अमरावती

राजस्थानी चरवाहों की हो रही वापसी

राज्य के कई जिलों में 10 महीनों तक रहता है डेरा

रिद्धपुर/ दि.7 – प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी राजस्थानी चरवाहे महाराष्ट्र के कई जिलों में खासतौर से अमरावती जिले में अपने सैकडों की तादाद में भेंड और मवेशियों को लेकर पहुंचे थे. यह चरवाहे रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, गुना होते हुए जिले के हरियाली भरे क्षेत्रों में पहुंचे थे. बदलते मौसम की आहट से इन चरवाहों ने अब अपने मवेशियों को लेकर अपने राज्य की ओर निकलना ही मुनासिब समझा है. चरवाहों के मुताबिक इस वर्ष आग उगलती गर्मी से उनके साथ-साथ मवेशी भी काफी प्रभावित हुए है. कई भेड धूप में मर चुकी हैं. चरवाहे के मुताबिक कुछ वर्ष पहले जिले में केवल राजस्थानी चरवाहे ही दिखाई दिया करते थे, लेकिन इन दिनों जिले में मध्यप्रदेश से सटे आदिवासी बहुल क्षेत्रों के भी मवेशी बडी संख्या में दिखाई दे रहे हैं. जिससे उनके मवेशियों को ठीक से चारा नहीं मिल पा रहा हैं.

आय के साधन नहीं, बच्चों की शिक्षा पर असर
रास्थानी चरवाहे महाराष्ट्र में आते समय अपने छोटे बच्चों को भी साथ लेकर आते हैं. यहां तक की इनके साथ और दूध पीते बच्चें भी रहते हैं. यह चरवाहे जिले के करीब 10 महीने अपना डेरा डाले रहते हैं. जिसमें इनके छोटे बच्चे शिक्षा से भी प्रभावित होते हैं. यही उनका सबसे बडा नुकसान होता हैं. यहां आने पर इनके पास हाय का कोई साधन नहीं रहता हैं. जो किसान इन्हें अपने खेतों में पनाह देते है, उससे किसानों की बंजर जमीन भी ऊपजाऊ हो जाती हैं. लेकिन इसके बदले कोई भी किसान इनकी माली मदद नहीं करता. आखिर में यह चरवाहे अपनी भेड बकरियां बेचकर अपना गुजारा करते हैं. कई बार ऐसा होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के गुटीया किसान इन्हें धमका कर पैसे छीन लेते हैं ऐसे में कई मामले सुनाई पडते हैं.
राजस्थानी चरवाहे आते समय अपने साथ दर्जनों पालतू कुत्ते साथ लाते है. यह बडे खूंखार होते है क्योंकि जिले में हमेशा बकरियां चोरी की बडी वारदाते होती रहती हैं. लेकिन इनके खूंखार कुत्ते रात भर रखवाली करते हैं. यही कारण है कि, इनकी भेडे चोरी नहीं जाती.

भेड बेचकर आय
वापस लौटते समय चरवाहे अपने साथ वर्ष भर में जन्में कई छोटे बच्चें साथ ले जाते है. देखा जाए तो एक भेड साल में दो बच्चे देती हैं. जिसमें मेमने की कीमत दो हजार करीब होती है और भेड जिसे (येडका) भी कहा जाता है 3 हजार के करीब-करीब होती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों के कई लोग भेड के शौकिन होते है वह इसे मनचाहे कीमत में खरीद लेते है. कुछ तो बकरा ईद पर कुर्बानी के लिए खरीदते हैं.

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