अमरावतीमहाराष्ट्र

कुंभरवाडा में स्थित है ‘श्री राम पंचायतन ’

अमरावती का अनोखा राम मंदिर

अमरावती / दि.17– विदर्भ ही नहीं अपितु संपूर्ण राज्य श्री राम पंचायतन का दुर्लभ मंदिर परकोटे के भीतर कुंभारवाडा में स्थित है. कुछ दशक पहले इस मंदिर पर संकट आया था. भक्तों ने आपस में चंदा कर और दृढ प्रतिज्ञ रहकर मंदिर का पुनर्निर्माण किया. आज मंदिर अच्छी अवस्था में है. रोज काफी दर्शनार्थी आते हैं. आगामी 22 जनवरी को राम लला प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव उपलक्ष्य यहां दीपोत्सव मनाया जायेगा.

* जीर्णावस्था में था देवालय
लगभग चार दशक पहले महाजनपुरा गेट से पुकार के अंतर पर स्थित मुख्य मार्ग पर श्रीपट्टाभिरामंदिर का बोर्ड दिखाई देने पर वहां का राम मंदिर बडी जर्जर अवस्था में था. मंदिर की जगह भी कुछ लोग खरीदने की फिराक में थे. ऐसे में पुरातन वास्तु को बचाने के लिए कुछ भाविक आगे आए. उन्होंने चंदा एकत्र किया.

* अनेक बातों का होता खुलासा
मंदिर आज बाहर से देखने पर नवीन नजर आता है. किंतु उसके इतिहास में झांकने पर अनेक बातों का खुलासा होता है. संगमरमर के पत्थर पर श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के साथ हनुमान जी की मूर्ति उकेरी हुई है. जिससे इसे श्री राम पंचायतन कहा जाता है. राज्य में ऐसी मूर्ति दुर्लभ होने की जानकारी दी जाती है.

* बापू जी चरक ने बनाया मंदिर
इस मंदिर को चरखा का राम भी कहा जाता है. इसके पीछे की कथा ऐसी है कि यहां करीब 150 वर्ष पहले बापू जी चरक नाम के ज्योतिष रहते थे. उन्होंने यह मंदिर बनवाया था. वे 9 दिन राम नवमी उत्सव मनाते थे. बडा पंडाल डाला जाता था. स्वयं बापूजी कीर्तन करते थे. उत्सव मनाते थे. उन्होंने ही यह परंपरा शुरू की थी.

* केवल 4 हजार रूपए में खरीदा
परिसर के वरिष्ठ लोग बताते है कि लगभग 40 वर्ष पहले मंदिर बेचा जा रहा था. तब राजकुमार क्षीरसागर ने मंदिर को बचाने पहल की. वे मंदिर के चबूतरे पर बैठ गये. उन्होंने 40 लोगों से 4 हजार रूपए एकत्र कर कुंभारवाडा परिसर की महिला से मंदिर खरीदा. उस समय के अब बहुत गिनती के लोग अब परिसर में रहते है. उन्हें उस समय की घटना और लोगों के नाम भी स्मरण नहीं. कुछ नाम बताते है कि नागोराव कलस्कर, अनासाने, देवराव टेकाडे, वसंतराव हिंगे, बलीराम काले, हरिभाउ डोले आदि वह नाम है. जिन्होंने मंदिर का जीर्णोध्दार करवाया.

* राजकुमार ने शुरू की प्रवचन की परंपरा
राजकुमार क्षीरसागर कोष्ठी ने मंदिर में प्रवचन की परंपरा शुरू की. उस समय सिंहासन और मंच बनवाने में भी वे ही आगे आए. 1992 में माणिकराव मोरे ने मंदिर का जोर्णोध्दार करवाया. उन्होंने परिसर के लोगों से सामग्री के रूप में चंदा लिया. उन्होंने किसी से सीमेंट, किसी से लोहा, किसी से रेत, गिट्टी लेकर काम करवाया. अस्थायी जीर्णोध्दार समिति भी स्थापित की गई. अभी विद्यापीठ के पीआरओ डॉ. विलास नांदुरकर इस मंदिर समिति के अध्यक्ष है. यहां राम नवमी उत्सव धूम से मनाया जाता है.

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