रेरा का प्रभावी कानून विदर्भ में बना ‘कागजी’
निर्माण प्रकल्पों के पंजीकृत होने की रफ्तार सुस्त
* न नोटिस, न ही कार्रवाई, बिल्डर-डेवलपर्स में रेरा का डर खत्म
अमरावती/दि.1– राज्य के कई हिस्सों में रेरा में हजारों की संख्या में प्रोजेक्ट्स पंजीकृत हो रहे हैं लेकिन अमरावती कार्यालय के अंतर्गत एक वर्ष में महज 100 से भी कम प्रोजेक्ट ही बढ रहे हैं. जबकि हकीकत में इससे कही अधिक प्रकल्पों का काम प्रत्यक्ष में चल रहा है. जिसकी ओर रेरा महकमे का कोई ध्यान ही नहीं है. अमरावती कार्यालय के उदासीन रवैये के कारण ही बिल्डर-डेवलपर्स से रेरा कानून का डर खत्म हो गया है. न ही बिल्डरों को गलतियों की सजा मिल रही है और न ही रेरा को लेकर कोई इच्छा ही दिखाई दे रही है. रेरा कार्यालय के इस बर्ताव के कारण रोजाना सैकडों लोग गैर पंजीकृत प्रोजेक्ट्स में पैसा डाल रहे हैैं और अपनी गाढी कमाई दांव पर लगा रहे हैं.
* 5 वर्ष में महज 2,064 प्रोजेक्ट्स
विदर्भ के 11 जिलों में पिछले 5 वर्ष में महज 2,064 प्रोजेक्ट्स ही रजिस्टर्ड हुए हैं. गढचिरोली, गोंदिया में तो अब तक आंकडा 10 तक भी नहीं पहुंचा है, जबकि वाशिम जैसे तैसे दहाई अंक तक पहुंच पाने में सफल हुआ है. इससे यही स्पष्ट होता है कि, लोगों का रेरा के प्रति न तो जागरुकता है और न ही रेरा के अधिकारियों को इससे कोई लेना देना है. वे कार्यालयों में बैठकर केवल ऑनलाइन प्रोसेस का हवाला देते है, जबकि बिल्डर और डेवलपर्स इसमें रुचि नहीं लेते है.
* राज्य का आंकडा 36,108
वहीं पूरे राज्य की बात करें तो राज्य में अब तक 36,108 प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन हो चुका है. इनमें मुंबई, ठाणे, पुणे आदि ही आगे है. इन स्थानों में हजारों की संख्या में बिल्डरों ने प्रोजेक्ट पंजीकृत कराये है. इसी प्रकार राज्य में 36,357 लोगों ने एजेंट के रुप में अपना पंजीयन कराया है. वहीं संपूर्ण विदर्भ में केवल 964 एजेंट ने ही पंजीयन कराने की जहमत उठाई है. विदर्भ क्षेत्र के सभी गली-मोहल्लों में एजेंटों की भरमार है लेकिन कोई सूध लेने वाला नहीं है.
* कैसे हो रही रजिस्ट्री
सबसे बडा सवाल यह है कि, राज्य में रेरा पंजीयन के बिना रजिस्ट्री नहीं की जा सकती है. इसके बावजूद विदर्भ सहित हर जगह रेरा नंबर के बिना भी रजिस्ट्री हो रही है. राज्य सरकार की ओर से रजिस्ट्रार कार्यालय को लिखित में आदेश दिया गया है. न ही प्लॉट और न ही फ्लैट की रजिस्ट्री होगी, लेकिन डेवलपर्स ने इसका तोड निकाल लिया है और रजिस्ट्री कार्यालय भी आंख बंद कर राजस्व के लालच में रजिस्ट्री कर रहा है. रेरा नंबर के बिना प्लॉट बेचना गैर कानूनी है. इसलिए आशंका जताई जा रही है कि, ऐसे मेें भविष्य में हजारों लोगों का पैसा फंस सकता है.
* जज की नियुक्ति भी नहीं
चूंकि अमरावती सहित विदर्भ मेें कई प्रोजेक्ट ही पंजीकृत नहीं है, इसलिए इस क्षेत्र में शिकायतों की संख्या भी इक्के-दुक्के हैं. पहले तो इन मामलों को समिति ही निपटा देती है. मामला बडा होने पर मुंबई पीठ में सुनवाई होती है. नागपुर में जज नियुक्त करने की मंजूरी मिल चुकी है और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार हो चुका है. परंतु मामलों की कमी को देखते हुए नागपुर बेंच को शुरु ही नहीं किया जा रहा है.
* आज तक निरिक्षण नहीं
विदर्भ में कानून की दुर्गति का मुख्य कारण ही यही है कि, अधिकारी कमरों से बाहर नहीं निकलते हैं. कमरों में बैठकर लोगों के आने का इंतजार करते हैं. कभी भी किसी भी क्षेत्र का निरिक्षण तक नहीं किया गया है. सुमोटो कारवाई एक भी नहीं हुई है, जबकि रेरा कानून में इसका प्रावधान है. हर गली में बडे-बडे प्रोजेक्ट्स बन रहे हैं, इसके बाद भी पंजीयन न बढना सभी को हैरत में डाल रहा है.
* विदर्भ में पंजीकृत प्रोजेक्ट्स
शहर प्रोजेक्ट्स
नागपुर 1,287
अमरावती 286
वर्धा 150
चंद्रपुर 147
अकोला 59
यवतमाल 48
बुलढाणा 41
भंडारा 24
वाशिम 13
गढचिरोली 08
गोंदिया 01
* 36,108 राज्य में पंजीकृत प्रोजेक्ट्स
* 35,596 पंजीकृत एजेंट्स
* 17,933 राज्य में कुल शिकायतें
* 17,053 पंजीकृत प्रोजेक्ट्स की शिकायतें
* 880 गैर पंजीकृत प्रोजेक्ट्स की शिकायतें