
अमरावती / दि. 21– परतवाडा के मो. साजिद मो. रफीक के घर में छत के पंखें से आहत होकर एक चिडिया की मौत से वे बडे दु:खी हुई. उपरांत उन्होंने मन ही मन चिडिया की देखभाल का प्रण कर लिया. आज उनके घर के पीछे 300 से अधिक विविध प्रजाति की चिडिया घोसला बनाए हुए हैं. मो. साजिद बगैर कोई दिखावा अथवा शोर शराबा करते हुए इन चिडिया को पालने का प्रयत्न कर रहे हैं. उनका पूरा परिवार इस कार्य में उन्हें सहकार्य करता है. अब 6 वर्ष बीत चुके हैं. मो. साजिद को पखेरूओं के स्वभाव और दिनचर्या की भी खासी जानकारी हो गई है.
* कैसे हुई शुरूआत
मो. साजिद ने बताया कि घर में हमेशा की तरह सीलिंग फैन शुरू था. उसके तेज रफ्तार पंख के टकराकर एक चिडिया जख्मी हो गई और फिर उसके प्राण पखेरू उड गये. इस घटना ने पूरे परिवार को द्रवित कर दिया. मन ही मन सभी ने कुछ सोचा. चप्पल का बॉक्स लाकर उसे छत से टांग दिया. दूसरे ही दिन चिडिया ने इस बक्से में घोसला बनाना शुरू किया. जिस पर मो. साजिद के परिजनों को थोडा अचरज हुआ.
* दाना पानी और बढते गये घोसले
चिडिया के लिए परिजनों ने घोसला बने गत्ते केे डिब्बे में दाना पानी रखना शुरू किया. अन्य अनेक पंंछी भी आने लगे. जिससे डिब्बे लटकाने का सिलसिला बढता गया. देखते ही देखते 8 घोसले घर में हो गये. पंछियों को घर के सभी सदस्य उनके समयानुसार दाना पानी देने लगे.
* संख्या पहुंची 300 पार
मो. रफीक के घर में पक्षियों के घोसलों की संख्या बढने लगी. चिडिया उनमें अंडे देती. अंडे से बच्चे बाहर निकलते. उनकी चहचहाट बढने लगी. तब घर के पीछे के आंगन में घोसले के लिए जगह बनाई गई. नई चिडिया और पंछियों का आना जारी रहा. 6 वर्षो में आज चिडिया की अनेक प्रजाति वहां डेरा डाल चुकी है. मो. साजिद बताते हैं कि संख्या 300 से अधिक हो गई है. अभी भी नये पंछी आते हैं.
* कद्दू के घोसले, सर्दियों में बाजरा
मोहम्मद साजिद बताते हैं कि कद्दू के घोसले बनाए गये हैं. चिडिया को रोज गेहूं, चावल, ज्वार दी जाती है. सर्दियों में बाजरा दिया जाता है. पंछी खुद दाना खत्म होने के संकेत देते हैं. फिर घर का कोई मेंबर जाकर उनके कटोरों, प्यालों में दाना डाल आते हैं.