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विदर्भ में राष्ट्रसंत ने जगाई थी क्रांति की अलख

भारत छोडो आंदोलन का किया था शंखनाद

तिवसा/दि.8– भारतीय स्वाधिनता संग्राम में सन 1942 के अगस्त क्रांति संघर्ष का अनन्य साधारण महत्व है. जब आज ही के दिन 8 अगस्त को महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोडो की चेतावनी देते हुए सभी भारतियों को करो या मरो का संदेश दिया था. महात्मा गांधी के नेतृत्व में विदर्भ क्षेत्र में इस संघर्ष को प्रखर करने का काम राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने किया था और राष्ट्रसंत ने अपने भजनों के जरिये इस स्वाधीनता संग्राम को विदर्भ क्षेत्र में एक अनूठा रंग दिया था.
अब काहे को धूम मचाते, झाडू झडूले शस्त्र बनेंगे, भक्त बनेगी सेना, पत्थर सारे बॉम्ब बनेंगे, नाव लगेगी किनारे जैसे भजनों के जरिये राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने अंग्रेजों को चेतावनी देने के साथ-साथ विदर्भवासियों में आजादी को लेकर स्फूर्ति भरने का काम किया था. राष्ट्रसंत द्वारा आष्टी, चिमूर, नागपुर व चंद्रपुर आदि स्थानों पर शुरू किये गये आरती मंडल तथा जगह-जगह खंजरी वादन के साथ किये जाते भजन के जरिये राष्ट्रप्रेम की भावना को जागरूक किया जा रहा था, ताकि सभी लोगोें को स्वाधीनता संग्राम के साथ जोडा जा सके. उस समय आरती मंडलों का काम बडी गोपनीय पध्दति के साथ श्यामराव दादा मोकदम के मार्गदर्शन में चला करता था और विदर्भ क्षेत्र के आष्टी, चिमूर व यावली में हुए भारत छोडो आंदोलन ने अगस्त क्रांति में बडी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. खुद राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने इससे पहले 14 अगस्त 1934 को आष्टी के गांधी चौक में ब्रिटीशों के गुस्से की परवाह किये बिना गोपाल वाघ व मल्लिकार्जून आप्पा गंजीवाले के निवेदन पर सबसे पहली बार तिरंगा ध्वज फहराया था और 2 जून 1940 को इसी स्थान पर उन्होंने दूसरी बार तिरंगा ध्वज फहराया. ऐसा ही ध्वजारोहण राष्ट्रसंत ने चातुर्मास के निमित्त चिमूर में भी किया था. पश्चात सन 1942 में 8 अगस्त को महात्मा गांधी ने भारत छोडो का नारा देते हुए करो या मरो का संदेश दिया. जिससे अगस्त क्रांति का सुत्रपात हुआ. पश्चात 9 अगस्त को राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का आष्टी के गांधी चौक में भजन हुआ और इस भजन के बाद आरती मंडल के कार्यकर्ताओं ने पत्थर सारे बॉम्ब बनेंगे, भक्त बनेगी सेना के संदेश को हकीकत में साकार करने का प्रयास किया. वहीं यावली के गांधी चौक में 15 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की शुरूआत हुई. जहां पर सत्याग्रहियों ने तिरंगा ध्वज फहरा दिया. जिसकी रक्षा करनेवाले युवाओं पर पुलिस ने 18 अगस्त को गोली चलाई. जिसमें तुलसीराम तडस, रामचंद्र भोजने व राजाराम औरंगपुरे शहिद हुए और कई लोग गोली लगने से घायल हुए. पश्चात करीब 62 लोगों पर ब्रिटीश हुकुमत द्वारा मुकदमे दर्ज किये गये. इसके बाद विदर्भ के आष्टी, चिमूर व यावली सहित बेनोडा, वरूड व उत्तमगांव जैसे कई गांवों के युवा भी राष्ट्रसंत से प्रेरणा लेकर आजादी की लडाई में पुरे जी-जान से उतर पडे. ऐसे में कहा जा सकता है कि, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने गांव-गांव तक आजादी की अलख जगाने का प्रयास किया. इस संघर्ष के कर्णधार उन गांवों के सर्वसामान्य लोग ही थे और सर्वसामान्य लोगों को नायक बनाकर आजादी की लडाई में उतरने हेतु प्रेरित करने का काम राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने किया था.

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