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अलविदा… डॉ. राहत इंदौरी साहब

मशहुर शायर के इंतकाल पर शहर के अदीबों ने दी श्रध्दांजलि

  •  हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है, बडी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

अमरावती प्रतिनिधि/दि.१२ – उर्दू अदब को दूनिया के मंचों पर प्रतिष्ठित करनेवाले देश के जाने-माने शायर डॉ. राहत इंदौरी का इंतकाल हो गया. यह खबर मिलते ही अमरावती के उर्दू अदिबो व हिंदी साहित्यकारों में शोक की लहर फैल गयी. डॉ. राहत इंदौरी कुछेक बार मुशायरा पढने के लिए अमरावती भी आये थे. साथ ही अमरावती के कई कवियों व शायरों ने देश के अलग-अलग शहरों में डॉ. राहत इंदौरी के साथ कवि सम्मेलनों व मुशायरों में हिस्सा लिया है. ऐसे में डॉ. राहत इंदौरी का यूं अकस्मात रू्नसत हो जाना सभी के लिए व्यक्तिगत नुकसान व आघात की तरह है. दै. अमरावती मंडल के साथ बात करते हुए सभी ने इसी आशय की भावनाएं व्यक्त की है.

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* उम्दा शायर व बेहतरीन इन्सान चला गया डॉ.
राहत इंदौरी साहब अपनी शायरी के दम पर पूरी दूनिया में मशहूर थे. मेरा उनसे काफी करीबी वास्ता था और उनकी सरपरस्ती में ही मैने अदब की दूनिया में कदम आगे बढाये. जहां तक मैं उन्हें जानता हूं, वे एक उम्दा शायर होने के साथ-साथ एक बेहतरीन इन्सान भी थे और उन्होंने कई नेकियोंवाले काम भी किये है. जिन्हें उन्होंने कभी किसी के सामने जाहीर नहीं किया. उर्दू के साथ ही हिंदी साहित्य जगत में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा. आज जब मुशायरों और कवि सम्मेलनों में आने-जाने के लिए कवियों और शायरों को अच्छाखासा पैसा तथा ट्रेन व फ्लाईट की टिकट बडी आसानी से मिल जाती है. वहीं आज से ४०-५० साल पहले राहत इंदौरी साहब ने रेल्वे के जनरल बोगी में सफर करके और बेहद कम मानधन लेकर उर्दू अदब की सेवा की और मुशायरों व उर्दू अदब को पूरी दुनिया में सम्मानजनक स्थान हासिल कराया. जिसके लिए उर्दू अदब की नई पीढी को राहत इंदौरी साहब के प्रति एहसानमंद रहना चाहिये.
-तन्वीर गाजी शायर व गीतकार

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* बेबाक और स्पष्ट वक्ता व्यक्ति थे राहत साहब 

डॉ. राहत इंदौरी साहब अपने आप में एक बडा नाम थे और अपनी बातों को बडे स्पष्ट और बेबाक तरीके से रखा करते थे. हालांकि इस वजह से उन्हें एक-दो बार कुछ विवादों का सामना भी करना पडा. लेकिन वे अपनी बात पर कायम रहे. एक साहित्यीक की यही सबसे बडी खुबी होनी चाहिए. डॉ. राहत इंदौरी का यूं अचानक चला जाना साहित्य जगत के लिए काफी बडा नुकसान है.
– भगवान वैद्य ‘प्रखर‘ लेखक व कथाकार

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* जिंदादिली का दूसरा नाम थे राहत साहब

डॉ. राहत इंदौरी अपने आप में एक बेहद उमदा और मकूल शख्सियत थे. उन्होंने शायरी को पूरी बेबाकी और जिंदगी को बेहद जिंदादिली के साथ जिया. साथ ही उन्होंने अपनी आनेवाली मौत का भी अपनी शायरी के जरिये काफी पहले यह कहकर इस्तकबाल कर दिया था कि, दो गज सही ये मेरी मिल्कीयत तो है, ये मौत तुने मुझे जमीनदार कर दिया. डॉ. राहत इंदौरी जैसे शायर सदियों में एक बार पैदा होते है. उन्हें और उनकी शायर को लंबे समय तक याद रखा जायेगा.
-इरफान अथहर अली सामाजिक कार्यकर्ता

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* सबसे जुदा और अलहदा थे राहत साहब
डॉ. राहत इंदौरी जैसा शायर न कभी हुआ और न आगे पैदा होगा. उनके कलाम सबसे अलग थे. आज के दौर में जिस तरह से लिखा और सुना जा रहा है, उसमें राहत साहब का दर्जा सबसे उपर है. अदब की दूनिया में आनेवाले नये लोगो ने डॉ. राहत साहब के अशआर और कलाम से कुछ सिखना चाहिए. अपनी जिंदगी को भरपुर जीनेवाले डॉ. राहत साहब ने अपनी मौत का भी यह कहकर खुले दिल से स्वागत किया था कि, ‘मौत वो है, जिसका सभी अफसोस करे, यूं तो यहां सभी मरने के लिए ही आये है.
– रशीद निशात  शायर 

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* देशप्रेम और इन्कलाब की मिसाल थे राहत साहब

डॉ. राहत इंदौरी जैसे मकबूल शायर सदियों में कभी-कभी पैदा होते है. उन्होंने अपनी शायरी के जरिये देशप्रेम के साथ-साथ इन्कलाब की जो अलब जगायी है, उसकी रोशनी काफी लंबे समय तक जगमगाती रहेगी. अपने जीवनकाल के दौरान डॉ. राहत इंदौरी साहब ने कभी किसी का दिल दुखानेवाली बात नहीं की और उनके काम काफी नेकियोंवाले थे. जिनके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जायेगा.
-मेराज खान पठान सामाजिक कार्यकर्ता

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* शायरी के साहसी युग का अंत

साहित्य मानवीय जीवन पर बहुमूल्य प्रभाव डालता है. डॉ राहत इंदौरी इसका सटीक उदाहरण थे. डॉ राहत इंदौरी का अचानक उठ जाना भारतीय साहित्य की बहुत बडी क्षति है. राहत साहब कवि सम्मेलन ओर मुशायरों के माध्यम से साहित्य की बहुत बुलंद आवाज थे. उनकी शायरी श्रोताओं का साहस बढाने का काम करती थी. वे मंच के शहंशाह थे. जब वह मंच से अपनी गरजदार आवाज में ललकारते, तो उनकी पंक्तियों की धार गली से लेकर संसद तक सुनी जाती और हर जगह अपना प्रभाव छोडती. जब वह मुशायरों के मंच से ठहाका लगाते हुये वर्तमान स्थिति और सत्ता पक्ष को चेलेंज करते, तो ऐसा लगता कि समय रुक गया हो और गली से लेकर गलियारों तक हलचल मच गई हो. तो सत्ताधारी लोग अपनी कुर्सियों में हलचल महसूस करते. यही कारण है कि वह भारतवर्ष के श्रोताओं की पहली पसंद थे. डॉ राहत इंदौरी  मोहब्बत के शायर थे. उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से दुनिया भर में प्यार, शांति और मोहब्बत के संदेश को पहुंचाया. मुशायरों के माध्यम से सभी वर्गों को जोडने मे सफलता प्राप्त की. राहत साहब भारत की सभ्यता, संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता, आपसी सम्मान और सभी नागरिकों के सम्मान और प्रतिष्ठा के पक्षधर थे. वह भारत की संप्रभुता और अखंडता के प्रवक्ता थे. उन्हें अपने देश की मिट्टी बहुत अजीज थी और अपने भारतीय होने पर गर्व था. अपनी मिट्टी का यही दर्द लेकर राहत साहब अपनी मिट्टी में कयामत की नींद सो गये और अपनी बात को सच साबित कर दिया.
-डॉ नासिरोददीन अन्सार शिक्षाविद व शायर

* डॉ. राहत इंदौरी के कुछ मशहूर अशआर
शाखों से टूट जाएं वह पत्ते नहीं हैं हम, आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहें.  आप हिंदु, मैं मुसलमान, ये ईसाई, वह सिख, यार छोडो यह सियासत है, चलो इश्क करें.  सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या.  जो आज साहिबे मसनद हैं कल नही होंगे, किराये दार हैं जाती मकान थोडी है.  हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं. मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं.  जनाज़े पर मेरे लिख देना यारों, मोहब्बत करने वाला जा रहा है.  ऐ वतन, एक रोज तेरी खाक में खो जायेंगे सो जायेंगे,  मर के भी रिश्ता नहीं टूटेगा हिंदुस्तान से ईमान से.  जब मैं मर जाउं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहु से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.

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* कभी ना भूलाये जानेवाली शख्सियत है डॉ. राहत इंदौरी

सन १९५० में एक ऐसी किरण रोशन हुई, जिसने आगे चलकर सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि पूरे आलमी सतह को रोशन कर दिया. उर्दू अदब का वह खादीम, जिसका नाम दूनिया ए उर्दू अदब में हमेशा बडे एहतराम के साथ लिया जायेगा. राहत साहब मुशायरों की आबरू भी थे और कामयाबी की जमानत भी. इस बंदाए नाचीज को भी राहत साहब के साथ मुशायरे पढने का एजाज हासिल है और उनके साथ बिताये गये पलों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. अल्लातालाह राहत साहब को जन्नत में आलामुकाम अता करे,
आमीन – इकबाल साहिल शायर 

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* उर्दू अदब और हिंदी साहित्य का अजीमोशान सितारा चला गया
डॉ. राहत इंदौरी साहब अब हम सबके बीच नहीं है. इस खबर पर यकीन नहीं हो रहा. डॉ. राहत इंदौरी के चले जाने से उर्दू शेर ओ अदब तथा हिंदी साहित्य का काफी बडा नुकसान हुआ है. डॉ. राहत साहब ने पिछले ५५ साल से अपनी शायरी और अपने शानदार लब ओ लहजे के जरिये पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन किया और उन्हें हिंदी व उर्दू के मंचों पर बावकार तरीके से बुलाया जाता था. उनकी शायरी को चाहनेवालों की बेशुमार तादाद पूरी दुनिया में है. राहत साहब ने अपनी शायरी में हुस्न और इश्क के साथ-साथ हालात ए हाजरा और मसाईल को बयान किया और उनके हाल भी बताये. उनकी शायरी हम सभी नौजवान शायरों के लिए मिसाल-ए-राह है. ये मेरी खुशनसीबी है कि, मैने गुजीश्ता पंद्रह साल में डॉ. राहत साहब से बहुत कुछ सीखा और उनके साथ पूरे भारत के मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत का मुझे मौका मिला. राहत साहब ने हमेशा मेरी हौसला अफजाही की और मेरी शायरी की किताब ‘रौशनी मोहब्बत की‘ में राहत साहब ने मेरी शायरी और शख्सियत पर जो अलफाज कहे, वो मेरी जिंदगीभर की कमाई है. मैं दूआ करता हूं कि, अल्लातालाह डॉ. राहत साहब की रूह को जन्नतूल फिरदौस में आलामकाम अता फरमाये.
  – डॉ. खालीद नैय्यर शायर

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* उर्दू व हिंदी साहित्य का बडा नुकसान

डॉ. राहत इंदौरी साहब का यूं अचानक चला जाना  हिंदी और उर्दू साहित्य जगत का काफी बडा नुकसान है. आज हम सभी से एक बेश किमती चीज जुदा हो गयी है. मुझे राहत साहब के साथ दो बार ऑल इंडिया मुशायरा पढने का सौभाग्य मिला. ये मेरी खुशनसीबी थी. राहत सर और उनकी शायरी को हमेशा याद रखा जायेगा.
  – डॉ. जाहीद नैय्यर

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नई पीढी के शायरों को प्रोत्साहित करते थे राहत साहब

अबके बारिश में एक नज़र चल कर देख आएंगे अपना घर चल कर अहेतेराम हम पे इसका लाज़ीम  है  मौत आई है उम्र भर चल कर
इन पंक्तियों के रचयिता डॉ राहत इंदौरी  ना सिर्फ अच्छे शायर होने के साथ ही एक प्रभावशाली व्यक्ति थे. उनकी शायरी ने हमेशा नये लिखनेवालों को प्रेरित किया है और खुद राहत साहब भी नये लिखने वालों की खूब सरहाते थे. भले ही राहत साहब अब हमारे बीच नहीं, लेकिन उनकी शायरी के ज़रिए वो हमेशा लोगो के दिलों में जिन्दा रहेंगे. डॉ. राहत इंदौरी  हिन्दुस्तान की शान थे, वो अपनी शायरी में जितने खिलंदडे, क़लन्दर, निडर, बेबाक और बेख़ौफ थे, अपनी qजदगी में भी वो उतने ही बेबाक और जिंदादिल व्यक्ति थे. मौत इंसान को तलाश करती है, लेकिन मुझे लगता है कि राहत साहब कोरोना जैसी बीमारी से हार मानने वाले नहीं थे, उनकी मौत का वजह कोरोना नहीं, बल्कि कोरोना की रोकथाम के लिए लगाया गया लॉकडाउन है, जिसने उन्हें मुशायरों की दुनिया से निकालकर घर में क़ैद कर दिया था. मुशायरों में उनकी आत्मा बसती थी और राहत साहब मुशायरो की ज़रूरत थे. भले ही राहत साहब कितने ही बीमार क्यों ना रहे हो, उनके चाहनेवालों का प्यार उनके लिए दवाई का काम करता था. राहत साहब जैसे लोग कभी नहीं मरते, बल्कि अपने विचारों के ज़रिए लोगों के दिलों में ज़िन्दा रहेते हैं
. – कमर राज़ शायर व पत्रकार

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* राहत साहब जैसा दूसरा कोई नहीं

डॉ. राहत इंदौरी अपने आप में एक मकबूल शख्सियत थे. उनके जैसा कोई दूसरा शायर होना काफी मुश्किल है. अपनी शायरी के जरिये डॉ. राहत इंदौरी ने केवल मुशायरों में ही जान नहीं भरी, बल्कि उनकी शायरी ने सामाजिक चेतना को जगाने का भी काम किया है. यह उनकी सबसे बडी खुबी थी. डॉ. राहत इंदौरी के यूं अचानक चले जाने की वजह से देश और उर्दू अदब का काफी नुकसान हुआ है. अल्लातालाह उन्हें जन्नतउल फिरदौस में आला मकाम अता फरमाये, ऐसी हम सब दुआ करते है.
  – अख्तर हुसैन संचालक, दिल्ली-महाराष्ट्र ट्रान्सपोर्ट

 

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