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जिला बैंक के निवेश में घोटाला साबित, उपनिबंधक की 76 पेज की जांच रिपोर्ट आई 22 करोड का हुआ नुकसान

संचालकों पर कार्रवाई हेतु धारा 88 में जांच व कार्रवाई की मांग

* विधायकद्वय कडू और अडसड ने लगाया किसानों के भी नुकसान का आरोप
* हमारे कारण बची बैंक
* दोषियों की संपत्ति जब्ती की कार्रवाई फिलहाल रुकी हैं
अमरावती/दि.16- जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के 900 करोड के निवेश में कमिशनखोरी के कारण 22 से 25 करोड रुपए का नुकसान हुआ हैं. इतना ही नहीं किसानों को केवल 150 करोड के कर्ज बांटे गए, जबकि नियमों और रिजर्व बैंक की गाइडलाइन को ताक पर रखकर आनन-फानन में मात्र 15 दिनों में 900 करोड का निवेश कर दिया गया था. यह बातें नियम 83 के तहत जिला उपनिबंधक व्दारा की गई जांच में उजागर होने का दावा विधायक बच्चू कडू और प्रताप अडसड ने किया. आज दोपहर मराठी पत्रकार भवन में आयोजित प्रेसवार्ता में दोनों नेताओं ने यह भी दावा किया कि उनके व्दारा की गई शिकायत की वजह से बैंक के न केवल 900 करोड के निवेश सहित सभी सावधी निवेश सुरक्षित है, बल्कि बैंक भी डूबने से बच गई. दोनों विधायकों के साथ बैंक के संचालक मंगेश देशमुख, अजय पाटील मेहकरे, आनंद काले व अन्य पत्रकार वार्ता में उपस्थित थे.
* कोर्ट को गुमराह कर रहे
अडसड तथा कडू ने आरोप लगाया कि, अभी भी कोर्ट को इस प्रकरण में संचालक मंडल के कुछ सदस्य गुमराह कर रहे हैं. जांच पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगी. कोर्ट ने सिर्फ दोषी लोगों की संपत्ति कुर्क करने और अन्य कार्रवाई पर अगली सुनवाई तक रोक लगाई हैं. तीन सप्ताह बाद इस प्रकरण में आगे की सुनवाई होने वाली हैं. जिसमें आरोपानुसार बैंक के कई बडे नाम भी कार्रवाई की जद में आने का दावा दोनों नेताओं ने किया.
* 76 पेज की जांच रिपोर्ट
विधायक कडू ने बताया कि, महाराष्ट्र सहकारी संस्था अधिनियम की धारा 83 के प्रावधान अनुसार जांच की मांग उन्होंने की थी. जिला उपनिबंधक व्दारा कोर्ट के आदेश पर जांच की गई. 76 पेज की जांच रिपोर्ट हाल ही में प्राप्त हुई हैं. रिपोर्ट में संचालक मंडल व्दारा नियमों को दरकिनार कर सीधे 900 करोड के निवेश पर सवाल उठाए गए है, ऐसे ही इस निवेश के कारण बैंक का मोटे तौर पर 11 करोड रुपए का नुकसान हो गया हैं.

* नुकसान 25 से 27 करोड का
कडू ने आरोप लगाया कि, जांच में 11 करोड के नुकसान का उल्लेख हैैं. हकीकत में 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर और अन्य कमिशन को जोड ले तो यह आंकडा 25 से 27 करोड रुपए हो जाता हैं. उन्होंने कहा कि यह बैंक किसानों के हित में कार्य करनी चाहिए. जबकि बैंक को ब्रोकर्स के हित में संचालित किया गया. सभी मामलों में नियम कायदों का उल्लंघन होने का आरोप कडू ने लगाया. कडू ने जांच रिपोर्ट के हवाले से कहा कि, प्रतीक शर्मा तत्कालीन बैंक अध्यक्ष और संचालक का रिश्तेदार होने की बात ध्यान में आती हैं. उसे बैंक के लेटरहेड और मुहर आदि के उपयोग की छूट दी गई थी. वहीं बैंक का मेल एड्रेस भी उपयोग कर रहा था. यह सब नियम कानून के परे हुआ.
* नियम 88 के तहत हो कार्रवाई
कडू ने नियम 83 के तहत जांच में बैंक के नुकसान की बात सिद्ध होने से अब दोषी लोगों पर कार्रवाई तथा उनसे नुकसान भरपाई की भी मांग की. कडू ने इसके लिए सहकारिता संस्था अधिनियम की धारा 88 के तहत घोटाले के कसूरवार लोगों पर कार्रवाई तथा उनसे बैंक की क्षति की भरपाई की मांग की गई. उन्होंने पूछे जाने पर कहा कि इसके लिए बबलू देशमुख, वीरेंद्र जगताप, प्रतीक शर्मा, गांधी, कासट, मोंगा जिम्मेदार हो सकते हैं. कडू ने यह भी आरोप लगाया कि केवल कमिशन के लालच में बैंक की 900 करोड की पूंजी को खतरे में डाल दिया गया था. इससे बैंक डूबने की आशंका हो जाती. कडू और अडसड ने दावा किया कि उन लोगों व्दारा यह मुद्दा उठाए जाने के कारण ही यह क्रियाकलाप रुक गया. बैंक की राशि खतरे में पड जाती. कडू ने बारंबार नियम 88 के तहत कार्रवाई की मांग की. इसके लिए कोर्ट में जाने की भी बात कही.

* किसान हितों के खिलाफ
कडू ने आरोप लगाया कि, जिला बैंक की स्थापना किसान के हितों में की गई. बैंक को किसानों को 700-800 करोड का कर्ज वितरण करना चाहिए था. जबकि संबंधित वर्ष में किसानों को मात्र 150 करोड के ऋण का वितरण किया गया. कमिशन के लालच में 900 करोड का निवेश कंपनियों में कर दिया गया. इससे बैंक का दोहरा नुकसान हुआ. बैंक के अधिकांश खातेदार किसानों का नुकसान हुआ. बैंक किसानों को अधिक ऋण देता तो उसे सरकार व्दारा घोषित कर्ज माफी में फायदा ही फायदा होता. कडू ने दावा किया कि उनके संचालक बनने के पश्चात किसानों को 700 करोड रुपए के कर्ज बांटे गए.

* मोंगा के खाते से कमिशन
कडू और अडसड ने आरोप किया कि निप्पॉन कंपनी के ब्रोकर मोंगा को भी कमिशन मिला. जिसमें से उसने तत्कालीन संचालकों के खाते में रकम ट्रांसफर की. इसके काफी प्रमाण मिले है और वीडियो भी वायरल हुआ हैं. किंतु जब कडू से पूछा गया कि दोबारा उन्हीें लोगों को संचालक क्यों चुना गया तो कडू ने कहा कि इसका उत्तर मतदाता ही दे सकते हैं.

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