अमरावती

महानुभाव पंथ के साहित्य शिरोमणि का निधन

नहीं रहे वरिष्ठ साहित्यकार पुरुषोत्तम नागपुरे

* कारंजेकर दादा के नाम से थे प्रसिद्ध
अमरावती/दि. 12– आयु के 92वें वर्ष में पदार्पण करने के बाद भी व्रतस्थ रुप से लेखन, वाचन करनेवाले महानुभाव पंथ के वरिष्ठ साहित्यकार व संत प्रा. पुरुषोत्तम नागपुरे उर्फ कारंजेकर दादा का आज सवेरे 11 बजे निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार कल 13 दिसंबर को किया जाएगा. अंतिम यात्रा सुबह 11 बजे गांधीनगर स्थित निवास से निकाली जाएगी.
* शिक्षा विभाग में 35 वर्ष सेवा
वर्धा जिले के खडकी में स्वधीनता सेनानी चंद्रभान नागपुरे के पुत्र पुरुषोत्तम नागपुरे ने राज्य के शिक्षा विभाग में 35 वर्ष सेवा की. एमईएस वर्ग 1 पद से वे पुणे में 1991 में सेवानिवृत्त हुए. उपरांत विविध साहित्य संशोधन और ग्रंथों का लेखन उन्होंने किया. करीब 32 ग्रंथों की रचना उन्होंने की.

* राष्ट्रीय पुरस्कार पाया
प्रा. नागपुरे व्दारा रचित कथा सूर्य उगवला को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. उन्होंने श्री चक्रधर के भ्रमण की भौगोलिक जानकारी, तीर्थ प्रसाद, श्री चक्रधर की सुबोध जीवन गाथा, जय श्री चक्रधरा, महानुभाव: एक आहवान, प्राचीन मराठी काव्य ग्रंथ ज्ञान प्रबोध, चक्रधर दर्शन ग्रंथ आदि अनेक रचनाएं की. स्वातंत्र संग्राम सेवा अभिषेक, महानुभावों के वैदिकत्व, वाद-प्रवाद, संशोधात्मक वैचारिक लेख, ऐतिहासिक कादंबरी दरना भी उनकी कृति है.

* प्रभु प्रबोधन संस्था बनाई
अनेकानेक लेख और पुस्तकों की रचना करने के साथ प्रा. नागपुरे उर्फ कारंजेकर दादा ने श्रीक्षेत्र रिद्धपुर में प्रभु प्रबोधन संस्था स्थापित की. महानुभाव इस मासिक पत्रिका और ओज साप्ताहिक का संपादन भी वे कर रहे थे. नागपुर विश्वविद्यालय के 12 वर्षो तक सीनेट सदस्य रहे.

* विवि में महानुभाव केंद्र
संगाबा अमरावती विद्यापीठ में महानुभाव साहित्य संशोधन केंद्र की स्थापना में भी कारंजेकर दादा का बडा योगदान रहा. देश के विविध भागों में 11 साहित्य सम्मेलनों का आपने आयोजन किया. साहित्य क्षेत्र में कार्य हेतु उन्हें जीवन गौरव पुरस्कार, अ.भा. महानुभाव परिषद का सम्मान पत्र, साहित्य रत्न पुरस्कार, जीवनगौरव पुरस्कार आदि से उन्हें सम्मानित किया गया. उनके निधन से एक संवेदनशील लेखक महानुभाव एवं मराठी साहित्य विश्व ने खो दिया है.

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