प्रतिनिधि/ दि.२४ अमरावती – न्यायिक अधिकारी व उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ अदालत की अनुमति के बगैर दोषारोपपत्र दायर करने के लिए पुलिस विभाग पर पाबंदी लगाई है, ऐसे आदेश मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ति झेड.ए.हक व एस.मोडक ने जारी किए है. वरुड पुलिस थाने में दर्ज शिकायत के अनुसार आसिन न्यायिक अधिकारी व उनके परिवार वाले पीडिता को विवाह के बाद दहेज की मांग को लेकर शारीरिक व मानसिक रुप से प्रताडित करते थे. पीडिता जलगांव की रहने वाली है. उसका २०१८ में संबंधित परिवार में विवाह हुआ था. इसके पश्चात वह पति के साथ वरुड तहसील में रहने के लिए आयी. विवाह के ठिक बाद पति और उसके परिजन दहेज की मांग को लेकर प्रताडित करते थे. महिला ने वरुड पुलिस थाने में शिकायत दी, जिसमें कुल ६ व्यक्तियों का समावेश रहा. महिला की शिकायत पर सभी ६ आरोपियों के खिलाफ दफा ३७७, ५९८ अ, ३२३, ५०४, ५०६ व ३५ के तहत अपराध दर्ज किया. पीडिता ने शिकायत में यह भी कहा कि उसके साथ पति ने जोरजबर्दस्ती अप्राकृतिक कृत्य किया. परिवार के अन्य सदस्य गालिगलौज और बदसलुखी करने का आरोप भी महिला ने लगाया था. न्यायिक अधिकारी व उनके परिवार की ओर से एड.परवेज मिर्जा ने उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ में एफआईआर खारिज करने की याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान अदालत में आरोपियों की ओर से एड.परवेज मिर्जा ने दलीले पेश करते हुए आरोपों को झूठा साबित किया, इसपर अदालत ने उपरोक्त आदेश जारी किये.