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आदिवासियों का आजीविका हेतु अतिक्रमित वन जमीन से निष्कासन नहीं

नागपुर हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

अमरावती/दि.16 – आजीविका हेतु अतिक्रमण करने वाले वन पट्टाधारक को वन जमीन से निष्कासीत न किया जाए, इस आशय का आदेश मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने विगत 9 फरवरी को दिए है. इस फैसले को आदिवासी समाज हेतु काफी बडी राहत माना जा रहा है.
वन अधिकार अधिनियम 2006 के अस्तित्व में आने के पश्चात विगत 40 वर्षों से वन विभाग की जमीन पर अपने परिवार का उदरनिर्वाह करने हेतु अतिक्रमण करते हुए खेतीबाडी करने वाले आदिवासी समाज के अवसु मंगलू गावडे ने उस जमीन पर स्थायी रुप से व्यक्तिगत वन अधिकार मिलने हेतु अपना प्रस्ताव वन हक समिति के जरिए जिला समिति के पास भेजा था. लेकिन जिला वन हक समिति ने विभिन्न कारणों के चलते इस दावे को खारिज कर दिया था. पश्चात गावडे ने नागपुर स्थित विभागस्तरीय वन हक समिति में अपील की. परंतु विभागीय समिति ने भी वन हकधारक को पट्टा देने से इंकार कर दिया. ऐसे में गावडे ने इन दोनो आदेशों के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एड. श्रावन ताराम के मार्फत याचिका दायर की. जहां पर न्या. अविनाश घरोटे की अदालत ने दोनो पक्षों का युक्तिवाद सुनने के बाद आदेश जारी किया कि, अगले आदेश तक गावडे को उक्त वन जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता.

 

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