अमरावतीमहाराष्ट्र

मानसिक रूप से की जानेवाली सेवा ही भगवत सेवा है

प.पू गोस्वामी विशालकुमार महोदय का प्रतिपादन

* गोवर्धननाथ हवेली में तीन दिवसीय वचनामृत का आयोजन
अमरावती/ दि. 10– चित्त का इष्ट में तन्मय होना ही सेवा का स्वरूप है. भक्तिरस के आचार्यो ने भगवत सेवा के तीन प्रकार बताए है. जिसमें तनुजा अर्थात तन द्बारा की जानेवाली सेवा, वित्तजा अर्थात द्रव द्बारा एवं मानसी अर्थात मानसिक रूप से की जानेवाली सेवा ही भगवत सेवा है, ऐसा प्रतिपादन प.पू. 1008 विशालकुमार महोदय ने व्यक्त किया, वे स्थानीय रॉयली प्लॉट स्थित गोवर्धननाथ हवेली द्बारा आयोजित तीन दिवसीय वचनामृत तनुवित्तजा सेवा प्रकार में पहले दिन संबोधित कर रहे थे.
गोस्वामी विशालकुमार महोदय ने तनुवित्तजा सेवा के संदर्भ में उपस्थितों को जानकारी देेते हुए कहा कि किसी बाह्य साधन के बिना केवल मन में भावों द्बारा की जानेवाली इष्ट परिचर्या मानसी सेवा कहलाती है. इसमें इष्ट सेवक एवं सेवा- सामग्री सभी भाव द्बारा निर्मित होते है. वृंदावनीय रसोपासना विशुध्द मानसी उपासना है. जिसमें नीरस कर्मकांड के लिए कोई स्थान नहीं है. इसमें इष्ट- सेवा की तीन स्थितियां मान्य है. प्रकट सेवा, मानसी सेवा और नित्य- विहार प्रकट सेवा में मनोयोग बिना भी सेवा- कार्य चल सकता है. किंतु मानसी सेवा अत्यंत सुक्ष्म एवं भावगम्य हैं. मन स्वभावत: अति चंचल एवं विषयानुगामी है. भक्तजन प्राय: भगवान की अनुपम रूप- माधुरी का पान करके चंचल चित्त को अभ्यास एवं वैराग्य द्बारा स्थिर करते हैं. चंचल तो मन की गति है. अली रूप सुमन वन में फिरीए कुंडल लोल कपोलनि में अलकनि झलकनी चित्त में धरिए.
प.पू. विशालकुमार महोदय ने आगे बताया कि एक बार स्वामी अग्रदास सीता- राम की मानसी- सेवा में तल्लीन थे. श्रीनाभा उन्हें पंखा झल रहे थे. तभी अग्रदास का कोई शिष्य जहाज पर समुद्र की यात्रा करते भवर में फंस गया. इससे उनकी सेवा में विघ्न पडता देख श्रीनाभा ने पंखे की वायु के प्रवाह से जहाज को संकट से उबारकर गुरूदेव को पुन: मानसी- सेवा में लगा दिया. इस प्रकार राधाकुंड निवासी श्री रघुनाथदास गोस्वामी को श्री राधा-कृष्ण की मानसी- सेवा सिध्द थी. वह प्रतिदिन केवल दोना भर छाछ ही लेते. एक बार उनके अस्वस्थ होने पर अनुभवी वैद्य ब्रांदास नाडी- परीक्षण कर बताया कि इन्होंने दूध- भात खाया है. तब लोगों का कौतूहल शांत करते हुए उन्होंने स्वयं रहस्योद्घाटन किया मानसी- सेवा में प्रिया- प्रियतम को दूध- भात का भोग लगाकर उनके आग्रह से प्रसाद ग्रहण किया था. मानसी- सेवा में वन-विहार रास-लीला आदि दुर्लभ लीलाओं का भी रसास्वादन संभव है. इस अवसर पर बडी संख्या में महिला व पुरूष उपस्थित थे.

 

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