अमरावतीमुख्य समाचार

धारणी व अचलपुर में जबर्दस्त अफवाह व अंधश्रध्दा का दौर

शिव पिंड व नंदी पी रहे दूध व पानी

* मंदिरों में भाविक श्रध्दालुओं की उमडी जमकर भीड
* हर कोई चमत्कार को नमस्कार करने के लिए बेताब
अमरावती/दि.5– कई वर्ष पहले समूचे देश में गणेश मूर्तियों द्वारा दूध पीने की खबर आग की तरह फैली थी और हर कोई अपने घरों व मंदिरों में गणेश मूर्तियों को चम्मच से दूध पिलाने के लिए लालायित दिखाई दे रहा था. ठीक उसी तर्ज पर आज सुबह मध्यप्रदेश के सिहोर जिले से ऐसे ही एक चमत्कार की खबर आग की तरह फैलनी शुरू हुई, जो दोपहर बाद तक अमरावती जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र धारणी सहित अचलपुर तक पहुंच गई. इस खबर में दावा किया गया था कि, भगवान भोलेनाथ की शिव पिंड के साथ-साथ नंदी की मूर्तियों द्वारा दूध और पानी का सेवन किया जा रहा है. जिसके बाद देखते ही देखते इन दोनों तहसीलों के तमाम मंदिरों में शिव पिंडी व नंदी की मूर्तियों को दूध व पानी पिलाने हेतु भाविक श्रध्दालुओं की भीड उमडनी शुरू हो गई और हर कोई अपनी आंखों से इस चमत्कार को देखकर नमस्कार करने हेतु उतावला होता दिखाई दिया. धारणी व अचलपुर क्षेत्र के कई लोगों ने दावा किया कि, खुद उन्होंने अपने हाथ से जब चम्मच के जरिये दूध अथवा पानी को शिव पिंड व नंदी मूर्ति से सटाया, तो देखते ही देखते पूरी चम्मच खाली हो गई. ऐसे में जितने मुंह, उतनी बातें वाली स्थिति देखी गई.
इस संदर्भ में हमारे परतवाडा व धारणी के संवाददाताओं ने इस खबर की पुष्टि करने के साथ ही विस्तृत ब्यौरा देते हुए बताया कि, आज दोपहर अचानक ही कई वॉटसऍप ग्रुप सहित सोशल मीडिया साईटस् पर शिव पिंड व नंदी की मूर्ति द्वारा दूध व पानी का सेवन किये जाने संबंधी समाचारों के साथ-साथ इससे संबंधित फोटो व वीडियो भी वायरल होने शुरू हुए. जिसके चलते देखते ही देखते पूरे परिसर में लोगों की भीड मंदिरों की ओर बढनी शुरू हो गई और हर कोई खुद इस चमत्कार की पुष्टि करने का प्रयास करता दिखाई दिया. जिसकी वजह से मंदिरों में भाविकोें की लंबी-लंबी कतारें लग गई और मंदिर के भीतर दर्शन करके वापिस लौटनेवाला हर व्यक्ति यही कहता दिखाई दिया कि, हां भाई, बात सही है, शिव पिंडी व नंदी की मूर्तियां पानी व दूध पी रही है. जिससे कतार में लगे लोगोें की श्रध्दा व उत्कंठा और भी अधिक बढती दिखाई दी. हालांकि वैज्ञानिक आधार पर इसे सीधे-सीधे अंधश्रध्दा से संबंधित मामला ही कहा जा सकता है, क्योंकि इसकी अभी तक वैज्ञानिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं हुई है.

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