स्कूल 10 महिने, तो वैन का किराया 12 माह का क्यों?
शैक्षणिक खर्च बढने से गडबडाया अभिभावकों का गणित

अमरावती /दि. 27– विगत कुछ समय से बच्चों का शैक्षणिक खर्च दिनोंदिन बढता चला जा रहा है और बढते खर्च की वजह से अभिभावकों का आर्थिक गणित गडबडा रहा है. इसमें यह विशेष उल्लेखनीय है कि, शालाएं सालभर में केवल 10 माह ही चलती है, लेकिन इसके बावजूद स्कूल वैन के लिए पूरे सालभर का शुल्क अभिभावकों से लिया जाता है. ऐसे में दो माह का अतिरिक्त किराया क्यों? यह सवाल अभिभावकों द्वारा पूछा जा रहा है.
इन दिनों लगातार बढती स्पर्धा के चलते अपना बच्चा अच्छी से अच्छी स्कूल में पढे इस हेतु सभी अभिभावक हरसंभव प्रयास करते है और अपने बच्चों का दाखिला नामांकित स्कूल में कराते है. जहां पर पढाई-लिखाई का खर्च अच्छा-खासा होता है. ऐसे में प्रति वर्ष पढाई-लिखाई को लेकर होनेवाले खर्च में वृद्धि हो रही है. शाला की फीस, शैक्षणिक साहित्य का खर्च और इसके साथ ही स्कूल बस केे शुल्क हेतु अदा की जानेवाली रकम के चलते अभिभावकों का आर्थिक नियोजन गडबडा रहा है. खास बात यह है कि, शाला भले ही 10 महिने ही चलती, लेकिन पूरे सालभर के लिए स्कूल बस का किराया वसूला जाता है. जिसे लेकर अभिभावकों में अच्छी-खासी नाराजगी है. स्कूल बस की दरें कम रखी जाए इस हेतु संबंधित शिक्षा संस्थाओं के पालकों को सूचित किए जाने की मांग अब पालकवर्ग से ही सामने आने लगी है.
* नाहक ही लगता है दो माह का अतिरिक्त किराया
बच्चों की शाला घर से काफी दूर रहने के चलते अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को स्कूल बस या वैन के जरिए स्कूल भेजा जाता है. परंतु ऐसी स्कूल बस के लिए अभिभावकों को दो माह का किराया अतिरिक्त अदा करना पडता है. क्योंकि स्कूल तो सालभर में केवल 10 महिने ही चलती है, लेकिन अभिभावकों को पूरे 12 महिने का स्कूल बस किराया अदा करना पडता है. इसके परिणामस्वरुप अभिभावकों पर दो माह के अतिरिक्त किराए का नाहक बोझ पडता है.
* शाला की फीस 60 हजार रुपए, बस का किराया 10 हजार रुपए
शाला के दर्जे के अनुसार विद्यार्थियों का प्रवेश शुल्क तया किया गया होता है. इसके अलावा शालाओं द्वारा अलग-अलग उपक्रमों के लिए भी अलग-अलग शुल्क वसूले जाते है. जिसके तहत शाला में प्रवेश हेतु औसतन कम से कम 60 हजार रुपए की स्कूल फीस ली जाती है. वहीं स्कूल बस का किराया भी 10 से 12 हजार रुपयों के आसपास ही होता है, यह लगभग तय है.
* बढते खर्च से गडबडा रहा आर्थिक समिकरण
विद्यार्थियों के शाला में प्रवेश से लेकर वार्षिक परीक्षा की कालावधि दौरान अभिभावकों को बडे पैमाने पर शैक्षणिक खर्च करना पडता है. जिसके चलते उनके आर्थिक गणित भी बिगड रहे है. वहीं स्कूली खर्च के अलावा स्कूल वैन का बढता खर्च भी अभिभावकों के सिरदर्द को बढाने का काम कर रहा है.
* इस बार भी किराया वृद्धि का प्रस्ताव
नए शैक्षणिक वर्ष में शैक्षणिक शुल्क के साथ ही स्कूल बस के किराए में वृद्धि करने का प्रस्ताव कई शालाओं द्वारा प्रस्तावित किया गया है, ऐसी स्थिति में शिक्षक-पालक संघ द्वारा योग्य निर्णय लिया जाना अपेक्षित है.
* स्टेशनरी का खर्च भी कमर तोड रहा
विद्यार्थियों को पूरे सालभर के दौरान विविध तरह की शैक्षणिक स्टेशनवरी की जरुरत पडती है और शैक्षणिक स्टेशनरी के दामों में भी साल-दरसाल 5 से 6 फीसद की वृद्धि हो रही है. बच्चों की स्कूल फीस व स्कूल बस के किराए सहित शैक्षणिक स्टेशनरी के लिए अभिभावकों को प्रतिवर्ष हजारों रुपयों का खर्च करना पडता है. जिसकी वजह से उनका आर्थिक नियोजन बुरी तरह से गडबडा जाता है.
* स्कूल की फीस व अन्य बातों को लेकर शिक्षक-पालक संघ द्वारा निर्णय लिए जाते है. ऐसे में स्कूल बस की फीस के संदर्भ में भी उनके द्वारा ही निर्णय लिया जाना अपेक्षित है.
– अरविंद मोहरे
शिक्षाधिकारी