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फॉरेन्सिक लैब में अटकी फर्जी हस्ताक्षरों की रिपोर्ट

मामला 2.49 करोड रूपयें के शौचालय घोटाले का

* उपायुक्त को क्लिनचिट मिलने पर जताया जा रहा आश्चर्य
अमरावती/दि.25– स्थानीय महानगरपालिका में उजागर हुए करीब ढाई करोड रूपये के व्यक्तिगत शौचालय घोटाले मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपे जाने के बाद भी अब तक जांच एजेंसी को फर्जी हस्ताक्षर से संबंधित रिपोर्ट नहीं मिली है. जिसकी वजह से इस मामले की जांच अब भी अधर में लटकी है. जिन दस्तावेजोें के आधार पर यह घोटाला किया गया और बिल जारी किये गये, उन पर दर्ज हस्ताक्षर अपने नहीं रहने का दावा संबंधित अधिकारियों द्वारा किया गया था. ऐसे में उन अधिकारियों हस्ताक्षर के सैम्पल लेकर उन्हें नागपुर स्थित न्यायवैद्यक प्रयोगशाला में जांच हेतु भिजवाया गया. किंतु अब तक उसकी रिपोर्ट मिलना बाकी है.
बता दें कि, महानगर पालिका के झोन क्रमांक 4 बडनेरा अंतर्गत 2015 से 2019 इन चार वर्षों के दौरान करीब 1 हजार 372 शौचालयों का प्रत्यक्ष निर्माण न करते हुए करीब 2 करोड 49 लाख 22 हजार रूपयों का अपहार किये जाने का मामला उजागर हुआ था. इसे लेकर दो स्वतंत्र शिकायतेें दायर की गई थी. साथ ही मनपा के एक लिपीक सहित ठेका पध्दति पर नियुक्त कंप्युटर ऑपरेटर के अलावा 7 ठेकेदारोें के खिलाफ जालसाजी का मामला दर्ज किया गया था. विशेष उल्लेखनीय है कि, इसी झोन में इससे पहले 74 लाख रूपये के फर्जी देयक पेश करने को लेकर अपराध दर्ज हुआ था. यह मामला मई-जून 2020 में उजागर हुआ था. जिसमें पता चला था कि, जनवरी से मार्च 2020 की कालावधी के दौरान 13 फर्जी फाईल पेश करते हुए मनपा की तिजोरी से रकम निकाली गई.

* उपायुक्त के पास जांच का जिम्मा कैसे?
इस पुरे मामले की प्रशासकीय जांच मनपा के उपायुक्त द्वारा की गई. किंतु ध्यान देनेवाली बात यह है कि, ठेकेदारों के नाम पर जो धनादेश जारी किये गये. उन पर आहरण व संवितरण अधिकारी के तौर पर खुद उपायुक्त के भी हस्ताक्षर है. चूंकि उपायुक्त भी संदेहितोें की सूची में है. ऐसे में उन्हें जांच अधिकारी कैसे बनाया जा सकता है, यह सबसे बडा सवाल है. धनादेश पर हस्ताक्षर रहने के चलते यदि तत्कालीन लेखाधिकारी प्रेमदास राठोड को गिरफ्तार किया जाता है, तो हस्ताक्षर करनेवाले अन्य लोगोें को क्लिनचिट कैसे दी जा सकती है और संदेहितों की सूची में शामिल किसी व्यक्ति को जांच अधिकारी कैसे नियुक्त किया जा सकता है, यह सवाल भी पूछा जा रहा है. किंतु इन सवालों का फिलहाल मनपा प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं है. वहीं जारी चर्चाओं के मुताबिक मामले की जांच करनेवाले मनपा उपायुक्त ने खुद ही अपने आप को इस मामले में जांच अधिकारी के तौर पर क्लिनचिट दे दी है.

* ऐसी थी योजना
वर्ष 2015 से 2019 इन चार वर्षों के दौरान करीब 1 हजार 412 शौचालय इस योजना के तहत मंजूर किये गये थे. किंतु इसमें से कुछ गिने-चुने शौचालयों का ही प्रत्यक्ष निर्माण शुरू किया गया और करीब 1 हजार 372 शौचालयों का निर्माण किये बिना ही उनके काम को पूरा दिखा दिया गया और इससे संबंधित फाईल पेश करते हुए करीब 2 करोड 49 लाख रूपये मनपा की तिजोरी से निकाले गये और यह रकम सात ठेकेदारों के बैंक खाते में जमा किये जाने की बात जांच के दौरान सामने आयी थी. पश्चात इस मामले में महानगर पालिका के अधिक्षक द्वारा कोतवाली पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गई. जिसके आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध दर्ज करते हुए मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दी.

व्यक्तिगत शौचालय घोटाला मामले को अंजाम देने हेतु पेश की गई फाईलोें पर जो हस्ताक्षर दर्ज है, उनसे संबंधितों ने अपना कोई संबंध नहीं रहने की बात कही है. ऐसे में संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों व ठेकेदारों के हस्ताक्षरों के सैम्पल लेकर फॉरेन्सिक जांच हेतु भेजे गये है. किंतु अभी इसकी रिपोर्ट मिलना बाकी है. रिपोर्ट मिलने के बाद मामले में अगली जांच होगी.
– शिवाजी बचाटे
पुलिस निरीक्षक, आर्थिक अपराध शाखा

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