अमरावती

मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत सेमाडोह का संग्रहालय 9 साल से बंद

बाघ, बायसन व भालू सहित वन्य प्राणियों की ट्रॉफी लापता

* आदिवासी संस्कृति की पहचान को भी लपेटकर रख दिया

अमरावती /दि.19– मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत सेमाडोह स्थित निसर्ग निर्वचन संकुल में बनाया गया संग्राहलय विगत 9 वर्षों से बंद पडा है. इस संग्रहालय में रखी गई बाघ, बायसन, भालू, लोमडी, भेडिए, चांदी भालू व जंगली कुत्ते जैसे वन्यजीवों की ट्रॉफी (सजीव दिखाई देने वाले पुतले) लापता है. इसमें से कुछ ट्रॉफियों को दीमक द्वारा खा लिया गया है और कुछ ट्रॉफिया खुद ही गलकर गिर पडी है. इसके अलावा आदिवासी संस्कृति का परिचय कराने वाले साहित्य को भी व्याघ्र प्रकल्प प्रशासन द्वारा लपेटकर रख दिया गया है.

महाराष्ट्र के इस पहले व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत इस व्याघ्र प्रकल्प की निर्मिति के बाद सेमाडोह में निसर्ग निर्वचन संकुल की स्थापना की गई, जो देश में पहला नेचर इंटरप्रिटेशन सेंटर साबित हुआ. 3 लाख 67 हजार 294 रुपए की लागत से बनाए गए इस निसर्ग निर्वचन संकुल का उद्घाटन 7 अक्तूबर 1988 को हुआ था तथा पर्यटकों सहित निसर्ग अभ्यासकों की सेवा हेतु निसर्ग निर्वचन संकुल में भी यह संग्रहालय बनाया गया था.

आदिवासियों की संस्कृति सहित वन्यजीवों का परिचय मेलघाट के आदिवासी समाजबंधुओं के सांस्कृतिक व सामाजिक परंपराओं एवं रीतिरिवाजों, आदिवासी बस्तियों उनके पहनावे, आभूषण, खानपान व परंपरागत वाद्य संस्कृति सहित वन्यजीवा,ें वनस्पतियों व मेलघाट के प्राकृतिक संसाधनों की पहचान कराने वाले साहित्य एवं छायाचित्र जानकारी सहित संग्रहालय में उपलब्ध कराए गए थे और इस संग्रहालय में वन्यजीवों की ट्रॉफी भी रखी गई थी.

* वन्यजीवों की ट्रॉफी गायब
मसाला भरकर रासायनिक प्रक्रिया कर तैयार की गई वन्यजीवों की ट्रॉफी में दो वयस्क बाघों की ट्रॉफी का समावेश था. जिसमें से एक नर व एक मादा बाघ की ट्रॉफी थी. इसके अलावा बायसन, भालू, लोमडी, चांदी भालू व जंगली कुत्ते की भी ट्रॉफी इस संग्रहालय में रखी गई थी. जिनमें से अधिकांश ट्रॉफियां देखरेख के अभाव में खराब होकर नष्ट हो गई है और कुछ ट्राफियां गायब हो गई है.

* कई साल से नहीं हुई रासायनिक प्रक्रिया
वन्यजीवों की इस ट्रॉफी पर प्रत्येक दो वर्ष में रासायनिक प्रक्रिया करते हुए उनकी देखरेख करनी चाहिए. परंतु वर्ष 2004 के बाद इन ट्रॉफियों पर रासायनिक प्रक्रिया भी नहीं की गई और इन ट्रॉफियों की देखरेख नहीं की गई.

* दीमक खा गए ट्रॉफी
वर्ष 2004 से उपेक्षित रहने वाली इन ट्रॉफियों को दीमक लग गई है और दीमक व कीडों ने इन ट्रॉफियों को अंदर से खोकला कर दिया है. जिसकी वजह से कई ट्रॉफियां जगह पर ही गलकर गिर गई और कुछ के तो अवशेष भी नहीं बचे है. इसके अलावा कई सडीगली और खराब हो चुकी ट्रॉफी सेमाडोह में ही इधर-उधर पडी हुई है. जिनकी ओर किसी का कोई ध्यान नहीं है.

* चंद्रपूर भी भेजने लायक नहीं ट्रॉफी
राज्य में अलग-अलग स्थानों पर रहने वाली वन्यजीवों की ट्रॉफी को एकत्रित करते हुए एक ही स्थान पर चंद्रपुर में इकठ्ठा करने का फरमान राज्य के वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार द्वारा जारी किया गया था. परंतु यह ट्रॉफिया कुछ इस तरह से खराब हो गई है कि, उन्हें चंद्रपुर भी नहीं भेजा जा सकता.

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