अमरावती

वनविभाग की दादागिरी के चलते एक साल से बंद पडा है सडक का काम

सिडको ने अब तक सडक पर खर्च कर दिये 7 करोड रूपये

अमरावती प्रतिनिधि/दि.15 – चिखलदरा शहर के साथ तहसील के अनेको गांव जुडे हुए है और करीब डेढ वर्ष पूर्व मोथा से शहापुर होते हुए चिखलदरा आने के लिए सडक का काम शुरू किया गया था. 9.03 करोड रूपये की लागतवाले इस काम पर सिडको द्वारा 6.37 करोड रूपये खर्च भी किये जा चुके है. जिसके बाद अचानक ही वन विभाग नींद से जागा और बिना कोई सरकारी दस्तावेज का हवाला दिये इस काम को सीधे बंद करवा दिया गया. ऐसे में 7 करोड रूपयों की सरकारी निधी खर्च होने के बावजूद यह सरकारी काम अधर में लटका पडा है. जानकारी के मुताबिक इस काम को रोकने हेतु वनविभाग द्वारा केवल वन अधिनियमों का हवाला दिया जा रहा है. इसके अलावा अब तक अन्य कोई ठोस वजह पेश नहीं की जा चुकी है. वहीं दूसरी ओर सिडको द्वारा इस काम को शुरू रखने हेतु संबंधित क्षेत्र के अनेकों भुमि अभिलेख व 7/12 दस्तावेज पेश किये गये है. जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेखीत है कि, अमरावती जिले में वर्ष 1977 में ही 151 गांवों को वनग्राम की बजाय राजस्व गांव में रूपांतरीत कर दिया गया है. ऐसे में वहां पर मुलभुत सुविधाएं उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है. इस संदर्भ में कई दस्तावेजों को खंगालने पर वर्ष 1977 में शेत सर्वे नंबर 46, 47, 21, 22 व 33 को राजस्व विभाग को हस्तांतरित किये जाने के दस्तावेज व 7/12 प्राप्त हुए है. किंतु बावजूद इसके वनविभाग वर्ष 1977 की टोपोशिट का हवाला दे रहा है. मगर पहले गांव नक्शा व 7/12 उतारा के दस्तावेज राज्य के राजस्व विभाग द्वारा तैयार किये जाते रहे. जिसकी नकल 1 सितंबर 2020 को तैयार की गई है और भुमि अभिलेख के दस्तावेजों में यहां राजस्व गांव मार्ग लिखा हुआ है. और यह सब राजस्व विभाग द्वारा किसी क्षेत्र के राजस्व गांव रहने के बाद ही पटवारी द्वारा तैयार किया जाता है. वहीं केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2016 में जारी एक पत्र में इस क्षेत्र को इको सेंसेटिव झोन घोषित किया गया है, लेकिन उसी राजपत्र में यह भी कहा गया है कि, 2016 से पहले राज्य सरकार द्वारा चलायी जानेवाली आंचलिक महायोजना विकास प्रकल्प एवं प्रस्तावित विकास योजनाओं को रोका नहीं जा सकता. ऐसे में यह विशेष उल्लेखनीय है कि, सिडको विकास प्राधिकरण की स्थापना 9 जनवरी 2008 में सरकारी राजपत्र के अनुसार ही हुई थी और उस समय से ही सिडको द्वारा यहां पर विकास के काम किये जा रहे है. इसके बावजूद भी वन विभाग द्वारा तमाम नियमों व निर्देशों की अनदेखी करते हुए विकास कामों में अडंगा डालने का प्रयास किया जा रहा है. यहां उल्लेखनीय यह भी है कि, संबंधित क्षेत्र की जमीनों को डीनोटीफाय नहीं किये जाने के कारण वर्ष 1977 में खुद वनविभाग ने ही राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दी थी, और इस जमीन को वर्ष 1977 से आजतक वनविभाग ने डीनोटिफिकेशन नहीं करवाया है. ऐसे में यह गलती खुद वनविभाग की है. लेकिन बावजूद इसके वनविभाग द्वारा नाहक ही राजस्व महकमे के कामो में अडंगा डाला जा रहा है. जिसकी वजह से इस क्षेत्र में विगत एक वर्षों से चिखलदरा-मोथा सडक का निर्माण अधूरा पडा हुआ है. जिस पर अब तक सरकारी तिजोरी से करीब 7 करोड रूपये खर्च हो चुके है.

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