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जिले में सबसे ज्यादा पार्टी बदलनेवाले धुरंधर नेता है राजकुमार पटेल

तीन दशकों का रोचक चुनावी सफर

* दो रोज बाद सीएम की उपस्थिति में उठाएंगे धनुष्यबाण
* कभी हाथी तो कभी कमल को थामा था मेलघाट के आदिवासी नेता ने
अमरावती/दि. 7 – अपने पिता दयाराम पटेल से राजनीति का ककहरा सीखनेवाले राजकुमार पटेल आज की घडी में जिले और संभाग में सर्वाधिक चर्चित राजनेता बने हैं. वे दो रोज बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सत्तारुढ शिवसेना में प्रवेश कर रहे हैं. पटेल ने गत तीन दशकों में अपनी राजनीति से बडे-बडे जानकारों को अचंभे में डाला है. उनके पैंतरे सभी को चकित करते रहे हैं. इस बार उन्होंने धनुष्यबाण उठाने की घोषणा रविवार के धारणी के अपने सम्मेलन में कर दी. अमरावती मंडल ने इस विषय में शनिवार शाम ही समाचार प्रकाशित किया था. पटेल के कदम को प्रहार के सर्वेसर्वा एवं राज्य में तीसरी शक्ति खडी करने की कोशिश कर रहे अचलपुर के चार बार के विधायक बच्चू कडू के लिए तगडा झटका सियासी जानकार मान रहे हैं. किंतु बडे-बूढों की वह बात सोलहआने सच सिद्ध हुई है कि, राजनीति में कौन किस तरफ पाला बदल ले, कहा नहीं जा सकता. जहां तक विधायक पटेल की बात है, तो उन्होंने तो अमूमन प्रत्येक इलेक्शन में ही अलग स्टैंड लेकर काफी जानकारों चौंकाया है.
* 30 वर्षों का करियर
मेलघाट के दुर्गम एवं वनों से घिरे चिखलदरा और धारणी तहसीलो का राज्य विधानसभा में तीन बार प्रतिनिधित्व करनेवाले राजकुमार पटेल का तीन दशकों का सियासी सफर रोचक कहा जा सकता है. पटेल ने 1995 से लेकर अब तक 6 इलेक्शन लडे. तीन बार वे विधानसभा की सीढियां चढने में कामयाब रहे. तीन बार थोडे अंतर से चूक गए. किंतु कुछ-कुछ फिनिक्स पक्षी की तरह उन्होंने अपनेआप को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है. जब जब उन्होंने विधानसभा चुनाव जीते तो अपने प्रतिस्पर्धी को चारों खाने चित किया. 2019 में तो मेलघाट टाइगर पटेल की लीड समूचे विदर्भ में सर्वाधिक रही थी. प्रदेश में भी कुछ ही नेता पटेल से अधिक अंतर से अपने प्रतिस्पर्धी को परास्त कर सके थे.
* बार-बार बदला पाला, बनाया रिकॉर्ड
मेलघाट देशभर में अपने बाघो के लिए जाना जाता है. ऐसे में विधायक राजकुमार पटेल भी वहां के बाघ ही कह सकते हैं. पटेल ने राजनीति में हर बार पाला बदला है. वे जिले में सर्वाधिक बार एक पक्ष से दूसरे पक्ष में दाखिल होनेवाले नेता कहे जा सकते हैं. 1995 में चुनावी राजनीति का प्रारंभ करनेवाले पटेल ने उस समय बहुजन समाज पार्टी के हाथी की सवारी की थी. किंतु पटल्या गुरुजी मावस्कर के हाथों उन्हें असफलता प्राप्त हुई. किंतु पटेल ने हार नहीं मानी. उनके पिता दयाराम पटेल राजनीति में खांटी (धुरंधर) नेता के रुप में पहचान रखते थे. राज्य शासन में मंत्री भी बने थे. ऐसे में पुत्र राजकुमार ने अगले पांच वर्षों तक मेलघाट के जनजातीय लोगों के लिए काम करना जारी रखा.
* बीजेपी की टिकट पर हुए सफल
95 की पराजय के बावजूद अपने कार्यो से न डिगनेवाले राजकुमार पटेल ने 1999 आते-आते भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश कर लिया. उस समय प्रदेश में भाजपा-शिवसेना युति की सरकार थी. जिसका राजकुमार पटेल को फायदा हुआ. पटेल ने 1999 के चुनाव में कमल निशानी थाम कर सतपुडा की वादियों अर्थात मेलघाट विधानसभा में कमल खिलाया. इस बार पटेल ने अपने प्रतिस्पर्धी कांग्रेस के रामू पटेल को 40698 वोटो से करारी शिकस्त दी. किंतु राज्य में सरकार आघाडी की बनी. 2004 के चुनाव में भी राजकुमार पटेल ने बाजी मारी. इस बार भी उनके मुकाबले रामू पटेल ही थे. राजकुमार पटेल भाजपा टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे.
* दो चुनाव में चखी हार
बाद के दो चुनाव 2009 और 2014 में राजकुमार पटेल यह व्यक्तित्व विधानसभा के बैलेट पेपर पर कायम रहा. किंतु पहले वे कांग्रेस के केवलराम काले से चुनाव हार गए. 2014 में भाजपा के प्रभुदास भिलावेकर ने राजकुमार पटेल को परास्त कर पहली बार विधानसभा में कदम रखा. इस बार पटेल राकांपा घडी के प्रत्याशी थे. 2019 में उन्होंने कमाल किया.
* 2019 में रिकॉर्ड लीड
राज्य में भाजपा-शिवसेना सरकार के बावजूद राजकुमार पटेल ने मेलघाट में अपना तगडा जनसंपर्क इस कदर कायम रखा कि, इस बार पुन: पाला बदलने के बावजूद मेलघाट की जनता ने अपने बाघ को सिर-आंखों पर बैठाया. धडाधड इवीएम के बटन दबाए. अपने प्रतिस्पर्धियों को चारों खाने चित कर राजकुमार पटेल 44 हजार से अधिक वोटो की लीड लेकर दनदनाते हुए तीसरी बार विधानसभा में दाखिल हुए. प्रहार के बच्चू कडू ने ऐन समय पर राजकुमार पटेल को उम्मीदवारी दी थी. पटेल ने भी उन्हें निराश नहीं किया. इस प्रकार पिछले विधानसभा में प्रहार के विधायकों की संख्या दोगुनी हो गई थी.
* लोकसभा चुनाव से संकेत
लोकसभा चुनाव में विधायक पटेल के नेता विधायक कडू ने प्रहार के टिकट पर दिनेश बूब को चुनाव लडाया. ऐसे में मेलघाट विधानसभा क्षेत्र में स्वाभाविक रुप से बूब की लीड जा जिम्मा विधायक पटेल पर था. पटेल ने चुनाव दौरान भरपूर परिश्रम किया. गांव-गांव में सभाएं की. बावजूद इसके वे प्रहार प्रत्याशी दिनेश बूब को अपने क्षेत्र से लीड नहीं दिला सके. यहां भाजपा उम्मीदवार नवनीत राणा ने 30 हजार वोट की लीड ली थी. जिससे लोकसभा चुनाव के समय पटेल को कुछ संकेत हो गए थे. विधानसभा आते-आते उन्होंने बच्चू कडू का तीसरी आघाडी में साथ देने की बजाए अपनी अलग राह चुन ली.
* एकनाथ शिंदे का साथ दिया भरपूर
प्रहार प्रत्याशी रहने पर भी दोनों ही विधायकों बच्चू कडू एवं राजकुमार पटेल को सदन में निर्दलीय विधायक के रुप में गिना जाता था. कडू और पटेल की जोडी ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का जोरदार साथ दिया. यह जोडी प्रदेश में प्रसिद्ध हो गई. शिंदे के साथ के कारण बदले में पटेल को अपने विधानसभा क्षेत्र मेलघाट के लिए भरपूर विकास फंड भी प्राप्त हुआ. जिससे मेलघाट में उन दुर्गम गांवों में भी बिजली, पानी मयस्सर हो रहा है. जहां स्वतंत्रता के अनेक दशको बाद भी उक्त दोनों की समस्या से आदिवासी समाज जूझ रहा था.
* 10 को भव्य प्रवेश
एकनाथ शिंदे की शिवसेना में दाखिल होकर जिले की राजनीति में एक नया अध्याय रचने जा रहे राजकुमार पटेल 10 अक्तूबर को हजारो कार्यकर्ताओं के साथ धनुष्यबाण उठानेवाले हैं. पटेल ने इसके लिए पहले अपने डायहार्ड कार्यकर्ताओं से चर्चा की. उनसे राय ली. धारणी सहित अनेक गांवों में अपने खासमखास कार्यकर्ताओं से चर्चा करने के बाद शनिवार शाम अमरावती मंडल से बातचीत में उन्होंने खुलासा कर दिया कि, वे 10 अक्तूबर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की उपस्थिति में धनुष्यबाण उठाने जा रहे हैं. इस समय हजारो कार्यकर्ता अपने लीडर विधायक पटेल के संग शिवसेना शिंदे में शामिल होंगे. शिवसेना को अमरावती जिले में महत्वपूर्ण लीडर मिल रहा है. सीएम शिंदे मेलघाट में लगभग 800 करोड के कामों के भूमिपूजन उस दिन करने जा रहे हैं.

* कडू ने भी दिखाए तेवर, देंगे तगडा उम्मीदवार
विधायक बच्चूू कडू ने राजकुमार पटेल के पाला बदल पर दोनों प्रकार की प्रतिक्रिया दी. कडू ने एक ओर कहा कि, पटेल के साथ मैत्री कायम रहेगी. वहीं दूसरी ओर मेलघाट में तीसरी आघाडी का सक्षम उम्मीदवार देने की भी बात कही. कडू ने कहा कि, उन्हें कमजोर करने का प्रयत्न शुरु किया गया है. राजकुमार को टिकट देकर प्रहार को असमर्थ करने का दाव है. जिसे वे सफल नहीं होने देंगे. कडू ने कहा कि, कोई भी पार्टी नेता पर नहीं तो अपने कार्यकर्ता और जनता पर निर्भर होती है. एक विधायक गया तो क्या, हम 10 विधायक तैयार करेंगे. गत 20 वर्षो से से किसी भी बडे दल का समर्थन न लेते हुए हमने चुनौतियों का मुकाबला किया है. कडू ने कहा कि, कुछ लोग चुनाव से डरते हैं. किंतु चुनाव हमसे डरता है. राजकुमार पटेल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए शिवसेना में जा रहे होंगे तो हम भी मित्रता कायम रख चुनाव लडेंगे. शिंदे शिवसेना ने हमें तोडने का प्रयत्न किया है. उसका हम बराबर जवाब देंगे. कडू ने चेतावनी के लहजे में कहा कि, इसका परिणाम एकनाथ शिंदे सरकार को भुगतना पडेगा. कडू ने आरोप लगाया कि, लोकसभा चुनाव का बदला लेने का प्रयास चल रहा है. अभी भी और चार-पांच लोग पार्टी छोडकर जा सकते हैं.


* तीसरी आघाडी से तालमेल नहीं
विधायक पटेल ने स्पष्ट किया कि, तीसरी आघाडी से वे तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे. ऐसे में प्रहार से अलग होकर मुख्यमंत्री की शिवसेना में शामिल होने की बात पटेल ने कही. उन्होंने बताया कि, 10 तारीख को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे धारणी आ रहे हैैं. उनकी उपस्थिति में वे शिवसेना में जाएंगे. पटेल ने धारणी में रविवार को हुए सम्मेलन में कार्यकर्ताओं से संवाद किया. पश्चात शिवसेना में एंटी का अधिकृत ऐलान कर दिया.

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