‘संविधान’ द्बारा हमें राजनीति, आर्थिक व सामाजिक समानता प्रदान हुई
डॉ. आंबेडकर ने भारतीय संविधान के रूप में हमें एक धरोहर प्रदान की
* न्यायमूर्ति भूषण गवई का प्रतिपादन
* अमरावती जिला वकील संघ द्बारा ‘स्व. एड. डी. आर. सिन्हा स्मृति व्याखानमाला’ का आयोजन
अमरावती/ दि. 25-डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने देश को भारतीय संविधान के रूप में एक धरोहर प्रदान की है. उस समय जिन समिति सदस्यों ने इसका निर्माण किया. उन्होंने राजनीतिक समानता के साथ समाज में आर्थिक व सामाजिक समानता निर्माण हो सके, इसका पूरा प्रयास किया. जिसके कारण अन्य पडोसी देशों के मुकाबले भारत में अमन, शांति आज भी बरकरार है. आर्थिक और सामाजिक रूप से देश अस्थिर नहीं है. यह मार्गदर्शन पर उदबोधन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति भूषण गवई ने किया.
स्थानीय डॉ. पंजाबराव देशमुख वैद्यकीय महाविद्यालय के छत्रपति शिवाजी महाराज सभागृह में सोमवार को अमरावती जिला वकील संघ की ओर से स्व. एड. डी. आर. सिन्हा स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया.
इस अवसर पर वे मार्गदर्शक के रूप में बोल रहे थे. कार्यक्रम में अमरावती जिला व सत्र न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहन देशपांडे के साथ जिला वकील संघ के अध्यक्ष तथा कार्यक्रम अध्यक्ष एड. शिरिष जाखड के साथ सचिव एड. उमेश इंगले, ग्रंथालय सचिव एड. अभिषेक निस्ताने, उपाध्यक्ष एड. नीता तिखिले, एड. रसिका उके,एड. सुदर्शन पिंपलगांवकर, एड. पीयूष डहाके, एड. पंकज यादगिरे, एड. कुशल करवा, एड. किरण यावले, एड. भूमिका वानखडे आदि प्रमुखता से उपस्थित थे.
न्यायमूर्ति भूषण गवई ने कहा कि भारतीय संविधान अनुसार न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता, एकता, अखंडता की सीख के साथ प्रजासत्ताक गणराज्य प्रदान किया है. भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है. इस राज्य के लिए सबसे उपर भारतीय संविधान है. उनसे अधिक किसी को भी महत्व नहीं है. भारतीय संसद, न्याय व्यवस्था, कार्यकारी मंडल यह तीन आधार बनाये गए हैं. किंतु इन तीनों कडियों को भारतीय संविधान में किसी भी प्रकार का बदलाव करने का विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है. भारतीय संसद को भी कई बार भारतीय संविधान के ढांचे में समयानुसार बदलाव करने हेतु न्याय व्यवस्था की सहायता लेनी पडी है. यह संविधान की रचना का मूलाधार है.
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने भारतीय संविधान के मूल ढांचे को बदले बिना कुछ विषयों को समय एवं परिस्थिति अनुसार दृष्टि ने लचीला रखा है. तो कुछ हिस्सों का लचीलापन खत्म कर दिया. जिसके कारण ऐसे विषयों में बदलाव की दृष्टि से भारतीय संसद में लिए गए निर्णय को न्याय व्यवस्था में चुनौती दी गई. तत्कालीन न्यायधीश ने इन विषयों का अध्ययन कर उसे जनता की दृष्टि से हितकारी व अहितकारी पर अपना फैसला सुनाया. इस अवसर पर न्यायमूर्ति भूषण गवई ने कई केसेस की जानकारी भी दी.
जैसे की इंंदिरा गांधी व राजनारायण, एस. वी. गुप्ता व केंद्र सरकार, केशवानंद भारती जैसे विषयों के माध्यम से उन्होंने आगे कहा कि भारत के पडोसी देशों में आज भी आराजकता है. लेकिन भारत में ऐसा नहीं है. यहां पुरूषों की तरह महिलाओं को भी उचित सम्मान मिलता है. यही कारण है कि, वर्तमान में आदिवासी समाज के नेतृत्व करने वाली देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस पद पर कार्य करने का मौका मिला. उस समय वल्लभभाई पटेल, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू केशवानंद भारती तथा भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने जिस प्रकार का कार्य कर भारतीय संविधान की रचना की है. उसके द्बारा सभी को हर प्रकार के अधिकार, कर्तव्य देने का प्रयास किया है. यही कारण है कि भारत अन्य देशों के मुकाबले, अलग और शांतिप्रिय देश बना है. यह बातें कहते हुए संविधान की कुछ धाराएं तथा उनकी विशेषताओं पर उन्होंने प्रकाश डाला.
कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्वलन तथा प्रतिमा पूजन से की गई. इस अवसर पर मान्यवरों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया. कार्यक्रम की प्रस्तावना जिला वकील संघ के अध्यक्ष तथा कार्यक्रम अध्यक्ष एड. शिरिष जाखड ने रखी. इस अवसर पर जिला व सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मोहन देशपांडे ने अपने समयोचित विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन उपाध्यक्षा एड. नीता तिखिले तथा आभार, ग्रंथालय सचिव एड. अभिषेक निस्ताने ने माना. कार्यक्रम में डॉ. पंजाबराव देशमुख विधि महाविद्यालय की प्राचार्या एड. वर्षा देशमुख, एड. जे. वी. पाटिल पुसदेकर द्बारा न्यायमूर्ति भूषण गवई का शाल, श्रीफल देकर सत्कार किया गया. इसके अलावा महाराष्ट्र गोवा बार एसोसिएशन के आशीष देशमुख ने भी न्यायमूर्ति भूषण गवई का सत्कार किया.