अमरावती

दिवंगत पति के सेवा लाभ से कर्ज की वसूली

पत्नी की हाईकोर्ट में गुहार

* 14 लाख में से 10.84 लाख रुपयों की हुई थी कटौती
नागपुर/दि.27– शिक्षक पति के निधन पश्चात मंजूर हुए सेवा लाभ व पारिवारिक निवृत्ति वेतन में से कर्ज की कठोर वसूली किए जाने के चलते पीडित पत्नी ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में गुहार लगाई. इसके बाद अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के ग्राम विकास सचिव सहित अन्य संबंधित सक्षम अधिकारियों को नोटीस जारी कर स्पष्टीकरण पेश करने का आदेश दिया. इस मामले में न्यायमूर्ति अतुल चांदुरकर व न्यायमूर्ति वृषाली जोशी के समक्ष सुनवाई हुई.

कविता चांदेकर नामक महिला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि, उसके पति संजय चांदेकर सन 1982 से गडचिरोली जिला परिषद की प्राथमिक शाला में शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे. जिनका 11 अक्तूबर 2020 को निधन हो गया. पश्चात 16 जनवरी 2021 को सविता चांदेकर को उनके पति की एज्युटी सहित अन्य सेवा लाभ को 14 लाख रुपए मंजूर किए गए. परंतु गटविकास अधिकारी ने इस रकम में से श्रीकन्य का सहकारी बैंक द्वारा दिए गए कर्ज के 10 लाख 84 हजार 810 रुपए वसूल करने का निर्देश दिया. जिसके चलते सविता चांदेकर को केवल तीन लाख 15 हजार 190 रुपए की रकम अदा की गई. इसके अलावा कविता चांदेकर को 12 अक्तूबर 2020 से 29 हजार 250 रुपए की पारिवारिक टेंशन मंजूर हुई. परंतु इस रकम में से जिला परिषद प्राथमिक शिक्षक सहकारी पतसंस्था ने सितंबर 2022 से प्रतिमाह 8 हजार रुपए की कटौती करनी शुरु कर दी.

कर्ज की इस कटौती को विवादास्पद वसूली व अवैध बताते हुए कविता चांदेकर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि, उन्हें सुनवाई का कोई भी मौका नहीं देते हुए उनके पति के सेवा लाभ से कर्ज की वसूली करनी शुरु की गई है. साथ ही इस बारे में कोई समाधानकारक स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है. इस कार्रवाई के चलते उनका और उनके परिवार का जिना मुश्किल हो गया है. परिवार में एक बेटा व एक बेटी है. जिसमें से बेटी कक्षा 12 वीं में तथा बेटा कक्षा 9 वीं में पढाई कर रहा है. जिनकी पढाई-लिखाई पर अच्छा खासा पैसा खर्च हो रहा है. परंतु सेवा लाभ व पेंशन की रकम में से शुरु की गई जबरिया वसूली के चलते परिवार को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड रहा है. अत: इस वसूली को तत्काल प्रभाव से रुकवाया जाए. इस याचिका को सुनवाई हेतु स्वीकार करने के साथ ही नागपुर हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए इस पर संबंधितों से स्पष्टीकरण मांगा.

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