तिल और गुड के रेट स्थिर, संक्रांति मिठास भरी
हितेश केडिया ने बताया क्वॉलिटी माल उपलब्ध
* लड्डू और बर्फी सहित अनेक व्यंजन बनते हैं
अमरावती /दि. 21- संक्रांति का पर्व अगले माह मनाया जाना है. उससे पहले मार्केट में तिल और गुड की डिमांड बढ गई है. आम लोगों के लिए राहत की बात है कि, इस बार तिल से बने आइटम की मिठास बढेगी. क्योंकि, दोनों ही चीजों के दाम स्थिर है. अच्छी सफेद तिल केवल 160 रुपए और क्वॉलिटी गुड 45 रुपए किलो में उपलब्ध है, यह जानकारी गेट के भीतर स्थित हितेश केडिया किराणा व्यवसायी ने दी.
उन्होंने बताया कि, प्रत्येक सीजन के हिसाब से सभी वस्तुएं उपलब्ध है. इसी कडी में गुजरात से आनेवाली बीबी और एबी दोनों प्रकार की सफेद तिल्ली भरपूर मात्रा में उपलब्ध है. दाम 160-165 रुपए प्रति किलो है. जिससे ग्राहकी अच्छी हो रही है. अंकापल्ली गुड भी 45 रुपए से लेकर 55 रुपए किलो उपलब्ध है. जिससे तिल के लड्डू, बर्फी, पट्टी और अन्य व्यंजन खूब बनाए जा रहे हैं.
* लड्डू की डिमांड
सर्दियों के दिनों में तिल से बनी वस्तुओं की मांग बढ जाती है. तिल में तेल और उसकी तासीर गर्म होने से बडे बुजुर्ग लड्डू, तिल पापडी, बर्फी, ुतिलकूटा खाने की सलाह देते हैं. यहीं परंपरा भी रही है. मकर संक्रांति पर महाराष्ट्र में एक-दूसरे को तिलगुड देने की सुंदर परंपरा है. जिससे मार्केट में अभी से ही तिल की डिमांड बढ जाने की जानकारी भी हितेश केडिया ने दी.
* तिल पापडी और गजक की सेल बढी
राजस्थान और गुजरात से मंगाई जाती तिल पापडी और गजक की सेल बढ जाने की जानकारी विक्रेता श्यामसुंदर जोशी ने दी. उन्होंने बताया कि, खास ब्यावर से मंगाई गई मशहूर गजक मात्र 400 रुपए किलो में उपलब्ध है. उसी प्रकार तिल पापडी के 200, 400, आधा किलो और एक किलो के पैकिंग में पैकेट उपलब्ध है. जोशी ने कहा कि, गत पखवाडे भर से गजक की सेल बढ गई है. अमरावती के लोग ब्यावर की गजक पसंद करते हैं.
* रेवडी और लड्डूओं की ऑर्डर
शहर के मशहूर उपाध्याय घेवर फिनी वर्क्स के संचालक रामेश्वर उपाध्याय ने बताया कि, तिल्ली की अनेक आयटम के ऑडर्स प्लेस हो रहे हैं. उनके यहां लड्डू के साथ ही रेवडी और तिलपापडी एवं घेवर फिनी तो उपलब्ध है ही. उपाध्याय ने बताया कि, अमरावती में तिल के पकवान पसंद करनेवालों की संख्या काफी है. सभी तरफ डिमांड रहती है. रेवडी खास राजस्थानी अंदाज में बनाई जाती हैं. इसलिए सभी काफी पसंद करते हैं. उल्लेखनीय है कि, घेवर फिनी का भी संक्रांति पर सीजन रहता है. राजस्थानी समाज में घेवर फिनी के पकवान खाए जाते हैं. एक-दूसरे को उपहार में भी देने की प्रथा है.