* बोराला गांव में चल रहा गीता जयंती उत्सव
चांदूर बाजार/दि.12 – महज 9 माह की आयु में ही अंधत्व का शिकार हो जाने के बावजूद पूरे विश्व का अध्ययन करने वाले गुलाबराव महाराज अपने आप में बेहद और सामान्य व अलौकिक संत रहे. जिन्होंने महज 34 वर्ष का जीवन जिया और अपने इस अल्पजीवन में 134 ग्रंथ लिखे, जो आज की जीवनशैली में भी बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में संत गुलाबराव महाराज को प्रत्यक्ष परमेश्वर का अवतार कहा जा सकता है और यह हम सभी का सौभाग्य है कि, परमेश्वर के ऐसे अवतार ने हमारे क्षेत्र में और हमारे जिले में जन्म लिया था. इस आशय का प्रतिपादन हभप प्रा. डॉ. नयना बच्चू कडू द्वारा किया गया.
बता दें कि, समिपस्थ बोराला गांव स्थित संत श्री गुलाबराव महाराज सेवा संस्थान द्वारा आयोजित गीता जयंती महोत्सव में हभप नयना कडू द्वारा गुलाब गौरव कथा के माध्यम से संत गुलाबराव महाराज के अध्यात्मिक व विज्ञानवादी विचार प्रस्तुत किये जा रहे है. हभप नयना कडू ने संत गुलाबराव महाराज की जीवनी पर भी शोध प्रबंध प्रस्तुत करते हुए पीएचडी की है और संत गुलाबराव महाराज के जन्मस्थल के साथ ही जिन-जिन स्थानों पर महाराज का वास्तव्य रहा, ऐसे अनेक राज्यों में स्थित स्थानों पर प्रत्यक्ष जाकर उन्होंने संदर्भ भी लिये है तथा संत गुलाबराव महाराज द्वारा रचित साहित्य एवं उनके जीवन प्रसंगों पर प्रा. डॉ. नयना कडू की मजबूत पकड है. जिसके चलते बोराला स्थित संत श्री गुलाबराव महाराज सेवा संस्थान द्वारा इस वर्ष गीता जयंती महोत्सव में प्रा. डॉ. नयना कडू की गुलाब गौरव कथा का आयोजन किया गया है.
इस कथा आयोजन के 6 वें दिन उपस्थित भाविकों को संबोधित करते हुए हभप नयना कडू ने कहा कि, महज 9 माह की उम्र में अंधत्व का शिकार होने वाला कोई व्यक्ति, ध्यान, योग, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, थियोसोफीशास्त्र जैसे कठीन से कठीन विषयों को समझकर उन विषयों से संबंधित ग्रंथों की रचना भी कर सकता है. इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. क्योंकि जिनकी काफी अधिक पढाई-लिखाई हो चुकी है और जो काफी अधिक होशियार व बुद्धिमान है. ऐसे लोगों ने भी इस तरह के विषयों पर कभी इस तरह से लिखा नहीं होगा. जिसके चलते विचार किया जा सकता है कि, बचपन से ही नेत्रहीनता का शिकार रहने वाले संत गुलाबराव महाराज ने इन सभी शास्त्रों का अध्ययन कब किया होगा. संस्कृत भाषा का ज्ञान कब हासिल किया होगा और लिखने की वैद्यीक पद्धति का कौशल कब अवगत किया होगा. साथ ही साथ महज 34 वर्ष के अल्पजीवन में 134 ग्रंथ कैसे लिखे होंगे. जो आज भी हम सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.
इस समय हभप नयना कडू ने यह भी कहा कि, संत गुलाबराव महाराज खुद को ज्ञानेश कन्या और भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी माना करते थे तथा यद्यपि वे शरीर से पुरुष थे, लेकिन उनका अंतरमन किसी नारी की तरह कोमल संवेदना से भरा हुआ था. वर्ष 1901 में उन्हें संत श्रेष्ठ श्री ज्ञानेश्वर महाराज का प्रत्यक्ष अनुग्रह तथा वर्ष 1905 में भगवान श्रीकृष्ण के साथ रासलिला का अधिकार भी प्राप्त हुआ था. यह तमाम बाते ज्ञानेश कन्या संत गुलाबराव महाराज के जीवन चरित्र में उल्लेखित है. अत: संत गुलाबराव महाराज के व्यक्तित्व को समझने हेतु हर किसी ने उनके जीवन चरित्र का वाचन जरुर करना चाहिए.