अमरावती-/दि.29 हॉकी के जादूगर कहे जाते मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन रहने के चलते प्रति वर्ष 29 अगस्त को राष्ट्रीय क्रीडा दिवस के तौर पर मनाया जाता है और इस दिन के उपलक्ष्य में क्रीडा विभाग द्वारा विविध कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद क्रीडा स्पर्धाओं के लिहाज से महत्वपूर्ण रहनेवाली शालेय क्रीडा स्पर्धाओं की नीति तय करने के लिए सरकार के पास समय ही नहीं है. जिसके चलते विगत लंबे समय से शालेय क्रीडा नीति का मामला अधर में अटका पडा है.
एक ओर तो किसी क्रीडा प्रकार में सफलता प्राप्त करनेवाले खिलाडी की तत्कालीक तौर पर वाह-वाही की जाती है, वही दूसरी ओर शालेय क्रीडा स्पर्धा की नीति तय नहीं करते हुए उदयोन्मुख खिलाडियों को हतोत्साहित किया जा रहा है. स्कुल गेम फेडरेशन ऑफ इंडिया में दोफाड हो गई है और अब एक ही नाम से दो संगठन अस्तित्व में आ गये है. जिनके बीच अपनी मान्यता को लेकर कानूनी लडाई भी चल रही है. जिसका सीधा नुकसान खिलाडियों को भुगतना पड रहा है. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, 140 करोड की जनसंख्या रहनेवाले भारत देश में क्रीडा साहित्य व सुविधाओं के नाम पर करोडों रूपये का खर्च किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद ओलम्पिक स्पर्धाओं में एक अदद सुवर्णपदक के लिए कई दशकों का इंतजार करना पडता है. हॉकी के जादूगर कहे जाते मेजर ध्यानचंद ने कई दशक पूर्व भारत को हॉकी के खेल में हैट्रिक दिलवाई थी. लेकिन आजादी के बाद से लेकर अब तक सरकारों द्वारा खेलों और खिलाडियों को प्रोत्साहित करने हेतु कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये गये. जिसकी वजह से क्रीडा क्षेत्र में लगातार गिरावट देखी जा रही है.
विगत दो वर्षों से कोविड की महामारी के खतरे को देखते हुए शालेय क्रीडा स्पर्धा नहीं हो पायी. वही इस वर्ष शालेय क्रीडा स्पर्धाओं का आयोजन करने की दृष्टि से मंत्रालय में संबंधित विभाग के पास प्रस्ताव भेजा गया है. अगले सप्ताह इस संदर्भ में कुछ सकारात्मक निर्णय होंगे, ऐसी अपेक्षा है.
– ओमप्रकाश बकोरिया
आयुक्त, क्रीडा व युवक सेवा संचालनालय
शरीर स्वस्थ रहे इस हेतु अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को मैदान पर आने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर खिलाडी तैयार कर सकने के पहले चरण में शालेय क्रीडा स्पर्धाओें का अब तक कार्यक्रम ही घोषित नहीं हुआ है. जिसके चलते पूरी प्रक्रिया पर ब्रेक लग सकता है.
– प्रा. अतुल पाटील
सहसचिव, महाराष्ट्र राज्य एथलेटिक्स संगठन
राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर खिलाडी तैयार करने के सबसे बडे साधन के तौर पर शालेय क्रीडा स्पर्धाओं को देखा जाता है. विगत अनेक वर्षों से प्रशिक्षण लेनेवाले खिलाडी इससे वंचित न रहे, इस हेतु आवश्यक प्रयास जारी है.
– वर्षा सालवी
जिला क्रीडा अधिकारी, अमरावती.
जारी सत्र में शालेय क्रीडा स्पर्धाएं नहीं हुई, तो इसके दुष्परिणाम क्रीडा क्षेत्र को आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भुगतने पड सकते है. इसमें कोई संदेह नहीं है. उदयोन्मुख खिलाडियों के लिए दो वर्ष की कालावधी काफी अधिक होती है. ऐसे में अब क्रीडा क्षेत्र ने अपने काम की रफ्तार को बढाना चाहिए.
– शिवदत्त ढवले
राज्य सचिव, महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षक महामंडल