कांग्रेस नेता जिन्हें पार्टी के समर्थक युवराज कहना भी बडा पसंद करते हैं, राहुल गांधी भारी लावलष्कर के साथ भारत जोडो यात्रा पर निकले तो जन-जन उनके साथ जुडने का नजारा दिखाई दे रहा हैं. कन्याकुमारी से देश के शिखर कश्मीर हेतु राहुल की यात्रा को तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्र, तेलगांना के बाद महाराष्ट्र में भी सुंदर और असाधारण रिस्पॉन्स मिला. इसे कांग्रेस का बडे दिनों बाद नियोजन कहे अथवा कुछ और किंतु राहुल की भारत जोडो यात्रा सचमुच लोगों को जोडती प्रतीत हो रही हैं. मीडिया और सोशल मीडिया के प्रचलित चित्रों में राहुल से लोगों का सहज भाव से गले लगने के चित्र छाए हुए हैं. यह सभी तनिक भी बनावटी नहीं लग रहे. इस सहजता से राहुल लोगोंं से मिल रहे. सैकडों किमी. पैदल चलने पर भी उनके चेहरे पर थकावट का कोई निशान कभी नहीं दिखाई दिया. सब कुछ बढिया अंदाज में चल रहा हैं. राहुल अपने उद्देश्य में सफल होते नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र की धरा पर उनकी यात्रा के कदम पडने पर अभूतपूर्व स्वागत भी हुआ. नांदेड से लेकर अभी अकोला तक लोगों ने राहुल गांधी का दिलखुलास स्वागत किया. उनके साथ सैल्फी लेने की होड मात्र कांग्रेसजनों तक सीमित नहीं रही थी. इस बात को सोशल मीडिया पर जारी हजारों-लाखों चित्रों से भी पुष्टि मिलती हैं. मगर अचानक राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर टिप्पणी कर दी. जिससे वातावरण में उबाल आ गया. राहुल ने 5 राज्यों को अब तक भारत जोडो यात्रा में पार किया. कहीं भी वे किसी विवादित विषय पर बोलने से बचते रहे. पत्रकार वार्ता में भी राहुल ने विवादों को दरकिनार रखते हुए कठिन प्रश्नों के उत्तर टाल दिए. फिर महाराष्ट्र में ही उन्होंने सावरकर का विषय क्यों उठाया? यह प्रश्न लोगों को ही नहीं अपितु कांग्रेसजनों के मन भी उठ रहा है. क्या राहुल ने जानबूझकर यह मुद्दा छेडा. अथवा उनसे अध्यादेश फाडने जैसी एक और भूल हो गई? एैसे प्रश्न उठ रहे हैं. राहुल ने महाराष्ट्र में ही वीर सावरकर का विषय क्यों उपस्थित किया. इसके कारण जानकार खोजने में लगे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि, यह सोची समझी चाल हैं. किंतु देखा जाए तो फिलहाल महाराष्ट्र में सावरकर का मुद्दा कांगे्रस को कोई खास लाभ पहुंचाने वाला नहीं. उसी प्रकार कांगे्रस उस महाविकास आघाडी की घटक हैं जिसके एक बडे घटक शिवसेना की सावरकर पर कांग्रेस से बिल्कुल जुदा राय हैं. राहुल की भारत जोडो में शिवसेना के उनके समान युवराज कहे जा सकते आदित्य ठाकरे सहभागी हुए थे. एैसे में महाराष्ट्र में राहुल गांधी सावरकर का मुद्दा उपस्थित करना सवालों के घेरे में हैं. राहुल के बयान से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने फौरन किनारा कर लिया. वहीं संजय राउत ने इस मुद्दे पर मविआ में फूट के भी संकेत दे दिए. इसलिए पुन: वहीं प्रश्न है कि, राहुल गांधी ने सावरकर का मुद्दा यूं ही छेड दिया अथवा उसके पीछे कांग्रेस की कोई रणनीति हैं. दूसरी बात की संभावना अधिक लग रही. क्योंकि राहुल गांधी ने पत्रकार परिषद में दस्तावेजी सबूत भी हाथोंहाथ पेश कर दिए. वे अपने बयान पर अडिग हैं. जबकि शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस के ही अनेक बडे नाम राहुल के दावे एवं इस समय एैसे वक्तव्य से सहमत नहीं हैं. लगता है कि, राहुल गांधी से एक बार फिर राजनीतिक ब्लंडर हो गया हैं. पहले भी वे एैसी गलतियां कर चुके हैं. जिनसे कांग्रेस को फायदे की बजाए नुकसान ही हुआ हैं. देखा जाए तो भारत जोडो ने देश के 60 प्रतिशत से अधिक तरुण पीढी को आकर्षित किया था. बडी संख्या में युवतियां राहुल गांधी की यात्रा में उत्साह से सहभागी होती नजर आई थी. राहुल भी सहजता से उन्हें गले लगा रहे हैं. एैसे में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेताओं की राय में दम लगता है कि, भारत जोडो को महाराष्ट्र में दाखिल हुए 10 रोज बीत जाने पर भी अपेक्षित मीडिया कवरेज नहीं मिल रहा था. इसलिए सावरकर जैसा विवादित विषय राहुल गांधी व्दारा उकेरा गया. इसके बाद भारत जोडो यात्रा ने प्रथम पृष्ठ पर जगह तो बना ली. मगर कांग्रेस की जिस खोई जमीन को दोबारा हासिल करने के लिए राहुल तीन हजार पांच सौ किमी. की यात्रा पर पांव-पांव निकले क्या वह अपने उद्देश्य से थोडी दूर नहीं हो गई? भारत जोडो यात्रा के आरंभ से लेकर विदर्भ में प्रवेश करने तक लगभग डेढ सौ दिनों तक राहुल गांधी ने बेरोजगारी, महंगाई और नफरत दूर करने जैसे मुद्दों पर ही बार-बार बात की थी. हर नुक्कड और जनसभा में वे यही मुद्दें उपस्थित कर भाजपा तथा मोदी सरकार को घेर रहे थे. जन समर्थन भी व्यापक और प्रतिपक्ष की नजरों में भरने लायक था. इन सबके सुपरिणाम भी देखने मिलने लगे थे. तभी शायद राहुल ने सावरकर के इतिहास को कुरेदा. लगता तो यही है कि, राहुल बाबा से एक बार पुन: ब्लंडर हो गया हैं! अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि, बची हुई दो हजार किमी. यात्रा में राहुल इस तरह के विवादित मुद्दें अन्य प्रदेशों में भी उठाते हैैं या नहीं! एक संभावना यह भी है कि कांग्रेस ने 3500 किमी. यात्रा के मध्य में शायद इसका स्वरुप, उद्देश्य और मुद्दे बदलने की रणनीति बनाई होगी!
इस सारे विवाद में शरद पवार की चाणक्य नीति एक बार फिर उभरकर सामने आई. राष्ट्रवादी 15 दिनों से शरद पवार की तबीयत का हवाला देकर पवार के भारत जोडो यात्रा से दूर रखने की बात कह रही है. जबकि यही पवार इन 15 दिनों में से आधे दिन अपने नियमित कामों और दिनचर्या में लगे रहे. शायद पवार को यात्रा के विवाद में पडने का अंदेशा रहा होगा तभी तो उन्होंने राहुल के साथ मंच साझा नहीं किया.
– लक्ष्मीकांत खंडेलवाल