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बहुत स्पष्ट बोलते हैं शिल्पकार सातारकर

50 लाख में बनी तांबे की शिवाजी प्रतिमा

* ढाई टन वजनी, साढे बारह फीट ऊंची अश्वारुढ
* शिवटेकडी पर हुई स्थापित
अमरावती/दि.2- हाल ही में 29 नवंबर को शिवटेकडी पर स्थापित छत्रपति शिवाजी महाराज की तांबे की प्रतिमा के शिल्पकार साहबराव राजारामजी सातारकर अमरावती के ही सिद्धहस्त कलाकार हैं. उनके व्दारा बनाई गई प्रतिमाएं देशभर में शान से स्थापित की गई हैं. अमेरिका के लॉसएंजिल्स में भी सातारकर व्दारा निर्मित मोहनजोदडो शैली की नर्तकी की प्रतिमा लगाई गई हैं और तो और अपने नाम के अनुरुप साहबी ठाठ रखने वाले सातारकर बहुत साफ-साफ बोलते हैं. बेटा विश्वजीत पश्चात उनकी तीसरी पीढी भी इस शिल्पकला में अब उनका सहयोग कर रही हैं. अर्थात पौत्र आर्य सातारकर भी शिल्पकला में महारत रखता हैं. कुछ दिन पहले ही सातारकर ने 12 फीट की शिवाजी प्रतिमा मुंबई के पास मीरा भायंदर भेजी. उससे पहले नांदेड में भी ऐसी ही घोडे पर सवार छत्रपति की प्रतिमा स्थापित हुई हैं. सातारकर ने आज दोपहर अपने रुख्मिणी नगर स्थित निवास ‘शिल्पज्’ में अमरावती मंडल से विशेष बातचीत की. उल्लेखनीय है कि शिवटेकडी पर शिवाजी महाराज की नई अश्वारुढ प्रतिमा की स्थापना शिवसेना नेता दिनेश बूब के प्रयासों से हुई हैं. बूब ने लगातार प्रयत्न कर शिवटेकडी की कायापलट में भी बडा और श्लाघनीय योगदान किया हैं.

* पुराने पुतले में 151 दरारें
सातारकर ने बतलाया कि, शिवटेकडी पर पहले लगी महाराज की प्रतिमा करीब 45-50 वर्ष पुरानी होकर उसमें जगह-जगह दरारें पड गई थी. जिसके कारण उसके कभी भी ढह जाने का खतरा हो गया था. यह प्रतिमा उन्होंने खुद देखी और पाया कि, गिनकर 151 दरारें आ गई हैं. इसीलिए उसे बदलने का सुझाव उन्होंने शिवटेकडी समिति और मनपा की विशेष कमेटी को दिया था. अच्छा हुआ कि प्रतिमा और उसका चबूतरा पूर्ण रुप से बदल दिया गया.
* ढाई टन वजनी प्रतिमा
सातारकर के मुताबिक नई प्रतिमा शुद्ध तांबे से निर्मित हैं. उसका अंदाजन खर्च 50 लाख हैं. वजन ढाई टन से अधिक हैं. कोरोनाकाल के कारण उसके निर्माण में समय लगा. सिद्धहस्त शिल्पकार ने दावे के साथ कहा कि, प्रतिमा निर्माण में कोई मिलावट नहीं हैं और न ही इसके लिए उन्होंने किसी को भी कोई चिरीमिरी दी हैं. इसी तरह का स्पष्ट जवाब उन्होंने दो रोज पहले पुतले के साथ फोटो ले रहे एक बडे जनप्रतिनिधि को भी दिया.
* कितने दिन टिकेगा
ेपुतले के टिकाऊपन को लेकर पूछे गए प्रश्न पर सातारकर ने कहा कि, खालीस तांबे का बना छत्रपति का पुतला निश्चित ही बरसों बरस ऐसा ही रहेगा. फिर भी जलवायु पर काफी कुछ निर्भर रहता हैं. वातावरण अच्छा रहने पर कई दशकों तक पुतला सही सलामत रहेगा. उसी प्रकार उसकी बनावट ऐसी है कि अचानक धराशाही नहीं होगा.
* देश-विदेश में भेजे पुतले
अपने पुत्र और पौत्र को भी शिल्पकला क्षेत्र में बढावा देने वाले सातारकर ने बताया कि, उनका काम लगभग 50 वर्षो से चल रहा हैं. 80 बरस के सातारकर आज भी फिट है और अपने काम-कला से बडा लगाव रखते हैं. उनके बनाए पुतले भारत के अनेक शहरों में अमरावती का नाम बडा कर रहे हैं. अमेरिका और दक्षिण अफ्रिका में भी सातारकर की कुछ कृतियां भेजी गई हैं.

* वीपी सिंह के हस्ते स्वर्णपदक-
शिवाजी शिक्षा संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष दादासाहब कालमेघ की पहल से नागपुर में बरसों पहले भाउसाहब पंजाबराव देशमुख की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई. इस प्रतिमा की बेजोड कारीगरी की प्रशंसा तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने की थी. वीपी सिंह के हस्ते अमरावती के शिल्पकार का गोल्ड मैडल देकर सम्मान भी हुआ.
* पत्थर लगाना बंद करें
सातारकर ने अमरावती के सांस्कृतिक भवन और अन्य संस्थाओं में सुंदर, आकर्षक म्यूरल्स भी बनाए हैं. उन्होंने कहा कि, शिल्पकार को समय और थोडी स्वतंत्रता मिले तो कालजयी कृति बनती हैं. राजनेताओं से बडी साफगोई रखने वाले सातरकर ने तमन्ना जताई कि प्रतिमाओं के साथ लगने वाले नाम के पत्थर लगाना बंद कर देना चाहिए.

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