तीन दिनों तक रखा गया था तिवसा पुलिस की कस्टडी में
तिवसा-/दि.13 भारतीय स्वाधीनता संग्राम में 9 अगस्त 1942 का बेहद अनन्य साधारण महत्व है. इस दिन महात्मा गांधी ने अंग्रेज सरकार को ‘चले जाओ’ की चेतावनी देते हुए ‘भारत छोडो’ आंदोलन शुरू किया था. जिसके तहत देश में जगह-जगह पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए थे. जिन्हें खत्म करने हेतु ब्रिटीश सरकार व पुलिस द्वारा दमनकारी नीतियों का सहारा लिया जा रहा था. इन आंदोलनों से तिवसा क्षेत्र भी अछूता नहीं था. जहां पर देशभक्त शेषराव बोके ने ब्रिटीश सत्ता के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करते हुए गांववासियों को अपने साथ लेकर तिवसा पुलिस चौकी को जला दिया था. साथ ही सरकारी दस्तावेजों को भी जलाकर खाक कर दिया था. जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार करते हुए तीन दिनोें तक तिवसा पुलिस थाने की कस्टडी में रखा गया था.
उल्लेखनीय है कि, इससे पहले भारतीयों द्वारा कई वर्षों तक शांति व अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए अपनी आजादी की मांग की जा रही थी और वर्ष 1942 में पहली बार क्रांति की भाषा का प्रयोग करने के साथ-साथ क्रांति के तौर-तरीकों को अमल में भी लाया गया था. चूंकि यह क्रांति 9 अगस्त 1942 से शुरू हुई थी. ऐसे में 9 अगस्त को क्रांति दिवस भी कहा जाता है. तिवसा तहसील के वरखेड निवासी शेषराव रामराव बोके पर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के क्रांतिकारी विचारों का विशेष प्रभाव था. जिससे प्रेरित होकर शेषराव बोके ने चलेजाव आंदोलन में सक्रिय सहभाग लिया था. यूं तो ब्रिटीश राज्य के दौरान शेषराव बोके वरखेड गांव के मूलकी पाटील यानी पुलिस पाटील थे. उस समय यह पद वंशपरंपरागत प्रदान किया जाता था और ब्रिटीश राज के दौरान गांव स्तर पर कानून व व्यवस्था की स्थिति के साथ-साथ राजस्व से संबंधित कामकाज की देखरेख का जिम्मा मूलकी पाटील पर हुआ करता था. उस समय मूलकी पाटील अकेले ही गांव स्तर पर सरपंच, ग्रामसेवक, तलाठी, कृषि सहायक व पुलिस का काम किया करता था. जिससे संबंधित अधिकार मूलकी पाटील को ब्रिटीश सरकार द्वारा प्रदान किया गया था. लेकिन 9 अगस्त 1942 को तमाम भारतीयोें ने अपनी-अपनी सुख-सुविधाओं को छोडकर ब्रिटीश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू की. जिसका प्रभाव दिल्ली से लेकर गली तक दिखाई दिया. ऐसे में ब्रिटीश राज के लिए मूलकी पाटील पद की जिम्मेदारी संभालनेवाले शेषराव बोके ने भी ब्रिटीश सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद की. ऐसे में उन पर बगावत का आरोप लगाया गया था.
पश्चात आजादी मिलने के बाद शेषराव बोके जनपद काउंसिलर चुने गये और इस पद पर रहते समय उन्होंने विविध समाजोपयोगी व विकासात्मक कार्य किये. जिसमें से अमरावती-नागपुर महामार्ग से वरखेड गांव में जानेवाले रास्ते के काम का आज भी उल्लेख किया जाता है. सन 1911 में जन्में शेषराव बोके नामक आजादी के इस दैदिप्यमान सितारे का अस्त वर्ष 1988 में हुआ. स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का झंडा बुलंद करनेवाले शेषराव बोके के कार्यों की प्रत्यक्ष साक्षीदार रहनेवाली उनकी 92 वर्षीय पत्नी सुलोचना बोके ने अपने पति की शौर्यगाथा के बारे में जानकारी दी.
राष्ट्रसंत की वजह से टली थी जेल
क्रांति की मशाल हाथ में लेकर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के चलते शेषराव बोके को गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्हें जेल में डालने की पूरी तैयारी भी कर ली गई थी. लेकिन उनका गांव में रहना बेहद जरूरी था. ऐसे में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने मध्यस्थता करते हुए महज तीन दिन के भीतर शेषराव बोके की रिहाई करवायी.
छह माह के लिए मूलकी पाटील पद से हुआ था निलंबन
शेषराव बोके ने गांववासियों ने अपने साथ लेकर ब्रिटीश सत्ता को सीधी चुनौती दी थी तथा अपने गांव एवं आसपास के परिसर में रहनेवाली ब्रिटीश पुलिस की छावणियों में जमकर तोडफोड मचायी. साथ ही उनके सभी दस्तावेज भी जला दिये. जिसके लिए शेषराव बोके को गिरफ्तार करने के साथ ही उन्हें मूलकी पाटील पद से छह माह के लिए निलंबीत कर दिया गया था.