अमरावती/दि.22- सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में शिवधारा झूलेलाल चालीहा महोत्सव का आयोजन किया गया है. महोत्सव के छठवे दिन परम पूज्य संत श्री डॉ.संतोष देव जी महाराज ने अपनी मधुर वाणी में फरमाया की जैसे दूध अस्थाई होता है, लेकिन जब दूध को उबाला जाता है और रात को जब ठंडा करके उसमें थोड़ी दही डाली जाती है,सुबह जब उसकी दही को मंथन किया जाता है, तब उससे मक्खन निकलता है, तो वह मक्खन स्थाई हो जाता है, वह कभी फिर दूध नहीं बनता. वैसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में जो आगे एक बार बढ़ा है और अध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त हो गई है, वह फिर सामान्य संसारी की भांति सोच और आचार की दृष्टि से नहीं बन सकता. और वह खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी लाभदायक होता है. वैसे संसार में जो भी वस्तु या व्यक्ति दिखाई देते हैं उसमें कोई भी स्थाई नहीं है, जैसे आज हमने कोई नया ड्रेस लिया, हमने पहनी तो कल उस ड्रेस को नया कोई नहीं कहेगा, व्यवहार जगत में देखा जाता है किसी ने नई कार ली, नई मोबाइल ली तो कुछ ही दिनों में अगर वह बेचने जाता है तो आधी रकम मिलती है. आयु बढ़ने के साथ शरीर में काम करने की क्षमता, स्वास्थ्य में बदलाव एवं सोच में बदलाव भी होता जाता है, मतलब यह सब स्थाई नहीं है, परंतु परमात्मा और उसकी भक्ति स्थाई है, बस शर्त इतनी हैं जब तक भक्ति हमारी सिद्ध नहीं होती, तब तक प्रयास और प्रार्थना करते रहना है.
अक्सर देखा जाता है कुछ लोग कुछ दिन पूजा करके, कुछ दिन साधना करके, कुछ दिन सेवा करके, कुछ दिन सत्संग करके आदि समझ लेते हैं, कि हमने बहुत कुछ कर लिया और यह सब उनसे छूट जाता है, तो केवल उसकी स्मृति रहती है, पर अगर वह निरंतरता में यह सब करते थे, तो बहुत लाभ प्राप्त कर सकते थे. यह याद रहे की आध्यात्मिक क्षेत्र स्थाई प्रयास करने का क्षेत्र है. यहां तक कि सिद्ध पुरुष भी प्रभु प्राप्ति करने के बाद भी प्रयास और प्रार्थना में लगे रहते हैं. 1008 सद्गुरु स्वामी शिवभजन जी महाराज अपनी परंपरा के छठवें पीठाधीश्वर हैं. परंतु वह अक्सर तीसरे पीठाधीश्वर सद्गुरु बाबा रूपभजन जी का नाम लेते थे और उनके नाम पर सेवा कार्य करते थे, क्योंकि एक मान्यता है सतगुरु महाराज चौथे पीठाधीश्वर बाबा कृष्न भजन जी के अवतार थे, तो उस अनुसार उनके गुरुदेव तीसरी पातशाही सतगुरु बाबा रूप भजन जी महाराज गुरु थे, तब ही वह अक्सर उनका नाम लेते थे. और दरोगा प्लॉट राजापेठ स्थित महाराज रूपभजन चैरिटेबल हॉस्पिटल भी सतगुरु देव महाराज ने अपने गुरुदेव के नाम पर बनाई है. इन सभी उदाहरणों से हम सीख रहे हैं, कि भक्ति जन्मों-जन्मों का की साधना का विषय है, ना कि कुछ मिनटों घंटों का. इसीलिए इतना हृदय से भक्ति करें, कि हमारे डीएनए तक या सूक्ष्म संस्कार बन जाए, के जैसे आने वाले जन्मों में भी भक्ति हमारे सूक्ष्म संस्कार का अंग बने और मोक्ष गति पाने तक,जितनी बार भी हम धरती पर जन्म लें, हमारी भक्ति बनी रहे और बढ़ती रहें.