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मूर्ति कला को जीवंत रखना उद्देश्य

सुदीप मंडल का कहना

* बंगाली सजीव लगती देवी मूर्तियों के पारंपरिक शिल्पकार
अमरावती/ दि. 11- लडकपन से ही देवी-देवताओं की मूर्तियों को गढते देखा हैं. हमारे पिताजी गुरूपद मंडल ने उनके पिता से विरासत में मिट्टी को स्वरूप देकर देवी-देवताओं की मूर्तियां गढना सीखा. वह परंपरा हम आगे बढाने का प्रयत्न कर रहे हैं. मूर्ति कला को कायम रखना, जीवंत रखना हमारा उद्देश्य है. यह बात बंगाली देवी मूर्तियों के शिल्पकार सुदीप मंडल ने कही. मंगलवार शाम सक्करसाथ के बालाजी मंदिर परिसर में अमरावती मंडल ने इस सिध्दहस्त शिल्पकार से बातचीत की. उन्होंने देवी की मूर्तियों की गढन और अन्य बातों के बारे में संक्षेप में बताया. बातचीत दौरान वीर प्रताप मंडल के सक्रिय पदाधिकारी रितेश आसोपा उर्फ भाईजी, सुदीप मंडल की पत्नी अंजना, बहन प्रभाती और उनकी दोनों संतानें भी उपस्थित थी. सुदीप मंडल जब हम से बात कर रहे थे. तब अंजना और प्रभाती मंडल देवी की मूर्तियों का ब्रश लेकर रंग ठीक कर रही थी.
* मूर्तियों की गढन
ेुसुदीप मंडल ने बताया कि वे मूल रूप से बंगाल के हैं. उनके पिता गुरूपद भास्कर मंडल मध्यप्रदेश के बैतूल में आकर बस गए. उन्होंने पिता और दादा को मूर्तियां गढते देखा. वे भी पढाई के साथ- साथ पारंपरिक काम में सहयोग करने लगे. पिता ने उन्हें मूर्तियों की गढन के बारे में बतलाया. मिट्टी और तनस से वे पिता के साथ पहले पशु-पक्षी जैसे बाघ, बदक, मयूर बनाने लगे. उसमें सिध्दहस्त होने के पश्चात उन्हें छोटी मूर्तियों को गढना बताया गया.
* बरसों से मिट्टी की मूर्ति
सुदीप मंडल ने कहा कि आज जागरूकता बढी है. लोग प्लास्टर की मूर्तियां अस्वीकार कर रहे हैं. शासन प्रशासन भी प्लास्टर की मूर्तियों से परहेज की बात कह रहा है. किसी- किसी क्षेत्र में न्यायालय के आदेश से भी प्रतिबंध लगा है. जबकि वे वर्षो से मिट्टी की मूर्तियां ही बना रहे है. खेत की काली मिट्टी को इस तरह गूथकर घास, तनस की सहायता से मूर्ति बनाना होता है, जो आकर्षक लगे.
* रंग संगति महत्वपूर्ण
52 वर्ष के सुदीप मंडल को भी मूर्ति कला में तीन दशक से अधिक हो गए हैं. मंडल के अनुसार मूर्तियों का मुख महत्वपूर्ण होता है और उनमें भी नेत्र की रचना सर्वाधिक अहमियत रखती है. मूर्ति को मनोरम दर्शाने के लिए रंग संगति अहम है. इसके लिए उन्होंने घर में ही पिता और दादा से सीखा है. वे वॉटरपेंट का उपयोग करते हैं. यह सीख बडी उपयोगी है. आज बैतूल से अमरावती आकर यहां मूर्ति बनाना और उसे मंडलों में देकर प्रतिष्ठा पाना बडी बात कह सकते हैं.
* पत्नी का भी सहयोग
सुुदीप मंडल को मूर्ति कला में उनकी पत्नी अंजना मंडल सहयोग करती आयी है. उसी प्रकार बहन प्रभाती भी सहयोग करती है. बगैर सांचे के शिल्प गढना चुनौतीपूर्ण अवश्य है. किंतु ऐसा शिल्प बनने के बाद रचनाकार को अद्बितीय संतोष देता है. उनके दोनों बच्चे भी पढाई से समय मिलने के बाद पिता सुदीप मंडल की देख रेख में मूर्तियां गढने का प्रयत्न कर रहे हैं.ं
* 31 मंडलों से ऑर्डर
गुरूपद भास्कर मंडल की बंगाली मूर्तियों की परंपरा को आगे बढा रहे सुदीप मंडल ने बताया कि इस वर्ष अमरावती जिले से 31 मंडलों में उनके द्बारा गढी गई देवी मूर्तियां स्थापित होगी. शहर में ही 16 जगहों से ऑर्डर प्राप्त है. मोर्शी और धामणगांव सहित अकोला, वाशिम भी मूर्तियां भेजी जायेगी.

* अत्यंत मनोरम देवी
गुरूपद भास्कर मंडल द्बारा सर्वप्रथम सराफा के वीर प्रताप मंडल में बडी मूर्ति की स्थापना आरंभ हुई. गत 40-45 वर्षो से वीर प्रताप और सराफा के मंडलों में यही मूर्ति की स्थापना की जा रही है. अत्यंत दर्शनीय तथा मुग्ध कर देनेवाली सुंदर देवी होती है. दर्शनार्थी निहारते रह जाते हैं. बरबस नतमस्तक होते हैं.

* साडी और अस्त्र विशेषता
सुदीप मंडल ने बताया कि देवी का अलौकिक स्वरूप में साडी और अस्त्र-शस्त्र विशेषता कहे जा सकते हैं. मार्केट से लायी गई साडी परिधान की जाती है. बाघ भी आकर्षक होता है.

 

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