधिक है. साथ ही मिट्टी के पंढरपुरी बैल की डिमांड भी अधिक है.
शहर के इतवारा बाजार रोड स्थित पाटणवाला हार्डवेयर स्टोअर के संचालक मो. हुसैन और हुसैनभाई ने बताया कि, गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष पोला पर्व निमित्त बाजार में चहल-पहल थोडी कम है. लेकिन किसान त्यौहार निमित्त बाजार में आए बठाडी, दोर, बोरका, एठन, सिंग बोंडा, घुंगरु माला, पायल, मनका माला, सूत गुंडी, एसन, झूल और कलर की खरीददारी कर रहे है. 20 रुपए से लेकर 300 रुपए तक सभी साहित्य बाजार में उपलब्ध है. बैलों का झूल एक हजार रुपए से लेकर ढाई हजार रुपए तक उपलब्ध है. किसान बडे उत्साह के साथ अपने बैलो को सजाने के लिए इन साहित्य की खरीदी कर रहे है. मो. हुसैन ने यह भी बताया कि, गत वर्ष पोला पर्व निमित्त बाजार में काफी रौनक थी. लेकिन इस वर्ष बारिश अधिक होने और किसानों का नुकसान भी अधिक होने से चहल-पहल थोडी कम है. बैलों के साहित्य के भाव गत वर्ष की तरह ही है. सबसे महत्वपूर्ण माने जानेवाले किसानों के इस त्यौहार निमित्त बाजार में आज से खरीददारी में तेजी आई है, ऐसा भी उन्होंने कहा.
इसी तरह गांधी चौक में मिट्टी के बैलों की बिक्री करनेवाले व्यवसायी मंगेश ज्ञानेश्वर भांगे ने बताया कि, इस बार पंढरपुरी बैलजोडी की डिमांड अधिक है. यह बैल 60 रुपए से लेकर 700 रुपए जोडी मिलते है और घर के शोकेस में सजाकर रखने के लिए बडे बैलो की जोडी 1500 रुपए से लेकर दो हजार रुपए तक है. इस पंढरपुरी बैल में फाईबर के सिंग रहते है. इसी तरह बच्चों के लिए तैयार किए जानेवाले मिट्टी के बैल 50 रुपए से लेकर 150 रुपए तक है. पोला पर्व के चार दिन पूर्व बाजार सजने लगते है. पहले इन मिट्टी के बैलों को तैयार करने के लिए वडाली की खदान से चिकनी मिट्टी लाई जाती थी. लेकिन खदान बंद होने से अब मालू मिट्टी बाहर से लाई जाती है. त्यौहार के दो माह पूर्व से यह मिट्टी के बैल तैयार करना शुरु किया जाता है, ऐसा भी मंगेश भांगे ने कहा.