अमरावती

अंबादेवी मंदिर की अश्मयुगीन गुफा में मिला ‘सप्तपदी कमल’

ईसापूर्व 4 हजार वर्ष के वैदिक काल से संबंध रहने का दावा

* संशोधक डॉ. विजय इंगोले ने दी जानकारी
अमरावती/दि.25 – अमरावती सहित समूचे विदर्भ क्षेत्र की कुलस्वामिनी के रुप में विख्यात श्री अंबादेवी के मंदिर परिसर में स्थित अश्मयुगीन गुफा के भीतर पाषाणों पर कई तरह के चित्र उकेरे हुए है. जिन्हें लेकर विगत लंबे समय से संशोधन चल रहा है और इसी संशोधन के तहत इस अश्मयुगीन गुफा में एक स्थान पर ‘सप्तपदी कमल’ का चित्र उकेरा हुआ पाया गया है. सात पंखुडियों वाले इस कमल के चित्र में चार पंखुडियां उपर की ओर व तीन पंखुडियां नीचे की ओर दिखाई दे रही है तथा सबसे विशेष उल्लेखनीय यह है कि, प्रत्येक पंखुडी योनी के स्वरुप में है. अंबादेवी मंदिर स्थित अश्मयुगीन गुफा की दीवार पर उकेरे गए इस ‘सप्तपदी कमल’ के चित्र को खोजने वाले संशोधक डॉ. विजय इंगोले और उनकी टीम द्बारा अब इसे लेकर और भी अधिक संशोधन किया जा रहा है. संशोधन डॉ. विजय इंगोले के मुताबिक यह अश्मीयुगीन गुफा ईसापूर्व 4 हजार वर्ष पहले वैैदिक काल के समय बनाई गई हो सकती है और उसी वैदिक काल के दौरान इस अश्मयुगीन गुफा में विभिन्न तरह के चित्र सांकेतिक तौर पर बनाए गए होंगे. जिनके अपने आप में कई गूढ अर्थ हो सकते है.
बता दें कि, संशोधक डॉ. विजय इंगोले के नेतृत्व में अमरावती के 6 निसर्ग संशोधकों ने मोर्शी से करीब 75 किमी की दूरी पर सतपुडा पर्वत श्रृंखला में वर्ष 2007 के आसपास 35 हजार वर्ष पुरानी अश्मयुगीन चित्र गुफाओं की खोज की थी और इस गुफा में पाषाण पर बने चित्रों का अब भी अध्ययन व संशोधन चल रहा है. वहीं अब अंबादेवी मंदिर में भी वैदिक काल से वास्ता रखने वाली अश्मयुगीन गुफा एवं गुफा के भीतर पाषाण पर कई तरह के भित्ती चित्र पाए गए है. जिन्हें लेकर संशोधन का काम शुरु किया गया है. डॉ. विजय इंगोले के मुताबिक योनि स्वरुप पंखुडियों वाले ‘सप्तपदी कमल’ का चित्र कई गहन प्रश्न उपस्थित करता है. क्योंकि योनि प्रजनन को दर्शाती है. इस चित्र में स्पष्ट तौर पर सात पंखुडियों वाला कमल दिखाई दे रहा है. जिसे ‘सप्तपदी कमल’ या सात पंखुडियों वाला कमल कहा जाता है. इस गूढ चित्र से जुडे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संदर्भों को समझने हेतु विस्तृत जांच व विश्लेषण करना महत्वपूर्ण रहेगा. साथ ही पुरातत्व भाषा शास्त्र व सांस्कृतिक अध्ययन के विशेषज्ञ इस अनूठे प्रातिनिधिक चित्र के अर्थ और महत्व को समझने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है. संशोधक डॉ. विजय इंगोले द्बारा इस पर एक संशोधन पेपर भी तैयार किया जा रहा है. साथ ही निसर्ग संशोधकों की इस टीम में शामिल प्रत्येक सदस्य द्बारा इस संशोधन में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है.

* ‘सप्तपदी कमल’ का है हिंदू धर्म में काफी महत्व
उल्लेखनीय है कि, ‘सप्तपदी कमल’ का हिंदू धर्म में काफी अधिक महत्व होता है. जिसके तहत प्रत्येक पंखुडी को मूल चक्र, आधार चक्र, स्वादिष्ठान चक्र, मणीपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र व अजना चक्र यानि पृथ्वी, जल, अग्नी, वायू, आकाश, विवेक व समाधी का प्रतिक कहा जाता है. इसके साथ ही कमल को पावित्र्य, देवत्व, आत्मज्ञान व सृष्टि के शाश्वत चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला आदरयुक्त प्रतिक माना जाता है. हिंदू पौराणिक कथा, विधि व प्रतिमा शास्त्र में कलम पुष्प की उपस्थिति और हिंदू संस्कृति के धार्मिक व अध्यात्मिक सार में कमल पुष्प की अविभाज्य भूमिका कमल के महत्व को अधोरेखित करती है. अंबादेवी मंदिर में स्थित अश्मयुगीन गुफा की पाषाण से बनी दीवार पर उकेरे गए ‘सप्तपदी कमल’ के चित्र का संबंध संभवत: ईसापूर्व 4 हजार वर्ष पहले वैदिक काल से जुडा हो सकता है. यानि ‘सप्तपदी कमल’ का यह भित्ती चित्र करीब 6 हजार वर्ष पुराना हो सकता है. जो उल्लेखनीय शैला, स्त्रीत्व व निर्मिति के प्रतिकों सहित अपने आपमें एक महत्वपूर्ण पुरातत्व कलाकृति के तौर पर खुद को स्थापित करता है.

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