अमरावतीमहाराष्ट्रमुख्य समाचारलेख

संजयभाऊ खोडके की राजनीति में नई पारी

र्ष 2000 का अप्रैल महिना, उस समय बडनेरा के विधायक ज्ञानेश्वर धाने पाटिल और मैं रेलवे स्टेशन से इर्विन मार्ग की ओर जा रहे थे. रास्ते में रंधा पान सेंटर के उपर स्थित खोडके कॉम्प्युटर के सामने सुलभाताई खोडके के किसी उपक्रम के संदर्भ में लगाए गए बैनर पर हमारी नजर पडी व संभवत: सुलभाताई के किसी सार्वजनिक उपक्रम का पहला ही बैनर था. जिसे देखकर मैने धाने पाटिल से कहा था कि, पाटिल वर्ष 2004 के चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से सुलभाताई या उनके पति संजय खोडके में से कोई एक तुम्हारे खिलाफ प्रत्याशी हो सकते है. उस बात को धाने पाटिल ने हंसी-मजाक में लिया था और वह विषय वहीं खत्म हो गया था. इसके बाद सन 2004 का विधानसभा चुनाव हुआ और बडनेरा विधानसभा क्षेत्र से सुलभा खोडके ने धाने पाटिल के खिलाफ चुनाव लडने के साथ ही शानदार वोटों की लीड से जीत भी हासिल की. जिसके बाद उस चुनाव में पराजित ज्ञानेश्वर धाने पाटिल ने 4 वर्ष पुराने उस किस्से की मुझे याद कराते हुए कहा था कि, आपका अनुमान सही निकला.
आज उस प्रसंग को याद करने का कारण केवल इतना ही है कि, तब सुलभाताई के जीत के शिल्पकार उनके पति संजय खोडके ही थे और तब से लेकर अब तक परदे के पीछे रहते हुए रणनीतिकार की भूमिका निभानेवाले संजय खोडके अब खुद विधान परिषद के सदस्य बन चुके है. जिसके चलते संजय खोडके की विगत 25 वर्षों की राजनीतिक यात्रा आंखों के सामने घूम गई. संजय खोडके का यह राजनीतिक सफर काफी उतार-चढाव भी रहा और उन्हें इस सफर के दौरान सफलता के साथ ही असफलता का स्वाद भी चखना पडा. उनके इस सफर में कई प्रसंगों का मैं खुद साक्षीदार रहा हूं और उन प्रसंगों को मैने काफी नजदिक से देखा, जाना व समझा है. ऐसे में उन सभी यादों को शब्दबद्ध करते हुए उन पर प्रकाश डालने हेतु यह विशेष लेख लिखने का प्रपंच किया गया.
मंत्रालय में प्रशासकीय सेवा के तहत रहनेवाले संजय खोडके की तब से ही एक सफल राजनीतिक बनने की महत्वकांक्षा थी. इसी के तहत वर्ष 2000 से सुलभाताई को प्रत्यक्ष राजनीति में सक्रिय करते हुए उनके जरिए संजयभाऊ ने अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को मूर्तरुप देने की शुरुआत की और फिर सन 2004 में राकांपा की टिकट लाने के साथ ही सुलभाताई खोडके को बडनेरा से विधायक भी निर्वाचित कराया. उस समय मैं खुद शिवसेना में सक्रिय था और बडनेरा के तत्कालीन विधायक ज्ञानेश्वर धाने पाटिल व मेलघाट के तत्कालीन विधायक राजकुमार पटेल मेरे परममित्र थे. जो आज भी परममित्र हैं. यह बात सर्वज्ञात है. धाने पाटिल चुनावी राजनीति में खोडके के प्रतिस्पर्धी रहे, संभवत: इस वजह से मेरी और संजय खोडके की उस दौरान कोई विशेष नजदिकी नहीं बनी और संजूभाऊ द्वारा अमरावती की राजनीति में शुरुआत करने के बाद मेरा और उनका प्रत्यक्ष संपर्क 7 वर्ष बाद सन 2007 में हुआ, जब मेरी और उनकी पहली बार आमने-सामने मुलाकात हुई.
उस समय विधान परिषद के चुनाव में अमरावती जिले के एक विधायक ने क्रॉस वोटिंग करते हुए संजय खोडके की पार्टी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को मदद की थी. जिसे लेकर राजनीतिक सेटलमेंट तब मेरे ही जरिए हुआ था. यह पूरा प्रसंग मुंबई में घटित हुआ था और जिस बडे नेता के साथ पूरी बातचीत तय हुई थी उस समय संजय खोडके उसी नेता के सहायक थे. उस वक्त मैने संजय खोडके से चर्चा करने की बजाए सीधे उस बडे नेता के साथ बातचीत की थी. यह बात संभवत: संजय खोडके को अच्छी नहीं लगी थी और तब से उन्होंने कई दिनों तक मेरे साथ संवाद ही बंद कर दिया था. हालांकि, इसके बाद वर्ष 2009 का विधानसभा चुनाव नजदिक आते-आते संबंध एक बार फिर सुधरे और नजदिकी निर्माण हुई. वर्ष 2009 के चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में तत्कालीन विधायक सुलभा खोडके को राजनीति में नए-नवेले रहनेवाले निर्दलीय प्रत्याशी रवि राणा के हाथों हार का सामना करना पडा. खास बात यह थी कि, चुनाव से कुछ माह पहले मैने अपने ऑफीस में संजय खोडके के साथ बातचीत में अनुमान जताया था कि, इस बार रवि राणा आप पर भारी पड सकते है और चुनाव में वैसा ही हुआ. सुलभाताई को विधायक निर्वाचित होने के बाद संजय खोडके जिले के छोटे-मोटे चुनाव में भी ध्यान देने लगे थे और स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव में भी हस्तक्षेप करने लगे थे. इसकी वजह से जिन लोगों को तकलीफ हुई उन्होंने वर्ष 2009 के चुनाव में खोडके के खिलाफ मोर्चाबंदी की ओर रवि राणा को सहयोग किया. इस वजह से ही खोडके की हार होने का निष्कर्ष उस समय राजनीतिक जानकारों द्वारा निकाला गया था. इसके बाद वर्ष 2014 के चुनाव में भी सुलभाताई को बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से रवि राणा ने एक बार फिर पराजित किया. लेकिन इसके बाद भी संजय खोडके के राजनीति करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं हुआ. किसी पर भी पटाक से विश्वास रखना यह संजय खोडके के स्वभाव की एक कमजोरी थी. जिसका नुकसान भी संजय खोडके को चुनाव में उठाना पडा.
लेकिन उसके बाद मुंबई में पार्टी का संगठनात्मक कार्य करते समय अपने संपर्क में आए दिग्गज नेताओं के राजनीतिक गुणों व कौशल्य को संजय खोडके ने भी आत्मसात करना शुरु किया और वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव बडनेरा की बजाए अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से लडने का निर्णय लिया. जिसकी तैयारी उन्होंने दो वर्ष पहले से ही शुरु कर दी थी. हालांकि, वर्ष 2019 का चुनाव खोडके दंपति के लिए कुछ हद तक मुश्कील ही था. नया निर्वाचन क्षेत्र, नए मतदाता व नए प्रतिस्पर्धी ऐसी नई चुनौतियों का उन्हें सामना करना था. लेकिन इस चुनौती को स्वीकार करते हुए कांग्रेस की टिकट पर प्रत्याशी रहनेवाली सुलभा खोडके ने डॉ. सुनील देशमुख जैसे दिग्गज प्रतिस्पर्धी को पराजित कर एक बार फिर विधानसभा में एंट्री हासिल की. उस समय तगडे जनसंपर्क को खोडके की सफलता का राज माना गया.
संजय खोडके के राजनीतिक जीवन का उनके स्वभावानुसार दो चरणों में विचार करना होगा. वर्ष 2014 से पहले हर छोटी-मोटी बात की ओर ध्यान देते हुए उसका विचार करनेवाले और मन के खिलाफ किसी बात के घटित होते ही तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देनेवाले संजय खोडके वर्ष 2014 के बाद पूरी तरह से बदल गए. सतत समाजाभिमुख रहकर लोगों की समस्याओं को हल करने का उनका पहले से स्वभाव रहा. वर्ष 2020 में जब कोविडकाल की शुरुआत हुई तब संजयभाऊ ने लोगों के लिए काम करने की छटपटाहट को मैने नजदिक से देखा. उस समय लगातार 6 महिने तक सप्ताह में कम से कम दो दिन संजयभाऊ की अमरावती मंडल के कार्यालय में भेंट तय हुआ करती थी. कोविड की चिंता किए बिना हम कई-कई घंटों तक चर्चा किया करते थे. जिसमें राजनीति व अन्य विषयों की बजाए लोगों को इस संकट के दौरान सहायता कैसे करनी है और उन्हें स्वास्थ संबंधि एवं अन्य सुविधाएं कैसे उपलब्ध करानी है, ऐसी बातों पर ही संजूभाऊ का पूरा फोकस रहा करता था. कोरोना की वजह से होनेवाली मौतों तथा कोविड व लॉकडाऊन की वजह से लोगों के हिस्से में आनेवाली यातनाओं व तकलीफों को देखकर भावविव्हल होनेवाले संजय खोडके को तब मैने बहोत नजदिक से देखा. संकट में रहनेवाले जनसामान्यों को जितनी मदद करना संभव है, उतनी मदद करने के लिए संजय खोडके सदैव तत्पर रहा करते थे.
इसके बाद वर्ष 2024 का विधानसभा चुनाव भी खोडके के लिए काफी हद तक मुश्कील था. उस समय तक संजय खोडके एक बार फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में वापिस आ चुके थे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दो हिस्सों में बट चुकी थी. तब संजय खोडके ने अजीत पवार के साथ रहते हुए सुलभाताई के लिए राकांपा की टिकट लाई थी. अमरावती निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा रहनेवाले सवा लाख मुस्लिम वोटों के साथ ही अन्य सभी वोटों का तिकोने मुकाबले में विभाजन अटल माना जा रहा था. लेकिन एक बार फिर राजनीतिक पटल पर संजय खोडके की रणनीति भारीभरकम साबित हुई और सुलभाताई खोडके ने अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की. जिसके चलते चुनावी राजनीति में संजय खोडके का उल्लेख एक बार फिर चाणक्य के तौर पर हुआ.
आज तक राजनीति में केवल रणनीतिकार के तौर पर भूमिका निभानेवाले संजय खोडके अब विधान परिषद में पहुंच गए है तथा विधान मंडल के वरिष्ठ सदन के सदस्य बने है. हकिकत में कुछ माह पूर्व राज्यपाल नियुक्त कोटेवाली विधान परिषद के 12 सदस्यों वाली सूची में भी संजय खोडके का नाम शामिल था. परंतु ऐन समय पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आदेशानुसार 12 की बजाए 7 लोगों को ही विधान परिषद में मौका दिया गया. उस समय अजीत पवार के कोटे से जो एक नाम कम किया गया था, वह नाम संजय खोडके का ही था. परंतु संजय खोडके ने इसे लेकर थोडी सी भी नाराजगी व्यक्त नहीं की और अजीत पवार के शब्द को शिरोधार्ह्य माना. उस समय के किस्से का कथन करते हुए संजयभाऊ ने कभी अपने दर्द का एहसास भी नहीं होने दिया. जिससे पार्टी के प्रति रहनेवाली उनकी निष्ठा का परिचय होता है.
कृषि स्नातक की पदवी प्राप्त रहनेवाले संजय खोडके विगत 30 वर्षों से मंत्रालय में सक्रिय है और मंत्रालयीन कामकाज का इतना प्रदीर्घ अनुभव रखनेवाले वे जिले के एकमात्र नेता है. सन 1999 से 2010 की कालावधि के दौरान संजय खोडके तत्कालीन उपमुख्यमंत्रियों के ओएसडी रहे तथा उन्होंने छगन भुजबल, अजीत पवार व आर. आर. पाटिल के लिए काम किया. मुंबई पर हुए 26/11 वाले हमले के बाद तत्कालीन गृहमंत्री आर. आर. पाटिल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था तब संजय खोडके ने भी पदत्याग किया था और इसके बाद उन्होंने कभी भी किसी के ओएसडी या सहायक के तौर पर काम नहीं किया. बल्कि पार्टी को संगठनात्मक रुप से मजबूत करने के काम में योगदान देना शुरु किया. वहीं अब वे विधान मंडल के कामकाज में प्रत्यक्ष सहभागी होनेवाले हैं. उनके पूरे राजनीतिक जीवन की यदि समीक्षा की जाए तो यह यात्रा बिलकुल भी आसान नहीं थी. बल्कि उन्होंने कई चढाव-उतार और विपरित अनुभवों से रास्ता निकालकर सफलता प्राप्त करने हेतु परिश्रम किया और समय पडने पर संघर्ष भी किया.
वर्ष 2004 में सुलभाताई को अपने पहले ही प्रयास में विधायक बनाने में कामयाब रहे संजय खोडके को अगले दो विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पडा. साथ ही एक बार वे खुद विधान परिषद के चुनाव में स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से पराजित हुए थे. परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2019 व 2024 के विधानसभा चुनाव में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से सुलभाताई खोडके को जीत दिलाने के साथ ही अब खुद संजय खोडके भी विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए है. पति-पत्नी के एक ही समय विधायक रहने का यह मौका अमरावती जिले हेतु महाराष्ट्र राज्य की स्थापना के बाद पहली बार ही बना है.
पुराने अनुभवों को देखते हुए संजय खोडके अब स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे चुनाव की राजनीति में कोई विशेष रुची लेंगे, ऐसा लगता तो नहीं है. हलांकि अमरावती महानगर पालिका उनके लिए बेहद रुचिवाला विषय है. ऐसे में मनपा पर वर्चस्व हासिल करने हेतु वे निश्चित तौर पर प्रयास कर सकते है, यह स्पष्ट है. जिसके लिए वरिष्ठ स्तर पर होनेवाली हलचलों के बाद वे इस हेतु महायुति में शामिल भाजपा जैसे मित्रपक्ष का साथ भी ले सकते है. अगला विधानसभा चुनाव संजय खोडके खुद लडेंगे और उन्हें मौजूदा मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाएगा, ऐसा कई लोगों का कहना है. जिसमें मुझे कोई विशेष तथ्य दिखाई नहीं देता. बल्कि अगले चुनाव में संजय खोडके द्वारा अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपने बेटे यश खोडके को आगे बढा सकते है, ऐसी संभावना मुझे अधिक महसूस होती है. पार्टी भी खोडके को मंत्रिपद देने हेतु या उन्हें अगला विधानसभा चुनाव लडाने हेतु सकारात्मक रहेगी, ऐसा दिखाई नहीं देता. अजीत पवार गुट वाली राकांपा की ओर से संजय खोडके विधान परिषद में विदर्भ क्षेत्र के एकमात्र विधायक है. जिसके चलते माना जा सकता है कि, पार्टी द्वारा उनका उपयोग विदर्भ क्षेत्र में पार्टी को संगठनात्मक रुप से मजबूत करने हेतु करेगी और उन पर पूरे विदर्भ की जिम्मेदारी सौंपते हुए उनके नेतृत्व तले विदर्भ क्षेत्र में अजीत पवार गुट वाली राकांपा को विस्तार दिया जाएगा.
शरद पवार सहित पवार परिवार के साथ संजय खोडके के संबंध वर्ष 1993 से चले आ रहे है. तब शरद पवार कांग्रेस में थे तो संजय खोडके भी कांग्रेस का ही काम किया करते थे. पश्चात जब शरद पवार ने वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई तो खोडके भी पवार के साथ राकांपा में सक्रिय हो गए. संजय खोडके के पवार परिवार के साथ ही छगन भुजबल, सुनील तटकरे व प्रफुल पटेल जैसे राकांपा के वरिष्ठ नेताओं से बेहद नजदिकी व घनिष्ठ संबंध हैं. यही वजह रही कि, विधान परिषद हेतु करीब 88 लोगों के नाम सामने रहने के बावजूद विगत 14 मार्च हो हुई बैठक में संजय खोडके के नाम पर महज दो मिनट के भीतर सभी नेताओं ने सर्वसम्मति के साथ मुहर लगा दी.
संजय खोडके की काम करने की क्षमता जबरदस्त है. विगत 21 मार्च को विधान परिषद सदस्य पद की शपथ लेते ही संजय खोडके ने सदन के कामकाज में हिस्सा लिया तथा अमरावती जिले की नांदगांव पेठ एमआईडीसी के भूखंडों की दरों के साथ ही अन्य विषयों को बेहद प्रभावी तरीके से रखा. संजय खोडके को प्रत्येक विषय में रुची और अमरावती जिले की समस्याओं व स्थानीय लोगों की दिक्कतों का एहसास व अभ्यास भी है. परंतु खोडके के पास वक्तृत्व शैली का अभाव है और वे प्रभावी तरीके से भाषण नहीं सकते है. जिसमें वे आनेवाले समय में निश्चित ही सुधार करेंगे, ऐसी उम्मीद है. संजय खोडके का चरित्र पूरी तरह से साफसुथरा और बेदाग है. मंत्रालय में वे जिस पद पर थे उस जरिए अपहार करते हुए बडे पैमाने पर संपत्ति इकठ्ठा करने के भरपूर अवसर रहने के बावजूद संजय खोडके पर भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप तक नहीं लगा. साथ ही अपने दामन पर कीचड उछले और समाज में शर्मिंदगी का सामना करना पडे, ऐसा आचरण भी संजय खोडके ने कभी नहीं किया.
संजय खोडके यद्यपि अपनी पार्टी के प्रति सदैव एकनिष्ठ व इमानदार रहे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने चुनावी राजनीति करते समय कभी भी अपने तत्वों और सिद्धांतों से कभी कोई समझौता नहीं किया. रवि राणा और संजय खोडके के बीच राजनीतिक दुश्मनी सर्वज्ञात है. वर्ष 2014 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने नवनीत राणा को अमरावती लोकसभा सीट से उम्मीदवारी दी तब संजय खोडके ने राजनीति से परे रहना पसंद किया, लेकिन नवनीत राणा की उम्मीदवारी को समर्थन नहीं दिया. इसके लिए उन्होंने पार्टी नेतृत्व की नाराजगी को भी झेला और कुछ समय के लिए राजनीति से अलिप्त भी रहे. वहीं इसके बाद वर्ष 2019 में राकांपा के समर्थन और वर्ष 2024 में महायुति के तहत भाजपा के कोटे से नवनीत राणा को प्रत्याशी बनाए जाने पर भी संजय खोडके ने तटस्थ रहने का निर्णय लिया और राणा का समर्थन भी नहीं करने व विरोध भी नहीं करने की भूमिका अपनाई. परंतु अपने तत्वों को नहीं छोडा.
कुल मिलाकर 30 वर्षों के मंत्रालयीन व पार्टी अंतर्गत संगठनात्मक राजनीति का अनुभव रहनेवाले संजय खोडके ने अब राजनीति में अपनी नई पारी की शुरुआत की है. जीवन में सफलता के साथ ही असफलता व संघर्ष का अनुभव भी उनके पास है और अब वे किसी भी तरह की स्थिति पर मात करने में सक्षम है. विधान मंडल सदस्य के तौर पर काम करते समय वे कहीं पर भी पार्टी सहित अमरावती शहर व जिले को योग्य न्याय देने में कमतर साबित नहीं होंगे, इसकी पूरी गारंटी है. ऐसे में उन्हें उनके राजनीतिक भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं दी जा सकती है.
– अनिल अग्रवाल
संपादक, दैनिक अमरावती मंडल व दैनिक मातृभूमि.

Back to top button