सितंबर में होंगे शिवाजी शिक्षा संस्था के चुनाव
पंचवार्षिक चुनाव के लिए बिछने लगी राजनीतिक बिसात
* अध्यक्ष पद को लेकर देशमुख व ठाकरे गुट हुए आमने-सामने
* आरोप-प्रत्यारोप का दौर हुआ तेज
अमरावती/दि.13– विदर्भ क्षेत्र की सबसे बडी शिक्षा संस्था रहनेवाली और 9 जिलों में अपना प्रभाव रखनेवाली श्री शिवाजी शिक्षा संस्था के पंचवार्षिक चुनाव आगामी सितंबर माह में होने जा रहे है. यद्यपि अब तक चुनाव की तारीखों को लेकर कोई अधिकृत घोषणा नहीं हुई है, लेकिन संभावना जतायी जा रही है कि, 11 सितंबर को शिवाजी शिक्षा संस्था की नई कार्यकारिणी व पदाधिकारियों का चयन करने हेतु मतदान करवाया जा सकता है. ऐसे में अब श्री शिवाजी शिक्षा संस्था की सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक बिसातें बिछनी तेज हो गई है. वहीं सत्ता संघर्ष की वजह से आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी तेज हो गया है. उल्लेखनीय है कि, शिक्षा महर्षि कहे जाते स्व. डॉ. पंजाबराव उर्फ भाउसाहब देशमुख द्वारा वर्ष 1932 में श्री शिवाजी शिक्षा संस्था की स्थापना की थी और वे अगले करीब 32 वर्षों तक इस संस्था के अध्यक्ष रहे. इसके बाद बाबासाहब धारपलकर, रावसाहब इंगोले, दादासाहब कालमेघ, वसंतराव धोत्रे तथा एड. अरूण शेलके ने दस-दस वर्षों तक अध्यक्ष पद की कमान संभाली, वहीं विगत पांच वर्षों से हर्षवर्धन देशमुख इस संस्था के अध्यक्ष है. 90 वर्षों का इतिहास रहनेवाली श्री शिवाजी शिक्षा संस्था द्वारा विदर्भ क्षेत्र के 9 जिलों में 315 स्कुलों व कॉलेजों का संचालन किया जाता है. जिनमें करीब डेढ लाख विद्यार्थी संख्या रहने के साथ ही 10 हजार कर्मचारी है. इसके साथ ही करीब 600 करोड रूपये का सालाना बजट रहनेवाली श्री शिवाजी शिक्षा संस्था के पास इन सभी 9 जिलों में करीब 1 हजार एकड जमीन है. जिन पर विभिन्न शैक्षणिक संस्थान बने हुए है और काफी सारी जमीन खाली भी पडी है. इससे समझा जा सकता है कि, श्री शिवाजी शिक्षा संस्था अपने आप में मंत्रालय के किसी एक महकमे की हैसियत रखती है और इसका अध्यक्ष बनना किसी मंत्री होने के बराबर होता है. ऐसे में इस संस्था के पंचवार्षिक चुनाव को अपने आप ही काफी महत्व प्राप्त हो जाता है.
लेकिन इस समय जिस तरह का राजनीतिक घमासान राज्य की राजनीति में दिखाई दे रहा है, लगभग उसी तरह का दृश्य श्री शिवाजी शिक्षा संस्था में भी दोहराता हुआ दिखाई पड रहा है. जिस तरह से वर्ष 2019 के चुनाव पश्चात मुख्यमंत्री पद को लेकर देवेेंद्र फडणवीस व उध्दव ठाकरे के बीच रार व तकरार पैदा हुई और भाजपा-सेना की युती टूट गई. ठीक उसी तरह का दृश्य इस समय श्री शिवाजी शिक्षा संस्था में भी है. जहां पर पिछली बार एक साथ और एक ही पैनल में रहनेवाले हर्षवर्धन देशमुख और नरेशचंद्र ठाकरे अब अध्यक्ष पद को लेकर एक-दूसरे के आमने-सामने खडे दिखाई दे रहे है और दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.
इसके तहत पिछली बार शिवाजी शिक्षा संस्था के उपाध्यक्ष चुने गये नरेशचंद्र ठाकरे का कहना है कि, उस समय तत्कालीन अध्यक्ष अरूण शेलके के खिलाफ पैनल उतारते समय ही यह तय हो गया था कि, पहले पांच वर्ष के लिए हर्षवर्धन देशमुख अध्यक्ष होंगे. वहीं अगले पांच वर्ष के लिए उन्हें यानी नरेशचंद्र ठाकरे को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया जायेगा, यह बात संस्था के पूर्व अध्यक्ष रह चुके वसंतराव धोत्रे के सामने तय हुई थी. लेकिन अब हर्षवर्धन देशमुख अपनी जुबान से पलट गये है और दुबारा अध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोंक रहे है. जिसे कदापि बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और उनके खिलाफ पैनल उतारा जायेगा.
वहीं दूसरी ओर संस्था के मौजूदा अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख का कहना है कि, नरेशचंद्र ठाकरे पूरी तरह से झूठ बोल रहे है और उनके साथ कभी ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था. बल्कि उन्हें इससे पहले भी बडे सम्मान के साथ संस्था का उपाध्यक्ष बनाया गया था और इस बार भी उनके लिए हमने अपने पैनल में उपाध्यक्ष पद की जगह रिक्त रखी है. वहीं संस्था का अगला अध्यक्ष कौन बनेगा, यह संस्था के आजीवन सदस्यों द्वारा तय किया जायेगा.
* संस्था के आजीवन सदस्यों में से केवल 700 सदस्य है जीवित
बता दें कि, 90 वर्ष पूर्व जब डॉ. पंजाबराव उर्फ भाउसाहब देशमुख ने श्री शिवाजी शिक्षा संस्था की स्थापना की थी, तब इस संस्था में 2 हजार 325 आजीवन सदस्य बनाये गये थे. जिनमें से कई सदस्यों की इस दौरान मौत हो चुकी है. वहीं 90 वर्षों के दौरान संस्था द्वारा कभी भी नये सदस्य नहीं बनाये गये. ऐसे में इस समय संस्था में केवल 700 आजीवन सदस्यों द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग किया जाता है और ये आजीवन सदस्य ही हर पांच साल में एक बार संस्था के नये अध्यक्ष सहित पदाधिकारियों व कार्यकारिणी सदस्यों का चयन करते है. ऐसे में आजीवन सदस्यों का एक-एक वोट बेहद महत्व रखता है. इसके चलते अब यह देखनेवाली बात होगी कि, अगर पिछली बार एक ही पैनल का हिस्सा रहनेवाले हर्षवर्धन देशमुख और नरेशचंद्र ठाकरे अब की बार दो अलग-अलग पैनलों के जरिये एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरते है, तो इनमें से संस्था के आजीवन सदस्य मतदाताओं द्वारा किसके पक्ष में मतदान किया जाता है. वहीं दूसरी ओर इस समय संस्था के आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए संस्था में राजनीतिक सरगर्मियां बेहद तेज हो गई है. जिसके तहत आज संस्था के उपाध्यक्ष रहनेवाले पूर्व विधायक नरेशचंद्र ठाकरे ने अपने समर्थकों की एक बैठक अभियंता भवन में बुलाई है.
* एक ही क्षेत्र से वास्ता रखते है ठाकरे और देशमुख
यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि, इस समय एक-दूसरे को चुनौती दे रहे संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख एवं उपाध्यक्ष नरेशचंद्र ठाकरे मोर्शी-वरूड विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से वास्ता रखते है और दोनों ही इस निर्वाचन क्षेत्र से इससे पहले विधायक भी रह चुके है. इसके अलावा दोनों की राजनीतिक पृष्ठभुमि किसी समय कांग्रेस से जुडी रही. हालांकि बाद में हर्षवर्धन देशमुख कांग्रेस छोडकर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस में चले गये, यानी दोनों की राजनीतिक जमीन और राजनीतिक विचारधारा एक ही है. जिसके चलते दोनों ने श्री शिवाजी शिक्षा संस्था के विगत चुनाव में एक साथ आते हुए तत्कालीन अध्यक्ष अरूण शेलके की सत्ता को चुनौती दी थी और श्री शिवाजी शिक्षा संस्था की कमान अपने हाथ में ली थी. लेकिन अब देशमुख व ठाकरे का गठबंधन बिखराव के मुहाने पर खडा दिखाई दे रहा है और दोनों ही नेता अध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोंकते हुए एक-दूसरे को चुनौती देते नजर आ रहे है.