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धर्म श्रेष्ठता सीखाता है, आलोचना करना नहीं

तीसरे दिन की कथा में बोले पं. प्रदीप मिश्रा

* शिवमहापुराण कथा को समझाया विभिन्न प्रसंगों से
* कोंडेश्वर सहित विदर्भ के शिवालयों का बताया महत्व
अमरावती/दि.18 – इन दिनों यह प्रवृत्ति बनती जा रही है कि, या तो लोग अपने धरम की बजाय दूसरों के धर्म में बहुत अधिक रुची लेने लगते है और दूसरों के धार्मिक स्थलों पर जाने या उनकी मान्यताओं को मानने का भी अच्छा खासा चलन शुरु हो गया है. या फिर कुछ ऐसे भी लोग होते है, जिन्हें आपने खुद के धर्म के बारे में तो जानकारी होती नहीं, लेकिन वे दूसरों के धर्म की आलोचना करते-फिरते है. इस तरह की दोनों प्रवृत्तियां बेहद खराब होती है, क्योंकि हर व्यक्ति को चाहिए कि, वे अपने धर्म व धार्मिक मामलों के बारे में सोचे और अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन करें, तो किसी को भी किसी अन्य धर्म के बारे में सोचने या उसकी आलोचना करने की जरुरत ही नहीं पडेगी. क्योंकि धर्म तो श्रेष्ठता की बात सीखाता है. आलोचना करना नहीं और श्रेष्ठता का यह मतलब भी नहीं खुद को उंचा मानते हुए दूसरों को नीचा दिखाया जाये या कमतर आका जाये, बल्कि यह अपने-अपने अध्यात्मिक उत्थान का मामला है. हमें अपना ध्यान इसी बात पर केंद्रीत करना चाहिए. इस आशय का प्रतिपादन अंतर्राष्ट्रीय कथा प्रवक्ता पं. प्रदीप मिश्रा (सिहोरवाले) द्वारा किया गया.
समिपस्थ भानखेडा मार्ग स्थित हनुमान गढी में चल रही शिवमहापुराण कथा के तीसरे दिन कथा के सिलसिले को आगे बढाते हुए कथा प्रवक्ता पं. प्रदीप मिश्रा ने कथा के दौरान भाविक श्रद्धालुओं को उक्त संदेश दिया. इस पांच दिवसीय आयोजन के तहत तीसरे दिन की कथा हेतु पं. प्रदीप मिश्राजी का दोपहर 1.25 बजे व्यासपीठ पर आगमन हुआ. इस समय सांसद नवनीत राणा व विधायक रवि राणा सहित हनुमान चालीसा चैरिटेबल ट्रस्ट के मुख्य संरक्षक लप्पी जाजोदिया ने व्यासपीठ का पूजन किया. आज की कथा में आरती हेतु आत्महत्या कर चुके किसानों की विधवा पत्नियों व स्वास्थ्य सेविकाओं को आरती हेतु आमंत्रित किया गया था. जिनके साथ बैठकर राणा दम्पति ने तीसरे दिन की कथा सुनी.

इस बात की ओर आज तीसरे दिन की कथा में कथा प्रवक्ता पं. प्रदीप मिश्रा ने विशेष ध्यान दिया और इसका अपनी कथा में उल्लेख करते हुए कहा कि, उन्होंने उनका अब तक का यह अनुभव रहा है कि, ऐसे भव्य-दिव्य आयोजन में बडे-बडे वीआईपी लोगों को रोजाना आरती हेतु आमंत्रित किया जाता है. लेकिन अमरावती में उन्होंने आदिवासियों, सफाई कर्मियों, स्वास्थ्य सेविकाओं व किसान परिवारों की विधवा महिलाओं के हाथों आरती होती देखी है, जो अपने आप में बेहद अनूठी पहल है.
तीसरे दिन की कथा में पं. प्रदीप मिश्रा ने आस्था को सबसे मजबूत जड और विश्वास को सबसे सुंदर वृक्ष बताते हुए कहा कि, यदि ईश्वर के प्रति हम सच्चे हृदय से आस्था व विश्वास रखे, तो भक्ति की फसल ललहाने लगती है. और इश्चित फल प्राप्त होने के साथ ही स्वर्ग एवं मोक्ष के दरवाजे भी खुल जाते है और जन्म जन्मांतर के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है. ऐसे में हमेशा ही ईश्वरीय शक्ति पर आस्था व विश्वास बनाए रखना चाहिए. जिसकी हमेशा ही हमारी आपकी उम्मीद से कही अधिक और कही बेहतर नतीजे सामने आते है. इस बात के अनेकों उदाहरण है. जिन्हें यदि सुनाने बैठा जाये, तो 5 नहीं 50 दिन की कथा भी कम पड जाएगी. ऐसे में हम सभी को चाहिए कि, कौन क्या कह रहा है. इस पर ध्यान देने की बजाय हम अपने ईष्ट पर अपना ध्यान केंद्रीत करें तथा अपने ईष्ट के भक्ति के मार्ग पर चलते रहे, क्योंकि हमारी भक्ति का फल खुद हमें मिलना है. इसका किसी ओर से कभी कोई संबंध नहीं होता. इसी तरह किसी और धर्म के स्थल के सामने माथा रगडने का भी कोई फायदा नहीं है. क्योंकि इसका कोई फल नहीं मिलने वाला है, तो अपना घर छोडकर पडोसी के दरवाजे पर जाकर बेवजह क्यों माथा रगडा जाये.
आज की कथा में माता सती द्वारा खुद को यज्ञकुंड में झोंक दिये जाने का प्रसंग सुनाते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, विधि का विधान मनुष्यों सहित खुद देवताओं व भगवान पर भी असर करता है और इससे कोई भी अछूता नहीं है. यद्यपि विधि के विधान को बदला नहीं जा सकता. लेकिन कुछ उपायो के जरिए संभावित संकटों एवं विपत्तियों के असर को कम जरुर किया जा सकता है. साथ ही साथ अपनी भक्ति के जरिए कुछ संकटों को आने से रोका भी जा सकता है.
विदर्भ क्षेत्र को महिला सशक्तिकरण का ऐतिहासिककाल से सबसे सशक्त उदाहरण बताते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, विदर्भ में पुरातन काल से ही महिलाओं का सम्मान होता आया है. इस बात का सबसे बडा उदाहरण प्रभू श्रीरामचंद्र की दादी यानि राजा दशरथ की माताजी महारानी इंदूमति और भगवान श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी महारानी रुख्मिणी को कहा जा सकता है, जो अपने आप में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है. साथ ही मौजूदा दौर में अमरावती जिले की सांसद नवनीत राणा के तौर पर महिला सशक्तिकरण का जीवंत प्रतिबिंब हम सबके समक्ष है, यानि पुरातनकाल से ही विदर्भ में महिलाओं का सम्मान होता आया है और विदर्भ कन्याए यहां से निकलकर जहां कही पर भी पहुंची. उन्होंने अपने कतृत्व से अपना और विदर्भ क्षेत्र का नाम रोशन किया है.

* कोंडेश्वर है काशी का प्रतिरुप
गत रोज जहां प. प्रदीप मिश्रा ने श्री क्षेत्र तपोनेश्वर का महत्व बताया था और कहा था कि, महर्षि श्रृंगी सहित कई ऋषि मुनियों एवं तपस्वियों की तपोभूमि तपोनेश्वर के तौर पर अमरावती में स्थित है. वहीं आज उन्होंने आयोजन स्थल के पास ही स्थित श्री क्षेत्र कोंडेश्वर का महत्व बताते हुए कहा कि, कोंडेश्वर तो काशी का ही एक प्रतिरुप है. इस संदर्भ में पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, विदर्भ के राजा नियमित तौर पर विदर्भ की काशी जाया करते थे और गंगा मेें स्नान करने के बाद ही अपने अन्य कामों को आगे बढाते थे. जिस पर उन्हें एक बार गंगा घाट पर मिले मुनी ने कहा कि, हमेशा काशी आने की बजाय विदर्भ में शिवलिंग की स्थापना कर वहीं पर गंगाजल से अभिषेक करों, तो भी पुण्य मिलेगा. जिसके बाद उन मुनी महाराज ने एक कमंडल दिया तथा कहा कि, विदर्भ में जहां कही पर भी इस कमंडल को जमीन पर रखोंगे, वहीं पर शिवलिंग स्थापित करते हुए कमंडल में भरे जल से अभिषेक करना होगा. ऐसे में विदर्भ नरेश उस कमंडल को लेकर विदर्भ वापिस लौटे और उसे कोंडण्य मुनी के आश्रम के समक्ष लाकर रख दिया. जहां से लेकर एक नदी भी बहा करती थी. और चारों ओर बेहद मनभावन प्राकृतिक नजारा था. जिस स्थान पर वह कमंडल रखा गया था, उसी स्थान पर काशी विश्वनाथ का प्रतिरुप रहने वाला शिवलिंग स्थापित किया गया है. जिसे आज हम और आप कोंडेश्वर मंदिर के तौर पर जानते है.

* आगे बढना है और कुछ बनना है, तो संघर्ष व ताप सहना होगा
इस समय कच्ची मिट्टी से बनने वाले मटकों की कहानी सुनाते हुए पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, जिस तरह से कच्ची मिट्टी को पहले पानी में स्नान कर उसे अलग-अलग आकार दिया जाता है और मजबूती के लिए बडे आराम व प्यार से थपकी लगाने के बाद उसे धुप में सुखने हेतु रख दिया जाता है तथा बाद में तेज आंच वाली भट्टी में आग चलाकर पकाया जाता है. लगभग वहीं नियम जीवन में भी आगे बढने के लिए लागू होता है. यदि आग अपने जीवन में आगे बढकर कुछ प्राप्त करना चाहते है, तो आपको भी ताप और संघर्ष सहन करने की मानसिक तैयारी रखनी होगी, तभी आप पूरी तरह से पककर तैयार हो पाएंगे, अन्यथा जरासी बारिश होने पर कच्चे मटके की तरह पानी में घुलकर फिर से मिट्टी में मिल जाने का खतरा बना रहता है.

* पं. प्रदीप मिश्रा ने किया हनुमान मूर्ति के निर्माण स्थल का पूजन
– निर्माणाधीन प्रतिमा के चरणों में किया एक रुपए के सिक्के का आधारभूत दान
वहीं शिवमहापुराण कथा के तीसरे दिन पं. प्रदीप मिश्रा ने कथास्थल के पास ही साकार होने वाली हनुमान गढी का मुआयना किया और यहां पर बनाई जा रही 111 फीट उंची हनुमान प्रतिमा के निर्माणस्थल को भेंट दी. जिसके तहत पं. प्रदीप मिश्रा ने यहां पर बनाए गए भव्य चबूतरे पर साकार हो चुके मूर्ति के पैरों का पूजन किया और मूर्ति के चरणों में अपनी ओर से एक रुपए का आधारभूत दान अर्पित किया. उल्लेखनीय है कि, हनुमान गढी का निर्माण करा रहे सांसद व विधायक राणा दम्पति द्वारा सभी भाविक श्रद्धालुओं से यहां चल रहे निर्माणकार्य की नींव में एक-एक रुपए के सिक्के का दान अर्पित करने का आवाहन किया गया है, ताकि हर भाविक श्रद्धालू का इसमें योगदान हो और नींव को मजबूती मिले.

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