संतत्व- ममत्व – अपनत्व से ओत-प्रोत डॉ.एस.के.पुंशी
अमरावती दि.31 – कबीरा सोइ दिन भला। जा दिन संत मिलाहि । अंक भरि भरि भेंटिया । पाप शरीर जाहि ॥
लगता है जैसे। संत कबीरदास ने संतत्व- ममत्व अपनत्व से भरे डॉ. एस. के. पुंशी जैसे सत्पुरुषों के लिये ही लिखा है. अगर मैं कहूँ कि डॉ. पुंशी पहले संत हैं फिर चिकित्सक तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. उनके अंग-प्रत्यंग, उनकी वेशभूषा से संतत्व है. सरलता, विनम्रता और अपनापन उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं. जो भी डॉक्टर साहब के संपर्क में आता है, अपने में एक सकारात्मक परिवर्तन महसूस करने लगता है. समाज के पास है. हर क्रिया-कलाप में आपकी उपस्थिति मात्र से ही एक चैतन्यता- सी निर्माण हो जाती है. उनके विचारों में नव-सृजन की क्षमता है, और व्यवहार मानवता का मूक संदेश देता लगता है. एक चिकित्सक के रूप में चर्म रोग के समूल नाश में डॉक्टर साहब का योगदान चिकित्सकीय क्षेत्र में सर्वश्रुत है. ओढ़ी गयी प्रशंसा सुखी आपको पसंद नहीं आती. उनकी बेफिक्री को देखकर याद आता है, साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय। मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाये। कई गरीब असहायों को मुफ्त में चिकित्सा और औषधोपचार मुहैया करते हुए हमने डॉक्टर साहब को देखा हैं. ऐसा करते एक संदृष्टि का भाव सदा उनके चेहरे पर झलकता रहता है. डॉक्टर साहब के भाषणों और लेखन में दर्शन की गहरी छाप साफ महसूस होती है. उनकी किताब हडिवाईन-नॉलेजह हसंत रामदासह और हकंवररामजीह की आत्मकथाएं ऐसी हैं जिनमें उनके विचारों का सागर लहराता नजर आता है. वेद, गीता, रामायण और ज्ञानेभरी का गहरा अध्ययन और अनुभव उनके हिन्दी, अंग्रेजी, सिंधी, मराठी, उर्दू और पाली पर उनकी पकड़ है. अब तक कितने ही पुरस्कारों से आप सम्मानित हो चुके हैं. सीधी सरल गृहिणी और दो बेटियों से युक्त उनका छोटा और परिवार है. 1 नवम्बर, जन्मदिन पर सादर अभिनंदन, अभिष्ट चिंतन !
– प्रा. बाबा राऊत.