घरों पर लगे क्यूआर कोड साबित हो रहे निरर्थक
कचरा संकलन के बाद घंटागाडी चालक नहीं कर रहे स्कैन
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* सरकार का लाखों का खर्च साबित हुआ व्यर्थ
* कचरे को लेकर भी समस्या कायम
* केवल 7 पर्यवेक्षकों के दम पर चल रहा काम
अमरावती/दि. 28 – अमरावती मनपा द्वारा शहर में साफसफाई की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने हेतु प्रत्येक घर के सामने मास्टर क्यूआर कोड लगाया गया था. साथ ही यह व्यवस्था भी की गई थी कि, प्रत्येक घर से कचरा संकलित करने के बाद घंटागाडी द्वारा इन क्यूआर कोड को स्कैन किया जाए, ताकि मनपा के स्वच्छता विभाग को यह जानकारी मिल सकेगी. मनपा क्षेत्र में घंटागाडियों द्वारा कितने घरों से कचरा उठाया गया है. परंतु कचरा संकलन करनेवाली घंटागाडियों के चालकों द्वारा ऐसा नहीं किए जाने के चलते लाखों रुपए का खर्च पर लगाए गए क्यूआर कोड निरुपयोगी साबित हो रहे है और कितने घरों से कचरा उठाया गया है, इसकी जानकारी भी मनपा के स्वच्छता विभाग को नहीं मिल रही. जिसके परिणामस्वरुप स्वच्छ भारत मिशन अंतर्गत सरकार द्वारा किया गया लाखों-करोडों रुपयों का खर्च पानी में चला गया है. वहीं दूसरी ओर शहर में कचरे की समस्या जस की तस बनी हुई है.
उल्लेखनीय है कि, घंटागाडियों द्वारा रोजाना शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों के घरों से कचरा संकलित करना अनिवार्य किया गया है. लेकिन इसके बावजूद शहर के अधिकांश क्षेत्रों में रोजाना कचरा नहीं उठाया जाता. बल्कि कई इलाकों में सप्ताह में एक या दो दिन ही कचरा संकलित किया जाता है और ऐसा करते समय घरों के मुख्य प्रवेशद्वार पर लगे मास्टर क्यूआर कोड की स्कैनिंग भी नहीं की जाती, ऐसे में सरकार ने जिस उद्देश्य से नए तंत्रज्ञान का प्रयोग किया था वह उद्देश्य धरा का धरा रह गया. ज्ञात रहे कि, स्वच्छ भारत मिशन अंतर्गत शहर के लगभग 90 फीसद घरों पर क्यूआर कोड लगाए गए है. जिन घरों अथवा इमारतों से घंटागाडी द्वारा कचरा संकलित किया जाता है, वहां पर लगे क्यूआर कोड की स्कैनिंग करते ही मनपा को इससे संबंधित संदेश मिल जाता है. जिससे यह जानकारी मिलती है कि, घंटागाडी द्वारा नियमित रुप से कचरा उठाया जा रहा है अथवा नहीं और एक दिन के दौरान कितने घरों से कचरा संकलित किया गया है.
ज्ञात रहे कि, इस काम को लेकर कचरा उठानेवाले कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी पूरा हो चुका है. परंतु इसमें काफी समय खर्च होने के चलते वे लोग क्यूआर कोड स्कैन करने के लिए तैयार नहीं है, इसके साथ ही सरकार द्वारा क्यूआर कोड स्कैन करने का ठेका प्राप्त आईटी कंपनी ने इससे पहले 132 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी. जिन्हें बडनेरा जोन क्रमांक 4 में कुछ विवाद होने के बाद काम से हटा दिया गया. जिसके परिणामस्वरुप अब क्यूआर कोड की स्कैनिंग भी नहीं हो रही है, बल्कि हमेशा की तरह घंटागाडी पर रहनेवाले कर्मचारी अपने नोटबुक में नागरिकों के हस्ताक्षर ले रहे है. ऐसे में सरकार द्वारा नई तकनीक पर किया गया खर्च, घरों पर लगाए गए क्यूआर कोड व ऐप जैसी सभी बाते पूरी तरह से निरर्थक साबित हुई है.
क्यूआर कोड स्कैन करने हेतु सरकार की स्वतंत्र व्यवस्था है और इसमें मनपा का कोई लेना-देना नहीं है, ऐसा कहते हुए मनपा प्रशासन द्वारा अपना पल्ला झाड लिया जा रहा है. परंतु इस चालढकल वाली निती के चलते शहर में हर ओर कचरे व गंदगी के ढेर लगे दिखाई दे रहे है और लोगबाग कचरे की समस्या से त्रस्त हो गए है.
* करोडों रुपए का खर्च पानी में
प्रत्येक घर पर क्यूआर कोड लगाए गए है. जिसे अॅडमिन सीएनएस मोबाइल ऐप के जरिए स्कैन करने पर मनपा के स्वच्छता विभाग को जानकारी मिलती है कि, किस घर से कचरा उठाया गया है या किस घर से कचरा नहीं उठाया गया. परंतु स्कैनिंग का ठेका लेनेवाली कंपनी ने 125 पर्यवेक्षक कम कर दिए है. जिसके चलते अब घरों पर लगे क्यूआर कोड की स्कैनिंग नहीं हो रही. ऐसे में सरकार द्वारा इस उपक्रम पर खर्च किए गए लाखों रुपए पानी में चले गए. क्योंकि मनपा के एवं निजी स्वच्छता कर्मचारी क्यूआर कोड की ऐप के जरिए स्कैनिंग करने के लिए तैयार नहीं है और उन्होंने इस काम को करने हेतु स्पष्ट इंकार कर दिया है.
* कंपनी ने 132 में 125 पर्यवेक्षक हटाए
अमरावती शहर के पांच जोन में तीन स्वच्छता ठेकेदार है. जिनके पास कचरा संकलन हेतु 132 घंटागाडी है. दो माह पूर्व आईटीआय कंपनी ने क्यूआर कोड स्कैन करने हेतु प्रत्येक घंटागाडी पर एक-एक पर्यवेक्षक की नियुक्ति की थी. परंतु एक माह पूर्व बडनेरा जोन क्रमांक 4 में कुछ विवाद निर्माण होने के बाद पर्यवेक्षकों ने इसे लेकर कंपनी के पास शिकायत की. तो कंपनी ने 125 पर्यवेक्षकों को काम से हटा दिया. इसके चलते अब पांचों जोन में एक-एक हिसाब से 5 तथा शहर की नालियों व बडे नालों की सफाई पर ध्यान रखने हेतु 2 ऐसे कुल 7 पर्यवेक्षक काम पर रखे गए.
* 7 पर्यवेक्षकों की संख्या नगण्य
अमरावती शहर में करीब 2 लाख 30 हजार घरों पर क्यूआर कोड लगाए गए है. जिन्हें रोजाना स्कैन करना केवल 7 पर्यवेक्षकों के लिए संभव नहीं है. ऐसे में 7 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति को महज दिखावा कहा जा सकता है, क्योंकि 10 लाख की जनसंख्या व 3 लाख से अधिक इमारते रहनेवाले शहर में केवल 7 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति पूरी तरह से निरुपयोगी है.