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अपनी ईमानदारी और एकनिष्ठता का ईनाम मिला संजय खोडके को

इससे पहले भी राज्यपाल नामित सदस्यों की सूची में नाम था शामिल

* ऐन समय पर पत्ता कटने पर भी उफ तक नहीं की थी
* लंबे समय से डेप्युटी सीएम अजित पवार के साथ साए की तरह बने हुए
* अजित पवार ने अपने खास सिपहसालार संजय खोडके को दिया बडा मौका
* प्रशासनिक अधिकारी से लेकर राजनेता तक सफर तय किया है खोडके ने
* तीन उपमुख्यमंत्रियों के ओएसडी के तौर पर काम करने का भी है अनुभव
अमरावती/दि. 17 – विधान परिषद में विधायकों द्वारा चुनी जानेवाली सीटों के लिए आगामी 27 मार्च को होने जा रहे चुनाव हेतु अजित पवार गुट वाली राकांपा ने अपने कोटे में आई एक सीट के लिए अपने प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके के नाम पर मुहर लगा दी है. साथ ही विधान परिषद की 5 रिक्त सीटों के लिए होने जा रहे इस चुनाव को निर्विरोध कराए जाने की भी पूरी संभावना है. क्योंकि, महायुति इस समय स्पष्ट बहुमत में है और पांचों सीटों पर महायुति के प्रत्याशियों की जीत लगभग निश्चित है. जिसके चलते अजित पवार गुट वाली राकांपा की ओर से प्रत्याशी घोषित संजय खोडके का विधान परिषद सदस्य निर्वाचित होना पूरी तरह से तय है और अब डेप्युटी सीएम अजित पवार के खासमखास सिपहसालार रहनेवाले संजय खोडके विधायक बनने जा रहे है.
विशेष उल्लेखनीय है कि, विधान परिषद सदस्य के तौर पर राकांपा द्वारा इससे पहले भी अपने खास सिपहसालार संजय खोडके के नाम पर मुहर लगाई गई थी. जब विधानसभा चुनाव से पहले विधान परिषद की 12 सीटों पर राज्यपाल नामित सदस्यों का चयन किया जाना था. उस समय भी राकांपा के कोटे में आनेवाली सीटों में से एक सीट पर संजय खोडके का नाम लगभग तय कर लिया गया था. परंतु उस समय 15 अक्तूबर 2024 को ऐन विधानसभा चुनाव से पहले 12 में से केवल 7 सीटों पर राज्यपाल नामित सदस्यों की नियुक्ति का निर्णय लिया गया. जिसमें भाजपा के 3 तथा शिंदे गुट वाली शिवसेना व राकांपा के 2-2 सदस्यों को चुनने की बात तय की गई. राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक 15 अक्तूबर को दोपहर 12.30 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व उपमुख्यमंत्री अजित पवार को पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह व भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से फिलहाल 12 में से 7 सीटों को डिक्लीयर करने व 5 सीटों को फिलहाल पेंडींग रखने की बात फोन पर कही गई. जिसके 10 मिनट बाद ही डेप्युटी सीएम अजित पवार ने 12.40 बजे संजय खोडके को अपने कक्ष में बुलाया और फिलहाल खोडके की दावेदारी को बाजू रखने की बात कही. उस समय 20 मिनट बाद ही संजय खोडके द्वारा एबी फॉर्म सहित विधान परिषद की सदस्यता हेतु अपना नामांकन भरने की पूरी तैयारी कर ली गई थी. लेकिन अजित पवार द्वारा कही गई बात के बाद संजय खोडके ने उनका एक शब्द भी आगे-पीछे नहीं किया तथा एक आज्ञाकारी सिपाही की तरह अपने नेता के फैसले को सिर झुकाकर स्वीकार किया. संजय खोडके की अपने प्रति इसी इमानदारी और एकनिष्ठता को देखते हुए अब अजित पवार ने विधान परिषद की रिक्त हुई पांच सीटों हेतु होने जा रहे चुनाव के लिए अपने हिस्से में आई एकमात्र सीट के लिए अपने खासमखास सिपहसालार संजय खोडके को प्रत्याशी बनाने का निर्णय लिया है. जिसे संजय खोडके के लिए ईमानदारी व एकनिष्ठता का ईनाम भी कहा जा सकता है.

* प्रशासनिक अधिकारी से लेकर राजनेता तक तय किया सफर
बता दें कि, पेशे से कृषि विशेषज्ञ रहनेवाले संजय खोडके ने कृषि स्नातक की पदवी प्राप्त करने के बाद महाबीज में अधिकारी के तौर पर अपना जीवन शुरु किया था तथा कालांतर में वे तत्कालीन उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल के ओएसडी के तौर पर नियुक्त होते हुए मुंबई मंत्रालय तक पहुंचे थे. यहीं से संजय खोडके का एक तरह से राजनीतिक जुडाव एवं सफर भी शुरु हुआ और वे राकांपा नेता अजित पवार के संपर्क में आने के साथ ही धीरे-धीरे उनके नजदिकी लोगों में शामिल होते चले गए. इस दौरान संजय खोडके ने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री आर. आर. उर्फ आबा पाटिल के साथ भी ओएसडी के तौर पर काम किया और वे आगे चलकर अलग-अलग सरकारो में उपमुख्यमंत्री रहनेवाले अजित पवार के भी ओएसडी रहे. मंत्रालय में काम करने के दौरान राजनीति को काफी नजदिक से देखने व समझने के बाद संजय खोडके ने मुख्य धारा की राजनीति में उतरने का निर्णय तो लिया, लेकिन खुद के लिए रणनीतिकार की भूमिका तय करते हुए अपनी धर्मपत्नी सुलभा खोडके को राजनीतिक अखाडे में उतारने की तैयारी सन 2000 से शुरु की और मॉडल रेलवे स्टेशन के ठीक सामने अपना पहला जनसंपर्क कार्यालय खोला. जिसके बाद संजय खोडके ने वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव हेतु बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से अपनी पत्नी सुलभा खोडके को राकांपा की टिकट दिलाई और उस चुनाव में सुलभा खोडके विजयी भी हुई. इसके साथ ही संजय खोडके ने महानगर पालिका व जिला परिषद चुनाव में भी राकांपा के कई सदस्यों को निर्वाचित कर अपनी ताकत को मजबूत किया तथा देखते ही देखते वे क्षेत्र में राकांपा के कद्दावर नेता के तौर पर उभरकर सामने आए. साथ ही वे हमेशा ही राकांपा नेता अजित पवार के प्रति समर्पित व एकनिष्ठ भी रहे और उन्होंने तमाम राजनीतिक उतार-चढाव के बावजूद भी राकांपा नेता अजित पवार का साथ कभी नहीं छोडा और राकांपा में हुए दोफाड के समय भी तमाम महत्वपूर्ण मौकों पर संजय खोडके हमेशा ही अजित पवार के बिलकुल दाएं-बाएं नजर आए. जिससे अजित पवार की नजरो में संजय खोडके के कद को समझा जा सकता है और अपने प्रति रहनेवाली इसी ईमानदारी व एकनिष्ठता को देखते हुए अब अजित पवार ने संजय खोडके को विधान परिषद की दावेदारी के रुप में एकतरह से पुरस्कृत किया है.

* राकांपा से दूर रहकर भी राकांपा के पास ही रहे
ज्ञात रहे कि, सन 2004 में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के तौर पर जीत हासिल करनेवाली सुलभा खोडके को अगले दो चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से हार का सामना करना पडा था. जिसमें से सुलभा खोडके ने वर्ष 2009 का चुनाव राकांपा व वर्ष 2014 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर बडनेरा सीट से लडा था. इसके उपरांत वर्ष 2019 में संजय खोडके ने सुलभा खोडके के लिए अमरावती निर्वाचन क्षेत्र चुना और पवार खेमें के प्रभुत्व का इस्तेमाल करते हुए सुलभा खोडके के लिए अमरावती से कांग्रेस की टिकट भी हासिल की. इस दौरान वर्ष 2014 से 2019 के बीच खोडके दंपति राकांपा से निष्कासीत होकर कांग्रेस में भी रहे, लेकिन उनकी नजदिकी और एकनिष्ठता हमेशा ही राकांपा नेता अजित पवार के साथ ही बनी रही. वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में अमरावती सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल करने के बाद विधायक सुलभा खोडके महाविकास आघाडी और महायुति सरकार के समय पूरी तरह डेप्युटी सीएम अजित पवार के साथ व समर्थन में ही थी और वर्ष 2019 में कांग्रेस छोडकर एक बार फिर राकांपा में लौटे संजय खोडके ने आगे चलकर राकांपा में हुई दोफाड के समय अजित पवार के साथ खडे रहने का निर्णय लिया था.

* सिद्धांतो से कभी कोई समझौता नहीं
सबसे खास बात यह भी कही जा सकती है कि, तमाम राजनीतिक उतार-चढाव के बीच संजय खोडके ने कभी भी अपने सिद्धांतो से कोई समझौता नहीं किया. सन 2000 से राकांपा में पूरी तरह सक्रिय रहनेवाले संजय खोडके ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब राकांपा द्वारा नवनीत राणा को अपना प्रत्याशी बनाया गया, तो इस निर्णय का पूरजोर विरोध करते हुए काफी हद तक बगावती तेवर भी दिखाए थे. जिसके चलते तत्कालीन एकीकृत राकांपा के नेता शरद पवार ने खोडके दंपति को राकांपा से निष्कासित भी कर दिया था. इस निष्कासन को मंजूर करते हुए संजय खोडके ने वर्‍हाड विकास मंच नामक अपना खुद का राजनीतिक प्लेटफॉर्म बनाया था. जिसके बाद उन्होंने अजित पवार के कहने पर ही कांग्रेस पार्टी में प्रवेश कर लिया था और कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष का पद दिया था. इसके उपरांत सन 2019 का दौर आते-आते संजय खोडके एक बार फिर कांग्रेस छोडकर राकांपा में वापिस लौट आए. लेकिन इस बार भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा का चुनाव लडनेवाली नवनीत राणा को कांग्रेस व राकांपा की ओर से समर्थन दिए जाने का पूरजोर विरोध किया और अपने विरोधी अनदेखी होने पर संजय खोडके ने खुद को राणा के प्रचार से पूरी तरह दूर व अलिप्त ही रखा. जिससे स्पष्ट है कि, संजय खोडके ने राकांपा व अजित पवार के प्रति ईमानदार व एकनिष्ठ रहने के बावजूद कभी भी अपने सिद्धांतो से कोई समझौता नहीं किया.

* अमित शाह के फोन की वजह से पिछली बार चूक गया था मौका
बता दें कि, संजय खोडके का राज्यपाल नामित सदस्य के तौर पर विगत 15 अक्तूबर को ही विधान परिषद में पहुंचना लगभग तय हो गया था और उस समय राकांपा ने अपने हिस्से में आई तीन सीटों में से एक सीट के लिए संजय खोडके का नाम को तय कर लिया था. परंतु उस समय पूरे 12 सदस्य नामित करने की बजाए केवल 7 सदस्यों को नामित करने तथा 5 सीटों को कुछ समय के लिए रिक्त रखने की नीति भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तय की गई थी और इसे लेकर खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अजित पवार गुट वाली राकांपा के नेता व डेप्युटी सीएम अजित पवार तथा शिंदे गुट वाली शिवसेना के नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ फोन पर बात की थी. जिसके बाद अजित पवार गुट वाली राकांपा व शिदे गुट वाली शिवसेना ने अपने-अपने हिस्से में रहनेवाली 3-3 सीटों में से केवल 2-2 सीटों पर ही अपने सदस्यों को नामित किया था तथा दोनों पार्टीयों ने अपनी 1-1 सीट को रिक्त रखा था. जिसके चलते अजित पवार गुट वाली राकांपा ने ऐन समय पर संजय खोडके के नाम को पीछे ले लिया था और उस समय संजय खोडके विधायक बनते-बनते रह गए थे. जो अब विधायक बनने जा रहे है.

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