अमरावती

सरकारी अधिकारियों का वज्झर बालगृह में अभ्यास दौरा

118 आईपीएस अधिकारियों ने जाना मतिमंदों का जीवन संघर्ष

परतवाडा /दि.21– स्व. अंबादास पंत वैद्य मतिमंद-मूकबधिर वज्झर बालगृह महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि देश में एक मात्र ऐसा बालगृह है, जो पैदा होते ही अपनों के द्वारा ठुकरा देने वाले बच्चों की परवरिश करता है. इस बालगृह में न केवल बच्चों की परवरिश की जाती है, बल्कि उन्हें पढ़ायालिखाया जाता है. वयस्क होने पर लड़के और लड़कियों का विवाह भी किया जाता है. उन्हें सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास किया जाता है. यह सब कार्य महान समाजसेवक शंकर बाबा पापळकर कर रहे हैं. वज्झर स्थित इस बालगृह में बुधवार को 118 अधिकारियों ने भेंट देकर अभ्यास दौरा किया. यह सभी अधिकारी वनामती नागपुर वसंतराव नाईक राज्य कृषि विस्तार व्यव्यस्थापन प्रशिक्षण संस्था से आए थे.

इन प्रशिक्षणार्थी अधिकारियों ने एमपीएससी जैसी बड़ी पदवी हासिल की है. 2021 की बैच के इन अधिकारियों का प्रशिक्षणकाल चल रहा है. इनमें 36 युवतियां अधिकारी हैं, बाकी युवा अधिकारियों का समावेश है. वज्झर बालगृह में पहुंचे इन अधिकारियों का शंकर बाबा पापळकर ने गर्मजोशी से स्वागत किया. इस बालगृह की छात्रा गांधारी ने शानदार स्वागत गीत गया. गांधारी वही दृष्टिहीन छात्रा है, जिसे संगीत में लता मंगेशकर पुरस्कार मिला है. शंकरबाबा पापळकर ने सभी अधिकारियों को अपनी ओजस्वी वाणी और शानदार शायराना अंदाज में वज्झर बालगृह और यहां पलने वाले मूकबधिर बच्चों के संदर्भ में जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि, तहसील के वज्झर स्थित स्व. अंबादास पंत वैद्य लावारिस दिव्यांग अनाथालय में वर्ष 1992 से मतिमंद, मूकबधिर नेत्रहीन व बहुविकलांग बच्चों के पुनर्वसन का काम जारी है. मातापिता व घर के लोगों को जब पता चलता है कि, बच्चा विकलांग है, तो उसे मंदिर की सीढ़ियों, रेलवे स्टेशन, सूनसान जगह या फिर किसी बस स्टैंड, कचरा कुंडी में लावारिस छोड़ देते हैं. ऐसे मूकबधिर अनाथ बच्चों को पुलिस बालकल्याण समिति के निर्देशों पर वज्झर बालगृह के संचालक शंकरबाबा पापळकर के हवाले कर देती है. जिनका यहां आजीवन पुनर्वसन किया जाता है. शंकरबाबा पापळकर ने दिव्यांग वज्झर मॉडल के संदर्भ में अधिकारियों को विस्तार से जानकारी दी और बताया कि, अब तक 30 लावारिस दिव्यांग युवक- युवतियों के विवाह करवाए हैं. 12 बच्चों को सरकारी नौकरी दिलाई है.

इसके अलावा दृष्टिहीन गांधारी ने संगीत में लता मंगेशकर पुरस्कार प्राप्त किया है. अन्य नेत्रहीन युवतियों ने एमपीएससी की परीक्षा दी है. यहां के लावारिस, दिव्यांग तथा मतिमंद बच्चों का सिर्फ पालन-पोषण ही नहीं, बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा देकर अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए सक्षम बनाने की जिम्मेदारी शंकर बाबा पापळकर ने निभायी है. 15 हजार पौधों से हरा-भरा परिसर बनाया 5 दिवसीय अभ्यास दौरे पर वज्झर आश्रम आए अधिकारियों की टीम इस परिसर का प्राकृतिक सौंदर्य देख कर आश्चर्यचकित रह गई. उन्होंने बताया गया कि, इस परिसर में विद्यार्थियों ने 15 हजार पौधे लगाए थे, जो आज हरे भरे वृक्ष के रुप में नजर आ रहे हैं. आज यह परिसर हरा भरा और पर्यावरण की सुरक्षा का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है. इस बालगृह की और एक खासियत यह है कि, इस बालगृह ने सरकार द्वारा दिया गया 30 लाख रुपए कर्मचारी अनुदान वापस लौटाया है. इस दिव्यांग बालगृह को वज्झर मॉडल के तौर पर 1913 में दिल्ली में मान्यता प्रदान की गई. इस वज्झर मॉडल को समझकर तथा दिव्यांगों के जीवन का अध्ययन करने के लिए अब तक राज्य के 12 हजार सरकारी अधिकारियों ने भेट दी है. जिलाधीश, फॉरेस्ट अधिकारी, एसडीओ, आरटीओ, शिक्षणाधिकारी, सचिवालय में कार्यरत 70 प्रतिशत अधिकारी यहां आकर दिव्यांगो की संघर्ष भरी जिंदगी का अध्ययन कर गए है. बुधवार को वानामती नागपुर से आए 118 सरकारी अधिकारियों ने अध्ययन किया. इन अधिकारियों में मंत्रालय के कक्ष अधिकारी, बीडीओ, तहसीलदार, आरटीओ, शिक्षाधिकारी तथा पुणे की यशदा संस्था से पंचावला ग्रेड 1 के अधिकारियों का समावेश है.

हर अधिकारी ने दत्तक लेने की शपथ ली
शंकरबाबा पापळकर ने अधिकारियों से कहा है कि, इस बालगृह में रहनेवाले बेसहारा बच्चों का उद्धार सहयोग से ही किया जा सकता है. आए हुए सभी अधिकारियों से निवेदन किया है कि, कम से कम बालगृह के एक बच्चे को हर एक अधिकारी गोद लेकर उनका उद्धार करें, एसी शपथ दिलवाई. सभी अधिकारियों ने यह शपथ ली कि, वे बच्चों के भविष्य व हित के लिए प्रयासरत रहेंगे. इस महत्वपूर्ण दौरे पर आए सभी अधिकारियों ने वज्झर बालगृह में निवासरत बच्चों के रहन-सहन, खान-पान, दिनचर्या और उनकी समस्या को समझा. साथ ही आश्वासन दिया कि, वे शासन स्तर पर प्रयास करेंगे.

नया कानून बनाने सरकार को देंगे सुझाव
शंकरबाबा पापळकर ने इन अधिकारियों को बताया कि, कानून के अनुसार इस बालगृह में पलनेवाले बच्चों को 18 वर्ष की उम्र होने के बाद अन्यत्र रहना पडता है, जो इन बच्चों के लिए कठिन समय होता है. इसलिए आप लोग सरकार को नयाकानून बनाने की सलाह दें. इन अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि, वे पूरा प्रयास करेंगे और सरकार को सुझाव भी देंगे कि, 18 वर्ष उम्र के पूरे करने के बाद अनाथालय के बच्चों को वहीं बालगृह में रहने का अधिकार दिया जाए.

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