अमरावतीविदर्भ

कोरोना की वजह से रूकी अनाज की बर्बादी

विवाह समारोहों का आयोजन थमा, बफे पध्दत हुई बंद

  • सर्वसामान्यों को पता चला अनाज का बचाये रखने का महत्व

अमरावती/दि.२१ – इस समय यद्यपि चहुंओर कोरोना संक्रमण का भय व्याप्त है, लेकिन विगत पांच-छह माह से चले आ रहे कोरोना काल के दौरान कुछ अच्छी बातें भी हुई है. कोरोना की वजह से लगाये गये लॉकडाउन में तमाम तरह की नागरी गतिविधियां बंद रही और सभी कल-कारखानों व धार्मिक प्रार्थना स्थलों के साथ-साथ मंगल कार्यालयों व मैरेज लॉन पर भी ताले लटके रहे. ऐसे में लॉकडाउन एवं अनलॉकवाले दौर में पहले की तरह होनेवाले भव्य-दिव्य विवाह समारोहों का आयोजन भी पूरी तरह से बंद रहा तथा दर्जनों व सैंकडों व्यंजनों के साथ लगनेवाले बफे स्टॉल का दृश्य पूरी तरह से नदारद रहा. इसमें अच्छी बात यह रही कि, ऐसे आयोजनों व बफे पध्दति में होनेवाली भोजन की बर्बादी पूरी तरह से खत्म हो गयी. साथ ही लॉकडाउन काल के दौरान जब कई लोगोें को भोजन के लिए अनाज की किल्लत का सामना करना पडा, तब उन्हें किसानों द्वारा बडी मेहनत से उगाये जानेवाले अनाज के एक-एक दाने की वास्तविक कीमत का पता चला.
उल्लेखनीय है कि, विगत कुछ वर्षों से विवाह समारोहों में बडे पैमाने पर धूमधडाका होने लगा था और विवाह समारोह, पारिवारिक संस्कार रहने की बजाय बडे-बडे इवेंट में तब्दील होने लगे थे. साथ ही भव्य-दिव्य आयोजन की तरह आयोजीत होनेवाले विवाह समारोहों में भोजन हेतु बफे सिस्टीम का आयोजन होना बेहद आम बात हो चली है. जिसमें अक्सर लोग-बाग अपनी भूख और जरूरत से अधिक भोजन अपनी प्लेट में ले लेते है और बाद में उसे बिना खाये ही झूठा छोड देते है. जिसकी वजह से बडे पैमाने पर भोजन व अनाज की बर्बादी होती आयी है. लेकिन कोरोना काल के दौरान न तो भव्य-दिव्य विवाह समारोह ही आयोजीत हुए और न ही बफे स्टॉल ही सजे. जिसकी वजह से इस बार ऐसे आयोजनों के चलते भोजन की बर्बादी का मसला हल हो गया. साथ ही कोरोना काल के दौरान जिस तरह से लोगबाग अपनी भूख संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अनाज के एक-एक दाने को तरसे है. उसके चलते लोगों में अब अनाज की बर्बादी नहीं करने को लेकर काफी हद तक जागरूकता आयी है और लोग अब अनाज को बचाने के प्रति महत्व देने लगे है.
उल्लेखनीय है कि, अन्नदाता कहा जानेवाला किसान प्रकृति के भरोसे पूरे सालभर अपने खेतोें में गरमी, बारिश व ठंड की पर्वाह किये बिना मेहनत करता है, ताकि अपनी फसलों के जरिये अनाज उगा सके. किसानों द्वारा की जानेवाली मेहनत से शहरी संस्कृति में रहनेवाले लोेगबाग लगभग पूरी तरह से अंजान होते है और उनके लिये अनाज एक तरह से बाजार में पैसों के दम पर खरीदी जानेवाली वस्तु की तरह है, लेकिन कोरोना काल के दौरान जब चारों ओर कडा लॉकडाउन लगा दिया गया, तब लोगों का पैसा लोगों के पास ही धरा रह गया और उन्हें अनाज के एक-एक दाने की कीमत पता चली. विगत कुछ वर्षों से हमारे देश में पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करते हुए विवाह समारोहों एवं पारिवारिक कार्यक्रमों में भोजन-पंगत का स्थान बफे सिस्टीम ने ले लिया है. जिसमें बडे पैमाने पर भोजन की बर्बादी होने के मामले आम हो चले थे. इसे लेकर अनेकों बार चिंताएं भी व्यक्त की जा चुकी है. जिनके मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष विवाह समारोहों में जितना भोजन बर्बाद होता है, उससे देश में जरूरतमंद लोगों को ६ साल तक दोनों वक्त का भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है. इस बात से ही इस समस्या की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन अब लोगों को भोजन एवं अनाज के वास्तविक मूल्य और महत्व का अंदाजा आ गया होगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.

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