* अमरावती जिला हैं राज्य में अव्वल
*3 हजार से अधिक नेत्रदान, 300 से अधिक नेत्र प्रत्यारोपण
अमरावती/दि.10- नेत्रदान के क्षेत्र में अमरावती जिला समूचे राज्य में पहले स्थान पर है. नेत्रदान के क्षेत्र में कार्यरत हरिना फाउंडेशन द्वारा शुरू किये गये नेत्रदान जनजागृति अभियान के चलते अमरावती जिले में अब तक 3 हजार से अधिक नेत्रदान हो चुके तथा 300 से अधिक मरीजों के नेत्र प्रत्यारोपण किये जा चुके है. इसके साथ ही जिले में 51 हजार से अधिक नागरिकों ने मरणोपरांत नेत्रदान का संकल्प लिया गया है.
उल्लेखनीय है कि, हरिना सोनी नामक तीन वर्षीय बच्ची की मृत्यु के उपरांत उसके ही नाम पर वर्ष 2010 में हरिना फाउंडेशन की स्थापना की गई. जिसके पश्चात वर्ष 2011 मेें हरिना फाउंडेशन की सहायता से पहली बार 13 नेत्रदान करवाये गये. उस समय अमरावती जिले में नेत्र प्रत्यारोपण की व्यवस्था नहीं हुआ करती थी. ऐसे में नेत्र प्रत्यारोपण हेतु संबंधित जरूरतमंदों को नागपुर व जालना भेजा जाता था. इस बात के मद्देनजर अमरावती जिले में ही नेत्र प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध कराने हेतु वर्ष 1016 में यहां पर अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त नेत्र अस्पताल शुरू किया गया. जहां पर अब तक 300 से अधिक नेत्र प्रत्यारोपण शल्यक्रियाएं की जा चुकी है.
* विविध उपक्रमों के जरिये जनजागृति
नेत्रदान अभियान को सफल करने हेतु राज्य में नेत्रदान दिवस का सबसे बडा आयोजन भी अमरावती जिले में ही किया जाता है और इस आयोजन के तहत नेत्रदान को लेकर जनजागृति हेतु विविध उपक्रम चलाये जाते है. जिसके तहत अब तक हरिना फाउंडेशन द्वारा आंखों पर काली पट्टी बांधकर अंधेरे का अनुभव करते हुए प्रकाश का महत्व बताने, शहर में विविध स्थानों पर 51 हजार दिये प्रज्वलीत करते हुए प्रकाश का महत्व बताने तथा शहर में जगह-जगह पर नेत्रदान का संदेश देनेवाली रंगोली साकार करते हुए जनजागृति करने जैसे विविध उपक्रम चलाये जाते है.
* नेत्रदान पश्चात कुल 30 प्रतिशत आंखे ही देख पाती है दुनिया को दोबारा
– 40 फीसद आंखे साबित होती है निरूपयोगी
– 50 फीसद प्रत्यारोपितों की ही वापिस आती है नजर
इन दिनों अमरावती शहर व जिले सहित समूचे राज्य में नेत्रदान अभियान बडे जोर-शोर से चल रहा है. जिसे अच्छा-खासा प्रतिसाद भी मिल रहा है. किंतु एक हकीकत यह भी है कि, दान की गई कुल आंखों में से केवल 30 प्रतिशत आंखें ही दोबारा इस दुनिया को देख सकती है और कुल नेत्रदान में से 40 फीसद आंखे पूरी तरह से निरूपयोगी साबित होती है. जिसके उपरांत जो 60 फीसद आंखे प्रत्यारोपण के काम में आती है, उसमें से केवल 50 फीसद लोगों की ही नजर वापिस आती है. ऐसे में जो आंखें प्रत्यारोपण के लिए निरूपयोगी साबित होती है, उन्हें वैद्यकीय प्रयोग के लिए उपयोग में लाकर बायोमेडिकल वेस्ट के तौर कचरे में फेंक देना पडता है.
विशेष उल्लेखनीय है कि, जो लोग पैदाईशी दोनों आंखों से नेत्रहीन होते है, ऐसे लोगोें में से केवल 15 से 20 फीसद लोगोें पर ही कार्निवल ट्रान्सप्लांट यानी नेत्र प्रत्यारोपण किया जा सकता है. इसके अलावा मरणोपरांत नेत्रदान के जरिये प्राप्त आंखों का सबसे अधिक प्रयोग किसी हादसे या बीमारी की वजह से आंखों की रोशनी कमजोर हो जानेवाले लोगों के लिए बडे पैमाने पर किया जाता है. जिसके अच्छे-खासे परिणाम भी मिलते है, ऐसा नेत्रशल्य चिकित्सकों का मानना है.
* पूरी आंख होती है दान, केवल पर्दा आता है काम में
मरणोपरांत नेत्रदान की इच्छा व्यक्त करनेवाले व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात उसकी पूरी आंख को निकालकर आय बैंक में संरक्षित कर लिया जाता है और नेत्र प्रत्यारोपण के समय संबंधित मरीज की आंखों में केवल नेत्रबुबल यानी कार्निया को बदला जाता है. ऐसे में यह समझना पूरी तरह से गलत है कि, नेत्र प्रत्यारोपण में पूरी आंख ही बदल दी जाती है.
तीन वर्ष दौरान राज्य में कुल नेत्रदान – 11,180
1,068 व्यक्ति है नेत्ररोपण की प्रतीक्षा में
5,853 नेत्ररोपण हुए हैं राज्य में
50 फीसद नेत्ररोपण रहे हैं सफल
कुल नेत्रदान में से 60 फीसद आंखों का कार्निया ही ट्रान्सप्लांट के लिए काम में आता है और इन 60 फीसद आंखों का कार्निया ट्रान्सप्लांट करने के बाद इसमें से 50 फीसद आंखों में ही दुबारा रोशनी लौटती है. यानी कुल नेत्रदान में से केवल 30 फीसद आंखे ही दुबारा इस दुनिया को देख पाती है. वहीं शेष नेत्रदान व नेत्ररोपण असफल रहते है.
* केवल 14 दिन ही सबसे उपयोगी
किसी भी मृत व्यक्ति की आंखे निकालने के बाद उन्हें अधिक से अधिक 14 दिन तक संवर्धित रखा जा सकता है और इतनी जल्दी इन आंखों के कार्निया का किसी जरूरतमंद व्यक्ति की आंखों में ट्रान्सप्लांट किया जाये, सफलता की गारंटी भी उतनी अधिक होती है. वहीं 14 दिन के बाद आय बैंक में रखी आंखों को बायोमेडिकल वेस्ट में डाल देना पडता है.