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राम : सर्वकालिक और सर्वदेशीय

मर्यादा पुरुषोत्तम राम सिर्फ एक नाम,एक वनवासी, एक राजा भर नहीं हैं अपितु प्राणी मात्र के जीवन के प्रत्येक मोड़ को स्पर्श करते हैं. वे संपूर्ण सृष्टि के बीज रूप तथा संजीवनी हैं. मनुष्यता के करीब जाने के लिए राम के गुणों को समग्रता में समझना पड़ेगा वस्तुतः राम को किसी ग्रन्थ विशेष में वर्णित, किसी परिवार, किसी समाज या राष्ट्र मात्र का पर्याय नहीं मानना चाहिए बल्कि वे एक विशिष्ट सार्वभौमिक-सांस्कृतिक चेतना हैं. भक्ति,निष्ठा और विश्वास का महाभाव हैं. अहिंसा,करुणा और परमार्थ की प्रेरणा हैं. राजमहल के सुख को एक झटके में त्याग कर सामान्य मनुष्य की भांति वन-वन भटकते हुए उन्होंने दिव्य गुणों तथा अपार शक्ति और सामर्थ्य को परिभाषित किया है.वे सार्वकालिक और सर्वदेशीय हैं. उनका चरित्र विभिन्न विरोधों,विचारों,संस्कृतियों, जीवनशैलियों और साधनों में सुंदर समन्वय स्थापित करता है .
वर्तमान समय नैतिक,धार्मिक,सांस्कृतिक और सामाजिक ह्रास का समय है. ऐसे समय में राम का,राम-चरित्र का सार्वकालिक मूल्यबोध ही हमें उबार सकता है. उनके कृत्य में मूल्यबोध इतने स्वरूप में दिखाई पड़ते है कि वे राजा,रंक,धनी,दरिद्र,मूर्ख,पंडित सभी को चित्रित करते हैं. राम का भाव जनजीवन में घुला-मिला भाव है. इसमें धर्म,समाज और संस्कृति की परिकल्पना समय की सीमा से बाधित नहीं होती है बल्कि अपनी गहनता में सभी संस्कृतियों, सभी वर्गों एवं सभी समाज को समन्वित कर अपनी गहराई में उतार लेती है. राम की रावण पर विजय की परिकल्पना को किसी देश या राष्ट्र तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि यह तो विश्व के लिए पथ-प्रदर्शक है. विश्व मानव के जीवन के घात-प्रतिघात,प्रेम-द्वेष ही तो इसमें सजीव हुए हैं.
राम-कथा में मर्यादा या आदर्श को ही मजबूत जीवन का आधार माना गया है. यही राम के जीवन का उद्देश्य था. अयोध्या के राम अपने इन आदर्श गुणों के कारण विश्व भर में व्याप्त हो जाते हैं. मंगोलिया,चीन,जापान,कम्बोडिया,लाओस (स्वर्ण भूमि) थाईलैंड, इंडोनेशिया, बर्मा,श्रीलंका यहाँ तक कि यूरोपीय एवं अमेरिकन विद्वानों को भी राम ने अपनी ओर आकर्षित किया है. राम हमेशा से प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे. जब-जब रावण सिर उठाएगा तब-तब राम समन्वय की संस्कृति फैलाने के लिए बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए, अन्याय पर न्याय को स्थापित करने के लिए आएँगे.
सर्वग्राही राम के इस अद्वतीय चरित्र को बार-बार याद करने से मानवाता पुष्ट होती है. पाँच सौ वर्षों के भीषण संघर्षों के बाद आज वह दिन आया है जब देश का कण-कण रोमांचित हो उठा है. इस रोमांच में राम मय होना,राम-चरित का बखान करना स्वतः स्फूर्त हो रहा है.यह ऐसा रोमांच है जो गूंगे के गुड़ की तरह भीतर ही भीतर घुलते हुए परम तृप्ति को दर्शा रहा है.

– आशा पाण्डेय
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कैंप अमरावती

* प्रथितयश लेखिका हैं आशा जी
डॉ. आशा पाण्डेय हिंदी की लब्ध प्रतिष्ठित लेखिका हैं. जिनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनमें यात्रा वृत्तांत, कहानी संग्रह, कविता संग्रह, ललित निबंध, उपन्यास का समावेश है. अमरावती मंडल के विशेष अनुरोध पर आपने यह लेख भेजा है. राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से गौरवान्वित लेखिका डॉ. पाण्डेय राष्ट्रवादी विचारों की पुरस्कर्ता हैं.

 

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