अभी तक हार के गम को भुला नहीं सकी राणा
सार्वजनिक संबोधनों में दुखी और भावुक हो रही
* अपने आप को संभालना और संवारना होगा उन्हें
अमरावती/दि.7 – अमरावती के राजनीतिक क्षितिज पर धूमकेतू की तरह उभरी जिले की सबसे धुरंधर महिला नेत्री नवनीत राणा लोकसभा चुनाव में मात्र थोडे अंतर से हुई पराजय का दुख विस्मृत नहीं कर पायी है. वे सार्वजनिक समारोह में संबोधन करते करते भावुक हो रही है. उनके चेहरे पर चुनावी हार का गम दिख रहा है. दुखी और भावुक हो जाती है. दो माह बीत गये. फिर भी राणा उबर नहीं पायी है. जबकि उनके समर्थकों सहित अमरावती में राजनीति के जानकारों को भी लगता है कि, नवनीत राणा को स्वयं को संभालना, संवारना होगा. उनसे राजनीति में लंबी पारी की आशा अनेक को हैं, बल्कि वे यह भी कह रहे हैं कि, देश के अनेक धाकड राजनीतिज्ञों की भांति अमरावती की यह लेडी लीडर भी अपने आप को संभाल लेगी.
* राणा से विवाह और राजनीति का ककहरा
नवनीत राणा का कोई एक तप पहले अमरावती के युवा नेता, विधायक रवि राणा से परिणय हुआ. बेशक यह विवाहोत्सव भी भव्य-दिव्य रहा. उनके साथ सैकडों अन्य युगलों ने भी उस सामूहिक विवाह में शादी की थी. नवनीत राणा फिल्मी संसार छोडकर आयी थी. यहीं माना जा रहा था कि, वे विधायक की पत्नी के रुप में अपने दायित्व निभाते हुए सुघड गृहिणी बनेगी और राणा परिवार की साज संभाल करेगी.
* घर में राजनीतिक माहौल
यजमान विधायक होने से नवनीत राणा को विवाह के पहले दिन से ही राजनीतिक वातावरण घर में मिला. उनके राजनीति में आने की उस समय भले ही संभावना नहीं लग रही थी. किंतु अपने यजमान रवि राणा के कहने पर उन्होंने सार्वजनिक जीवन में एंट्री ली. युवा स्वाभिमान संगठन के कार्यक्रमों में उपस्थिति के साथ उन्होंने समय के साथ मराठी भाषा सीखकर छोटे-मोटे भाषण भी देना प्रारंभ किये. जिससे जानकारों ने उनके राजनीतिक भविष्य की भविष्यवाणी करनी प्रारंभ कर दी थी. युवा राजनेता रवि राणा ने ही पत्नी का सियासत के पाठ पढाये.
* लडा सीधे लोकसभा इलेक्शन
घर परिवार में मिले राजनीतिक और सामाजिक वातावरण के कारण अपने आप को नवविवाहिता नवनीत ने झोंक दिया था. फलस्वरुप अमरावती की सुरक्षित लोकसभा सीट से उनके चुनाव लडने के कयास काफी पहले से प्रारंभ हो गये थे. आखिर 2014 के लोकसभा के मैदान में उन्होंने राकांपा प्रत्याशी के रुप में उतरकर मोदी लहर के बावजूद प्रतिस्पर्धी और अनुभवी राजनेता को नाको चने चबवा दिये थे. थोडे अंतर से केवल दो साल पहले राजनीति की पिच पर कदम रखने वाली नवनीत को पराजय का सामना करना पडा. उल्लेखनीय है कि, नवनीत राणा ने राजनीति में नई होने के बावजूद प्रदेश की सियासत के चाणक्य कहे जाते शरद पवार, अजीत पवार को प्रभावित किया था. जिससे अमरावती की आरक्षित सीट पर शरद पवार ने नवनीत को घडी थमाई थी.
* 5 वर्षों तक संघर्ष, तगडा जनसंपर्क
नवनीत राणा लोकसभा चुनाव में पराजय का स्वाद चखने पर भी मैदान में डटी रही. उन्होंने इस दौरान मातृत्व सुख भी प्राप्त किया. साथ ही साथ अपना जनसंपर्क और मजबूत करने के लिए वे लगी रही. 5 वर्षों तक संघर्ष किया. जनसंपर्क तो इतना तगडा कर दिया कि, वे जिले ही नहीं क्षेत्र की सभी महिला नेत्रियों को पीछे छोडकर गजब की लोकप्रिय हो गई थी. इसके पीछे उनका अनथक परिश्रम भी रहा. इसमें कोई दोराय नहीं. राणा ने लोगों के काम भी काफी किये.
* जीता लोकसभा का रण, दिल्ली में पहुंच
नवनीत राणा ने अपने जबर्दस्त परिश्रम और राजनीति हेतु जरुरी सभी बातों की सिखावन के साथ भाषण कला, अन्य भाषाओं पर प्रभुत्व किया. जिससे 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अमरावती में इतिहास रच दिया. जब वे आघाडी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लोकसभा पहुंची. जहां पहुंचने दूसरे नेताओं को दशक लग जाते हैं. वहां राणा ने अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बूते दिल्ली में भी पहुंच बना ली. वे केवल एक वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंच रखने लगी.
* भाजपा नेताओं को किया बौना
राणा का राजकीय उत्कर्ष बढता रहा. वे भाजपा के अनेक प्रादेशिक नेताओं की तुलना में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं तक पहुंच बढाती गई. 4 वर्षों में राणा ने न केवल अमरावती और महाराष्ट्र बल्कि भारत के बाहर एशिया खंड के अनेक देशों में भी पॉपूलरिटी प्राप्त कर ली थी. भारत के बाहर भी उनके आलोचक और समर्थक दोनों ही बनने लगे थे. ऐसे में भाजपा ने उन्हें लोकसभा के लिए अमरावती से टिकट दिया. अदृश्य शक्ति की बदौलत उनके सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी फेवर में गये. अमरावती से कमल के फूल पर उनकी उम्मीदवारी से कहा जा रहा था कि, राणा 100 प्रतिशत यह चुनाव जीतेगी और नई मोदी (2024) सरकार में वे कैबिनेट तक पहुंच रखेगी.
* पराजय ने कर दिया दुखी
नवनीत राणा की विजय की कामना सभी कर रहे थे, तभी लोकसभा चुनाव में झटका लगा. मात्र 18 हजार वोटों के डिफरेंस से वे चुनाव हार गई. नवनीत ने इस हार को इस कदर दिल से लगा लिया कि, दो दिनों तक वे अपने कार्यकर्ताओं के सामने भी नहीं आयी. 15 दिनों तक उन्होंने मीडिया से भी बात नहीं की. इस दौरान कई बार उनकी आंखों में आंसू देखे गये. वे दिल्ली जाकर मोदी और शाह से मिली. जिससे आशा जतायी गई कि, उन्हें राज्यसभा में अवसर मिलेगा. किंतु ऐसा नहीं हुआ.
* दो माह बाद भी भावुकता हावी
नवनीत राणा लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित हुए दो माह से अधिक समय बीत जाने पर भी भावुक और दुखी दिखाई देती है. उन्होंने विद्यार्थियों के सत्कार समारोह के भाषण में भी अपना दुख व्यक्त किया है. वे कई अवसरों पर संबोधन करते-करते रो पडी है, यह बात उनके समर्थकों को उद्वेलित और उद्विग्न कर रही है.
* तुझ को लडना होगा
नवनीत राणा को अपने आप को संभालना होगा. हमें उन्हें सलाह देने का कोई अधिकार नहीं है. फिर भी यह जानते हुए कि, राजनीतिक भविष्य उज्वल है. उन्हें पराजय के गम से बाहर निकलना होगा. पूरा राजनीतिक जीवन है. इस तरह की पराजय देश के अनेक बडे नेताओं के जीवन में भी आयी है. उन्होंने अपने आप को संभाला और संवारा. अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं. इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, हेमवंती नंदन बहुगुणा, जॉर्ज फर्नाडिस, लालकृष्ण आडवाणी अनेक नाम हैं. जिन्होंने जितनी कडी पराजय, उससे अधिक कडा परिश्रम, समर्पण कर राजनीति में सफलता के सोपान रचे हैं. आज इतिहास यह गाथा बतलाता है.