कुलगुरु चयन पद्धति में बदलाव पर उठाये जा रहे प्रश्न
विस्तार के लिए या सुविधा हेतु
* विश्व विद्यालयों के संचालन के नये मापदंड
अमरावती/दि.15 – विद्यापीठ अनुदान आयोग यूजीसी ने देश में विश्व विद्यालयों के कुलगुरु चयन के मापदंड बदलने की सोची है. नई नियमावली का प्रारुप सुझाव के लिए जारी किया गया है. लोगों से राय मांगी गई है. इस बीच जानकारों ने मापदंड बदले जाने के विषय पर प्रश्न उठाये है. उनका कहना है कि, मापदंड बदलने के पीछे आखिर सरकार की मंशा क्या है? दोनों बातें की जा रही है. क्या सचमुच शासन को कुलगुरु पद के अधिकारों का विस्तार करना है या शासन अपने सुविधा के लिए ऐसा करने जा रहा है?
वर्तमान कानून के अनुसार कुलगुरु चयन हेतु चयन समिति का गठन होता है. उसमें राज्यपाल कुलपति के रुप में और सरकार तथा विद्यापीठ प्राधिकरण के नाम निर्देशित सदस्य रहते हैं. इच्छुक उम्मीदवारों के साक्षात्कार समिति लेती है और राज्यपाल के पास कुछ नामों की अनुशंसा (सिफारिश) की जाती है. उनमें से एक नाम राज्यपाल चुनते हैं. अब नये प्रस्ताव के अनुसार चयन समिति में कुलपति नियुक्त सदस्य, यूजीसी के अध्यक्ष द्वारा नामित सदस्य विद्यापीठ अधिकार मंडल द्वारा नियुक्त सदस्य का समावेश रहेगा. अब राज्य शासन द्वारा नामित सदस्य नहीं रहेगा. यूजीसी के नये नियमों से कुलगुरु चयन में राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं होगी. पहले के नियमों में ऐसा नहीं था. अब पुनर्नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है. उसी प्रकार कुलगुरु की सेवानिवृत्ति की आयु 65 से बढाकर 70 वर्ष की जा रही है.
* कुलगुरु के काम का हुआ विस्तार
कुलगुरु के काम का स्वरुप हाल के वर्षों में बदला है. अब उन्हें आर्थिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक ऐसे विभिन्नस्तरों पर काम करना पड रहा है. इसीलिए कुलगुरु चयन के मापदंड बदले जाने की आवश्यकता बतायी जा रही है. केवल शिक्षा संस्थाओं से नहीं, तो विविध क्षेत्रों के सक्षम लोग भी अब कुलगुरु बनाये जा सकते हैं. इससे पहले शैक्षणिक पात्रता हेतु अध्यापन का अनुभव अनिवार्य था. प्रस्तावित नियमों के अनुसार लोक प्रशासन, लोक नीति और लोक उद्यम के दिग्गजों को कुलगुरु बनने का अवसर मिल सकता है. यह सबसे महत्वपूर्ण प्रस्तावित परिवर्तन होने की जानकारी देते हुए कुछ विशेषज्ञों ने इस बदलाव का स्वागत किया है. उन्होंने यह भी बताया कि, नये प्रावधानों के अनुसार किसी उच्च शिक्षा संस्था में 10 वर्ष का अनुभव रखने वाला व्यक्ति भी कुलगुरु बन सकेगा.
* अशैक्षणिक क्षेत्र के दिग्गज
देश में शिक्षा इतर क्षेत्र के लोगों ने कुलगुरु पद संभाला है. इतना ही नहीं, तो अपने काम की छाप छोडी है. नागरी सेवा और कूट नीति के तज्ञ जी. पार्थसारथी (जेएनयू), के. आर. नारायण (जेएनयू), हमीद अंसारी (एएमयू), जनरल एम. ए. झाकी (जेएनयू) और झेड. यू. शाह ने अलीगढ मुस्लिम विद्यापीठ का कुलगुरु पद संभाला था. ऐसे ही आईएएस अधिकारियों ने भी कुलगुरु पद भूषित किया है. नागपुर के तत्कालीन विभागीय आयुक्त अनूप कुमार ने नागपुर विवि को नैक की अ-श्रेणी मिलवा दी थी.
* डॉ. संजय खडक्कार का सवाल
कुलगुरु पद के मापदंड में प्रस्तावित बदल को लेकर विदर्भ विकास बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य रहे डॉ. संजय खडक्कार ने कहा कि, चयन में लचीले नियम निश्चित ही स्वागत योग्य है. किंतु विद्यापीठों की गुणवत्ता रखने के लिए पात्रता के मापदंड सौम्य करना ठीक नहीं. उसी प्रकार विद्यापीठ की उन्नति तथा विद्यार्थियों के उज्वल भविष्य हेतु महत्वपूर्ण पदों पर राजकीय प्रेरित नियुक्तियां टाली जानी चाहिए. यह भी प्रश्न उपस्थित किया जा रहा कि, विद्यापीठों का राष्ट्रीयकरण तो नहीं होने जा रहा.