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शिंदे गुट ही है असली शिवसेना

हम बालासाहब के विचारों पर चलने वाले लोग है

* हमारा भाजपा के साथ है प्राकृतिक गठबंधन
* मविआ में जाना उद्धव ठाकरे की सबसे बडी भूल
* हमें भी मविआ के साथ जाने से हुआ बडा नुकसान
* पूर्व शिक्षक विधायक श्रीकांत देशपांडे का कथन
अमरावती/दि.8- सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहब की शिवसेना पार्टी ही असली शिवसेना हैं.क्योंकि यह शिवसेना बालासाहब के विचारों को लेकर आगे चल रही हैं. साथ ही इस शिवसेना व भाजपा के साथ रहने वाला गठबंधन पूरी तरह से नैचरल यानी प्राकृतिक हैैं. यही वजह है कि हम इस युती के साथ हैं. इस आशय का प्रतिपादन अमरावती संभाग के पूर्व शिक्षक विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने किया. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, भाजपा को छोडकर महाविकास आघाडी में शामिल होना शिवसेना व उद्धव ठाकरे की सबसे बडी भूल थी. जिसका खामियाजा शिवसेना से जुडे लोगों को बडे पैमाने पर उठाना पडा.
दै. अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए पूर्व शिक्षक विधायक श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, जबसे शिवसेना राज्य की राजनीतिक में सक्रिय हुई है, तब से शिवसेना और भाजपा की युती रही हैं और इन दोनो दलों की राजनीतिक विचारधारा भी आपस में मिलती रही हैं. पिछला चुनाव भी शिवसेना ने हमेशा की तरह भाजपा के साथ मिलकर लडा था और राज्य की जनता ने युती के पक्ष में जनादेश दिया था, लेकिन शिवसेना के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जनादेश की अनदेखी करते हुए भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोडा और कांगे्रस व राकांपा के साथ महाविकास आघाडी में शामिल होते हुए केवल सत्ता व सीएम पद के लिए बेमेल गठबंधन किया. जिसका खामियाजा शिवसेना व पूरे राज्य में उठाना पडा और शिवसेना के साथ जुडे लोगो को भी इसकी वजह से काफी नुकसान व अपमान का सामना करना पडा. पूर्व विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे के मुताबिक उनके मन में और रग-रग में बालासाहब ठाकरे के विचार बसे हुए हैं. यही वजह है कि जब बालासाहब ठाकरे के विचारों और मुद्दें को लेकर एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से अलग होकर नई राह पकडी, तो उन्होंने शिंदे के साथ चलने का फैसला लिया.
राज्य में महाविकास आघाडी की ढाई साल चली सरकार और ढाई वर्षो तक शिवसेना के पास रहे मुख्यमंत्री पद को लेकर पूछे गए सवाल पर पूर्व विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, उद्धव ठाकरे ने कांगे्रस व राकांपा के साथ रहकर अपने खुद के और राज्य के ढाई साल बर्बाद किए हैं, जिसे पार्टी का काफी नुकसान हुआ हैं. इसका उदाहरण देते हुए प्रा. देशपांडे ने बताया कि, उन्होंने वर्ष 2015 में शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लडा था और उस चुनाव में जीत हासिल की. वहीं इसके बाद वर्ष 2021 का चुनाव उन्होंने शिवसेना के टिकट पर महाविकास आघाडी प्रत्याशी के तौर पर लडा. यह उनके जीवन की सबसे बडी भूल साबित हुई, क्योंकि महाविकास आघाडी में शामिल रहने के बावजूद कांग्रेस व राकांपा के लोगों ने उन्हें हराने का काम किया. उनके खिलाफ कांगे्रस का एक बागी प्रत्याशी मैदान में था. जिसका प्रचार खुद कांग्रेस के मौजूदा जिलाध्यक्ष कर रहे थे, जबकि जिलाध्यक्षने बागी प्रत्याशी को मैदान से हटने हेतु विड्राल करने के लिए मनाना चाहिए था. बागी प्रत्याशी ने करीब 1500 के आस-पास वोट हासिल किए और लगभग इतने ही वोटों से उन्हें हार का सामना करना पडा. लगभग यही हाल राष्ट्रवादी कांगे्रस का भी था जब उन्होंने अपने दावेदारी के लिए राकांपा के बडे नेता हर्षवर्धन देशमुख से सहयोग व समर्थन मांगा, तो हर्षवर्धन देशमुख ने महज दो लाइन का एक पत्र जारी किया. जिसमें देशमुख ने कहा कि, वे श्रीकांत देशपांडे के साथ है लेकिन बाकी लोगों पर उनका यह आदेश लागू नहीं होता. ऐसे में उन्हें हर्षवर्धन देशमुख की अध्यक्षता वाले शिवाजी शिक्षा संस्था से कोई सपोट नहीं मिला. ऐसे में उन्हें आज भी लगता है कि अगर वे पिछला चुनाव महाविकास आघाडी के प्रत्याशी के बजाए निर्दलिय प्रत्याशी के तौर पर लडते तो शायद उन्हें हार का सामना नहीं करना पडता.
* शिक्षकों की समस्या है अलग, इसमें राजनीती न हो
इस बातचीत में पूर्व शिक्षक विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने यह भी कहा कि, संभाग के शिक्षकों की समस्याएं काफी अलग हैं. जिन्हें हल करने को लेकर किसी तरह की कोई राजनीती नहीं होनी चाहिए और शिक्षक विधायक पद के चुनाव को भी कुछ अलग ढंग से देखा जाना चाहिए. लेकिन जब से इस क्षेत्र में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप बढा है तब से शिक्षकों की समस्याएं काफी पीछे छूट गई हैं और इस क्षेत्र में भी राजनीतिक हावी होने लगी है, जो क्षेत्र के शैक्षणिक भविष्य के लिहाज से ठिक नहीं हैं.

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