लकडे की घाणी का शुध्द तेल होता है स्वास्थ्य के लिए लाभकारी
आहार संबंधी आदतों में परिवर्तन करना बेहद जरूरी
अमरावती/दि.1- इन दिनों रिफाइन्ड तेल का प्रयोग काफी अधिक बढ गया है. जिसकी वजह से शरीर में चरबी बढने का प्रमाण और संभावना भी बढने लगी है. वहीं आहार विशेषज्ञों का कहना है कि, लकडी की घाणी से निकाले जानेवाले शुध्द तेल का ही भोजन में प्रयोग किया जाना चाहिए. क्योेंकि ऐसा करना स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद लाभकारी होता है.
उल्लेखनीय है कि, विगत डेढ वर्षों से तेल की कीमतों में भारी-भरकम इजाफा होने के चलते कई लोग भोजन तैयार करने हेतु धडल्ले के साथ रिफाइंड तेल का प्रयोग करने लगे है. जबकि इस तेल का अति प्रयोग शरीर के लिए बेहद घातक साबित होता है. क्योंकि इसकी वजह से चरबी बढने के साथ ही हृदयरोग होने की संभावना होती है. ऐसे में एक बार फिर अधिकांश लोग अब दुबारा घाणीवाले तेल की ओर मुडने लगे है.
ज्ञात रहें कि, इन दिनों तलने के काम हेतु अधिकांश स्थानों पर पाम तेल का प्रयोग होता है. किंतु उसका सेवन करना काफी हद तक घातक साबित होता है. इसी तरह होटलों में तलने के काम हेतु एक ही तेल को बार-बार प्रयोग में लाया जाता है. जिसकी वजह से शरीर में अनावश्यक तत्व पहुंचते है. जिसके चलते चरबी सहित विभिन्न बीमारियां बढने लगती है, जो आगे चलकर गंभीर बीमारियों का भी रूप ले सकती है. वहीं लकडी की घाणी से निकलनेवाले शुध्द तेल का सेवन करने पर शरीर के लिए आवश्यक रहनेवाले हाईडेंसिटी लिपोप्रोटीन नामक घटक आंत में तैयार होता है. जिससे स्वास्थ्य बेहतरीन रहता है. अत: आहार में शुध्द तेल का ही समावेश किया जाना चाहिए. शुध्द नैसर्गिक व रसायन विरहित तेल खाने से वात दोष संतुलित रहता है. साथ ही हृदय रोग, कर्क रोग, मूत्रपिंड संबंधी विकार, पक्षाघात, जोडों का दर्द, उच्च रक्तदाब व मेंदू की बीमारियों को टाला भी जा सकता है. ऐसे में लकडी की घाणी से निकलनेवाला शुध्द व प्राकृतिक तेल ही भोजन संबंधी कार्यों में प्रयुक्त होना चाहिए. इस आशय की जानकारी जिला सामान्य अस्पताल के आहार विशेषज्ञ डॉ. कविता देशमुख द्वारा दी गई है.
प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने आहार में रोजाना कम से कम दस ग्राम तेल का प्रयोग किया जाना चाहिए. किंतु वे लकडी की घाणी अथवा किसी विश्वसनिय कंपनी द्वारा उत्पादित तेल होना चाहिए. इन तेलों में फैटीएसिड रहता है. उसकी वजह से शरीर में रोग संतुलन बना रहता है. साथ ही हृदय रोग, कर्क रोग, मूत्रपिंड, जोडों के दर्द, पक्षाघात, मेंदू संबंधी बीमारी व उच्च रक्तदाब जैसी बीमारियों के लिहाज से घाणी से निकलनेवाला तेल सबसे उपयुक्त व लाभकारी है.
डॉ. कविता देशमुख
आहार विशेषज्ञ, जिला सामान्य अस्पताल
* चरबी बढाता है रिफाइंड तेल
कई केमिकलों का प्रयोग करते हुए रिफाइंड तेल तैयार किया जाता है तथा सिंथेटिक, गैसोलिन एंटी ऑक्सिजन व हिग्झैन जैसे केमिकलों का प्रयोग करते हुए रिफाइंड तेलों का उत्पादन किया जाता है. केमिकलों का प्रयोग किये बिना रिफाइंड तेल तैयार ही नहीं होता और 300 से 400 डिग्री के तापमान पर की जानेवाली रिफाइंड की प्रक्रिया के चलते तेल में मौजूद फैटीएसिड पूरी तरह से नष्ट हो जाता है. जिसकी वजह से आगे चलकर लोगों में चरबी बढने की समस्या पैदा होती है.
* घाणी का तेल होता है पौष्टिक
घाणी से निकाले जानेवाले तेल में किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता. बल्कि इसे शास्त्रोक्त पध्दति से तैयार किया जाता है. जिसके तहत तिलहनों पर योग्य तरीके से दबाव बनाते हुए उनमे मौजूद तेल को निकाला जाता है. लकडी से बनी तेलघाणी एक मिनट में केवल 13 से 14 बार घुमती है. ऐसे में घाणी से निकलनेवाले तेल का तापमान अधिकतक 35 से 40 डिग्री तक होता है. जिसके चलते शरीर के लिए आवश्यक रहनेवाले तेल के पौष्टिक तत्व भी नष्ट नहीं होते.