अमरावती

विद्यापीठ सिनेट चुनाव में अभविप शिक्षा मंच का झटका

चार सीटों पर ही करना पडा समाधान

* आपसी कलह के चलते उम्मीदवारों की हार
अमरावती/दि.28 संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ के हाल ही संपन्न सिनेट चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व शिक्षा मंच ने पंजीकृत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव साथ मिलकर लडा था. लेकिन शिक्षा मंच की ओर से अभविप के प्रत्याशियों को वोट न मिलने के चलते अभावप को इस बार केवल चार सीटों पर ही संतोष करना पडा. शिक्षा मंच की भूमिका हमेशा ही अभविप को कमतर आखने की रही है और इस बार के चुनाव में भी अभविप को शिक्षा मंच की ओर से किसी भी तरह की मदद नहीं मिली. ऐसा चित्र मतगणना के नतिजे घोषित होने के बाद स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा हैं.
बता दें कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व्दारा शुरुआत में पंजीकृत निर्वाचन क्षेत्र की सभी 10 सीटों पर चुनाव लडने का निर्णय लिया गया था. वहीं दूसरी ओर शिक्षा मंच के अध्यक्ष प्रदीप खेडकर ने समानांतर रुप से दूसरा पैनल चुनाव में उतारने की तैयारी शुरु कर दी थी. परंतु वरिष्ठों व्दारा मध्यस्था किए जाने के बाद अभाविप पैनल की कुछ सीटें शिक्षा मंच को देने का निर्णय लिया गया. परंतु इसके बाद शिक्षा मंच ने अभविप के अधिकारों पर अतिक्रमण करते हुए अपने कुछ अतिरिक्त प्रत्याशी अभाविप के पैनल में समाविष्ट किए. विशेष बात यह भी रही की शिक्षा मंच व्दारा पहले से चुनाव लडने हेतु तैयार किए गए कुछ उम्मीदवारों को इसमें जगह नहीं मिलने के चलते उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडने हेतु कहा गया. ऐसी विश्वसनीय जानकारी हैं. इसमें से 3 उम्मीदवारों ने यह चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लडा. जिसका सीधा नुकसान अभाविप को उठाना पडा. विगत चुनाव में अभाविप की ओर से विजयी रहने वाले उत्पल टोंगो को इसका सर्वाधिक नुकसान हुआ. गजानन निचत, प्रशांत कंवर तथा प्रकाश घाटे शिक्षा मंच के उम्मीदवार थे. लेकिन उन्हें अभाविप ने अपने पैनल में शामिल नहीं किया था. जिसे लेकर शिक्षा मंच ने नाराजगी व्यक्त की थी. वहीं अभाविप ने अपने दम पर चुनाव लडते हुए 4 सीटों पर जीत हासिल की. परंतु शिक्षा मंच की दोहरी भूमिका के चलते अभाविप को 3 अन्य सीटों पर हार का सामना करना पडा, अन्यथा 10 में से 7 सीटों पर अभाविप की जीत निश्चित मानी जा रही थी.

* शिक्षा मंच की ‘एकला चलो रे’ भूमिका पड गई भारी
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक शिक्षा मंच के नेतृत्व व्दारा शुरु से ही अभाविप को कमतर आंका जा रहा था और यह उम्मीद की जा रही थी कि अभाविप के प्रत्याशी हमेशा ही शिक्षा मंच के निर्देशों के अनुसार काम करें. उत्पल टोंगो व सुनील मानकर जैसे सदस्य व्यवस्थापन परिषद व सिनेट में रहने के बावजूद भी उन्हें भी उनके रास्ते में बेवजह अडगें डाले गए. साथ ही उन्हें निर्णय प्रक्रिया में भी शामिल नहीं किया गया. कुल मिलाकर शिक्षा मंच के अध्यक्ष प्रदीप खेडकर व्दारा ‘एकला चलो रे’ की भूमिका अपनाई जा रही थी. जिसे भाजपा व अभाविप व्दारा कुछ हद तक ब्रेक लगाया गया हैं. ऐसा चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद स्पष्ट हुआ हैं.

 

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