कपास के पीछे से नहीं हट रही साढे साती
निजी बाजारों में नहीं मिल रहा न्यूनतम गारंटी मूल्य
* खेडा खरीदी में भी हो रही किसानों की लूट
अमरावती/दि.2– नगद फसल व बेहतरीन भाव रहने के चलते जिले में कपास का बुआई क्षेत्र सबसे अधिक रहता है. इस वर्ष भी ढाई लाख हेक्टेअर क्षेत्र में कपास की बुआई हुई है. लेकिन औसत के अधिक बारिश तथा बोंड इल्ली व गुलाबी इल्ली जैसे किटकों व किटक जन्य लोगों के चलते कपास का औसत उत्पादन काफी हद तक घटा है. ऐसे में कपास की मांग बढकर दामों में तेजी आने की उम्मीद किसानों द्वारा जतायी जा रही थी. परंतु 7 हजार 500 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम गारंटी मूल्य रहने के बावजूद भी कपास को खुले बाजार में 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल के दाम मिल रहे है. साथ ही खेडा खरीदी यानि गांव स्तर पर की जाने वाली कपास की खरीदी में इससे भी कम दाम दिये जा रहे है. जिससे किसानों के साथ सीधे तौर पर आर्थिक लूट कहा जा सकता है.
बता दें कि, सीसीआई द्वारा सरकारी खरीदी केंद्रों को एक माह की देरी से शुरु किया गया. जिसके चलते आर्थिक दिक्कतों में रहने वाले मजदूरों ने अपनी कपास को औने-पौने दामों पर खुले बाजारों में व्यापारियों के हाथों बेच डाला. जहां पर 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल के अधिकतम दाम दिये गये. वहीं गांव में होने वाली खेडा खरीदी में किसानों को 7 हजार से भी कम दामों पर अपनी कपास बेचनी पडी. जिससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पडा.
* 10 रुपए किलो की दर पर भी नहीं मिल रहे कपास बिनाई हेतु मजदूर
इस समय 10 रुपए प्रति किलो की मजदूरी का दर देने के बावजूद भी कपास की बिनाई हेतु मजदूर नहीं मिल रहे. ऐसे में कई किसानों के परिवार के सदस्य ही अपने-अपने खेतों में कपास की बिनाई करने यानि कपास चुनने का काम करते दिखाई दे रहे है. वहीं मजदूर लगाने पर कपास बिनाई की महंगी दरों के चलते कपास का लागत मूल्य बढ रहा है.
* कपास के दामों में तेजी की उम्मीद
अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल रुई व सरकी के दाम कम है. जिसके चलते कपास के दामों में भी कमी आयी हुई है. वहीं जनवरी माह के बाद कुछ प्रमाण में तेजी आने की संभावना है. जिसके चलते किसानों का रुझान कपास का स्टॉक करने की ओर है.
* बोंड इल्ली से नुकसान, दवाई भी महंगी
इस समय कपास पर गुलाबी बोंड इल्ली का प्रादुर्भाव होता दिखाई दे रहा है. जिससे उपज के घटने की संभावना है. साथ ही इस पर नियंत्रण हेतु प्रयुक्त की जाने वाली किटनाशक दवाईयों के काफी महंगे रहने के चलते उत्पादन खर्च भी बढ रहा है.
* उधारी लौटाने के चक्कर में ‘नील बटा सन्नाटा’
आर्थिक दिक्कतों में रहने वाले किसानों द्वारा हाथ आते दामों द्वारा कपास की विक्री कर दी गई है, ताकि सिर पर रहने वाले कर्ज को खत्म किया जा सके. लेकिन किडों व रोगों से कपास का नुकसान होने के चलते दो बिनाई के बावजूद किसानों के हाथ में कुछ भी नहीं आया है. जिसके चलते ‘नील बटा सन्नाटा’ वाली स्थिति है.
* 5 साल में केवल एक बार ही मिले 10 हजार से अधिक दाम
विशेष उल्लेखनीय है कि, विगत 5 वर्षों के दौरान केवल वर्ष 2022 में ही कपास को 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल से अधिक यानि 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल के दाम मिले. वहीं इसके अलावा वर्ष 2020 में 6 हजार रुपए, वर्ष 2021 में 6800 रुपए, वर्ष 2023 में 8800 रुपए तथा वर्ष 2024 में 7100 रुपए प्रति क्विंटल के दाम मिले थे.