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सेवा सर्वोपरि है मूलमंत्र- डॉ. पोतदार

5 हजार से अधिक सिजेरियन

* वरूड ग्रामीण अस्पताल में दो दशकों की सेवा
* पहले बालासाहब ठाकरे स्वास्थ्य रत्न पुरस्कार
वरूड/ दि. 23- किसान पिता की ख्वाहिश पूर्ण करने बडी मेहनत और लगन से एमबीबीएस उत्तीर्ण कर गत 20 वर्षो से वरूड ग्रामीण अस्पताल में गरीब मरीजों की सेवा कर रहे दिव्यांग डॉ. प्रमोद पोतदार ने अमरावती मंडल से बातचीत में कहा कि सेवा को ही जीवन का मूलमंत्र माना. अनेक गरीब, असहाय मरीजों की भरसक सहायता का प्रयत्न किया. कदाचित उसी का परिणाम है कि आज बालासाहब ठाकरे स्वास्थ्य रत्न से सम्मान हो रहा है. यह सम्मान और बेहतर तथा समर्पण से कार्य हेतु प्रेरित करेगा. उसी प्रकार सम्मान में मेरे सभी सहयोगियों का साथ-सहयोग महत्वपूर्ण है. अपितु उन्हीं की बदौलत कदाचित यह अवार्ड मिला है. यह कहते हुए डॉ. पोतदार ने सिस्टर वर्षा दारोकर, डॉ. मानकर, डॉ. शेलके, डॉ. पंकज बिजवे, डॉ. प्रवीण चौधरी आदि अनेक नामों का उल्लेख कर कहा कि सूची बहुत बडी है. सभी के योगदान से ही यह संभव हो सका है.
* पेठ मांगरूली के किसान पुत्र
डॉ. पोतदार के पिता उध्दवराव वरूड तहसील के पेठ मांगरूली के थे और खेतीबाडी करते थे. उध्दवराव ने ही पुत्र प्रमोद को चिकित्सक बनने प्रेरित किया. उध्दवराव खेतों में बडी मेहनत करते. पिता की मेहनत और लगन देख पुत्र प्रमोद ने पिता का स्वप्न पूर्ण करने रात दिन एक कर दिया और वे चिकित्सक बने. डॉ. प्रमोद ने बताया कि उनकी तबियत लडकपन दौरान काफी बिगड गई थी. फिर पोलियो ने उनके पैर जकड दिए. जिससे परिचितों ने चिंता जताई. किंतु पिता ने चिकित्सक बनकर रूग्णों की सेवा का मूलमंत्र दिया. उसे जीवन में अपनाया. गत दो दशकों से वे वरूड ग्रामीण अस्पताल में बतौर वैद्यकीय अधिकारी के रूप में कार्यरत है. अपितु कहना चाहिए सेवारत है.
* 5 हजार से अधिक सिजेरियन
डॉ. पोतदार ने कहा कि चिकित्सा पेशा सेवा और तत्परता का है. सदैव तत्पर रहना पडता है. ग्रामीण क्षेत्र होने से मरीज को लेकर आए लोग काफी विचलित रहते हैं. उन्हें समझाते, धीरज बंधाते उपचार करना पडता हैं. अब तक 5 हजार सिजेरियन सर्जरी वे कर चुके है. ऐसे ही गर्भ थैली के 1 हजार से अधिक ऑपरेशन भी उन्होंने किए है. आसपास के गांवों में लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का भी प्रयत्न डॉ. पोतदार एवं उनकी टीम ने किया है. तत्परता का आलम यह रहा कि समय पर अकोला- अमरावती से भी सर्जन कोे आमंत्रित कर मरीजों का उपचार किया और उन्हें असमय काल का ग्रास बनने से बचाया. अकोला से डॉ. श्याम सिरसाम, अमरावती से डॉ. प्रवीण बिजवे और अन्य मरीजों की खातिर वरूड चिकित्सा के लिए दौडे हैं.
26 हजार यूनिट रक्त एकत्र
दोनों पैरों से पोलियोग्रस्त होने के बावजूद डॉ. पोतदार ने बडे प्रेरक कार्य किए हैं. इसी कडी में उन्होंने वरूड और मोर्शी में रक्तदाता संघ बनाकर गांव-गांव में रक्तदान शिविर आयोजित कर हजारों यूनिट रक्त एकत्र किया जो मरीजों के काम आया. उन्होंने बताया कि गांवों में किसी की तेरहवीं पर और किसी के विवाह अवसर पर रक्तदान शिविर के आयोजन उनकी पहल से किए गए. लोगों ने हंसीखुशी रक्तदान शिविर में सहभाग किया. आंकडा पूछने पर डॉ. पोतदार ने अब तक 26 हजार से अधिक शीशी खून एकत्र किए जाने की बात कही.
* अपने साथियों पर गर्व
डॉ. पोतदार वरूड ग्रामीण अस्पताल के गत दो दशकों से महत्वपूर्ण अंग बने हैं. रात बे रात डिलेवरी सहित सडक हादसे या अन्य घटना में घायलों का उपचार किया है. उनकी सिस्टर्स अर्थात नर्सेस और ऑफीसर्स की टीम बडे समर्पण भाव से कार्य करते हैं. उन्होंने नाम भी गिनाए और यह भी कहा कि सूची बहुत लंबी है.
* सेवा का ब्यौरा 50 पन्नों का
डॉ. पोतदार की तरफ से साथी चिकित्सकों और अन्य की पहल से राज्य शासन को स्वास्थ्य रत्न अवार्ड के लिए आवेदन किया गया. आवेदन के साथ उनके द्बारा किए गए कामों का विवरण भेजा गया. यह विवरण 50 पेज से अधिक रहा. जिससे कह सकते हैं कि कामों की संख्या और तत्परता को देखते ही शासन ने सर्वप्रथम उनके नाम की घोषणा की.

* पुत्र को भी वैद्यकीय क्षेत्र में ला रहे
डॉ. पोतदार ने अपने किसान पिता उध्दवराव की चाहत और पहल से वैद्यकीय क्षेत्र चुना. अब उनके इकलौते बेटे अर्जुन भी वैद्यकीय क्षेत्र को अपना रहे हैं. फिलहाल चेन्नई में एमबीबीएस की प्रथम वर्ष की पढाई कर रहे हैं. मां लीलादेवी और पत्नी मनीषा हैं.

 

 

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