17 साल की उम्र में कारसेवा करने गए थे राजा खारकर
प्राणप्रतिष्ठा पर व्यक्त किया हर्ष, मनाएंगे जोरदार उत्सव
अमरावती/दि. 25- परकोटे के भीतर रहनेवाले अनेक कार्यकर्ता आज अयोध्या में अगले माह होने जा रही रामलला की प्राणप्रतिष्ठा से इसलिए भी अधिक उत्साहित और हर्षित है कि इनमें से अधिकांश ने कारसेवक के रुप में आज से 33 बरस पहले 1990 और 1992 की कारसेवा में सहभाग किया था. राजा खारकर तो 16-17 साल की आयु में अपने से थोडे बडे-छोटे साथियों संग 1990 की पहली कारसेवा में भाग लेने के लिए निकल पडे थे. अमरावती मंडल से बातचीत दौरान उन्होंने बताया कि राजू महाजन उर्फ मिठ्ठू, रवि भुयार, गजानन खारकर, ज्ञानेश्वर करुले, सोमेश्वर वाहिरे, श्याम सावलकर, चंद्रकांत गावंडे, मनोज पवार, संजय आदि के साथ वे निकल पडे थे. आज राम मंदिर निर्माण के अंतिम चरण में पहुंचने और उद्घाटन की तिथि 22 जनवरी पास आने से यह सभी कारसेवक उत्साहित है, हर्षित हैं. उन्होंने अपने परिसर में जोरदार उत्सव की तैयारी भी की है. बडी बात यह है कि तीन दशकों के बाद भी गेट के भीतर भारतीय जनता पार्टी का परचम जोरशोर से लहराने वाले राजा खारकर को उस समय यूपी के गांवों, नगरों के नाम बराबर स्मरण रहे. इस चर्चा दौरान सुरेंद्र बुरंगे, चंद्रकांत गावंडे, अभय बपोरिकर भी उपस्थित थे.
* माणिकपुर सीमा पर ट्रेन से उतारा
खारकर ने बताया कि वे घर से साथियों संग चल पडे. बडनेरा पहुंचने पर पता चला कि नागपुर नहीं अपितु भुसावल की तरफ जाना है. वहां से अयोध्या की ट्रेन में सवार हो गए. रात 11 बजे माणिकपुर पर उन्हें और साथियों को कारसेवक होने के कारण ट्रेन से उतार दिया गया. यह मध्य प्रदेश-उत्तर प्रदेश की सीमा का क्षेत्र था. उस समय मुलायमसिंह यादव यूपी के सीएम थे.
* रेलवे गोदामों में अस्थायी जेल
खारकर के अनुसार उन्हें रेल और पुलिस अधिकारियों ने पास ही रेलवे के गोदामों में बनाई गई अस्थायी जेल में रखा गया. वे किसी बहाने वहां से बाहर बच निकले. विलास हलवे और अन्य भी थे. जिससे हिम्मत बढी. लगभग 5 किमी पैदल रेलवे ट्रैक किनारे चलते रहे. तब एक ट्रेन आई जिसे टॉर्च और केसरिया दुपट्टा लहराकर रोका गया. ट्रेन के धीमी होते ही कारसेवक उसमें चढ गए. किंतु फिर नैनी स्टेशन के पास उन्हें उतार दिया गया. उस समय रात के 2-3 बज रहे थे. एक अंजान रामभक्त ने इन 20-25 कारसेवकों के रात्रि विश्राम का प्रबंध एक मंदिर में किया. सवेरे नित्यक्रिया से उठकर पुन: 8-10 किमी पैदल पगडंडियों से आगे बढे.
* गांवों में भोजन की व्यवस्था
1990 के 30 अक्तूबर को राम मंदिर कारसेवा की घोषणा की गई थी. अत: ठंड के दिन प्रारंभ हो गए थे. खारकर ने बताया कि वे और सभी कारसेवक चल रहे थे. गांवों में भोजन आदि की जगह-जगह व्यवस्था हो रही थी. सूरज अस्ताचल को जा रहा था. तब नदी किनारे चलते हुए सामने वाले तट पर काफी लोग नजर आए. उन्होंने एक नाव वाले को पैसे देकर दूसरे तट पहुंचे.
* मिला गुजरात, केरल का जत्था
खारकर के अनुसार उनका अनुमान सही निकला. नदी के दूसरे छोर पर जो भीड दिखाई पडी थी वह भी कारसेवकों की थी. जो गुजरात और केरल से वहां आए थे. उनके साथ अमरावती के यह रामभक्त हो लिए. तब तक रेडियो आदि के माध्यम से कारसेवकों की गिरफ्तारी का सत्र शुरु हो गया था. अमरावती का जत्था इलाहबाद के आगे जुसी की धर्मशाला में पहुंचा. वहां रात ठहरने की व्यवस्था थी. सुबह जब चल पडे तो एक रेल कर्मचारी ने ही बताया कि आप लोग अयोध्या की बजाए विपरित दिशा में चल रहे हैं. फिर उनके दिखाए रास्ते पर 20-25 किमी पैदल चले. तब जाकर एक रेल कर्मचारी ने पुन: व्यवस्था की और उन्हें आती हुई रेल में बैठा दिया. जिसकी एक खास जगह पर जाने पर उन्होंने चेन खींची और वे उतर गए. (शेष अगले अंक में)