गांव की जनसंख्या 1700, गांव में आम के पेड 2000
माखला गांव में 200 से अधिक आम वृक्षों की अमराई
अमरावती/दि.30– सन 1947 में अंग्रेज भारत छोडकर चले गए. लेकिन जाते समय वे अपने द्वारा बनाई गई कई इमारतो के साथ ही उद्योगों, रेलवे, पुल जैसी निशानियों को अपने पीछे भारत में ही छोड गए. इसी के तहत सतपुडा पर्वत श्रृंखला में समुद्र सतह से 974 मीटर की उंचाई पर बसे माखला गांव में 200 से अधिक आम वृक्षों की अमराई को भी अंग्रेजो की निशानी कहा जा सकता है. विशेष उल्लेखनीय यह है कि, महज 1700 की जनसंख्यावाले माखला गांव में इस समय आम के पेड दो हजार से अधिक है. ऐसे में घनी अमराई वाले इस दृश्य को देखने हेतु पर्यटकों का माखला गांव आना बेहद जरुरी हो चला है.
* माखला के निसर्ग सौंदर्य ने लुभाया था अंग्रेजो को
मेलघाट के बेहद उंचे इलाको में से एक रहनेवाले माखला गांव को देखकर अंग्रेज भी विस्मित हो गए थे और उन्होंने विविध फल वृक्षों से बहारदार रहनेवाले इस गांव में आम के 200 से अधिक पेड लाकर लगाए थे. जिसके चलते माखला गांव में शानदार अमराई साकार हुई.
* मन लुभावन अमराई
चिखलदरा तहसील में स्थित माखला गांव अपने आप में बेहद अति दुर्गम गांव है. यदि पर्यटन की दृष्टि से इस गांव का विकास होता है तो यहां पर अमराई देखने हेतु बडी संख्या में पर्यटक निश्चित तौर पर आएंगे, ऐसा विश्वास माखला गांववासी व्यक्त करते है.
* ऐसे आए थे माखला में अंग्रेज
माखला गांव में खुमानसिंह नामक राजा का राज्य था और सन 1857 में हुए राष्ट्रव्यापी गदर के दौरान महान स्वाधिनता सेनानी तात्या टोपे ने माखला गांव स्थित खुमानसिंह राजा के रजवाडे में आसरा लिया था. जिसकी जानकारी अंग्रेजो को मिल गई थी और अंग्रेजी फौज ने माखला गांव की ओर बढना शुरु कर दिया. जिसकी भनक लगते ही तात्या टोपे माखला गांव से भाग निकले. वहीं इसके बाद तात्या टोपे की तलाश में माखला गांव पहुंचे अंग्रेजो ने तात्या टोपे की मदद करने के इल्जाम में इस परिसर के 150 कोरकु आदिवासियों को फांसी पर लटका दिया. उस समय से ही माखला गांव से कुछ ही दूरी पर स्थित खाई को भूतखोरा के नाम से पहचाना जाता है.