* विदर्भ के भक्तगणों का श्रध्दास्थान
टाकरखेडा संभू/दि.19
-भातकुली तहसील के श्रीक्षेत्र वायगांव में महाभारत के इतिहास की गवाही देनेवाले दायी सूंड की दुर्लभ गणेशमूर्ति देखने मिलती है. पांडव अज्ञातवास में थे तब वे चिखलदरा आए थे. लौटते समय इसी मूर्ति के दर्शन कर पांडवों ने अज्ञातवास समाप्त किया था, ऐसा कहा जाता है. यह दुर्लभ गणेश प्रतिमा 600 वर्ष पूर्व खुदाई काम में मिली.जो अब विदर्भ समेत संपूर्ण महाराष्ट्र के लाखों भक्तगणों की श्रध्दास्थान है.
महाराष्ट्र में दो स्थानों पर ही सिध्दि विनायक की दायी सूंड की मूर्ति देखने मिलती हैं. एक मुंबई में और दूसरी भातकुली तहसील के वायगांव में. अमरावती-परतवाडा मार्ग पर इस सिध्दि विनायक का इतिहास महाभारत के विराट पर्व तक है. पांडवों ने इसी मूर्ति के दर्शन कर अज्ञातवास की कालावधि समाप्त की थी. मध्ययुगीन काल मेें यह मूर्ति मूर्तिभंजक आक्रमण के भय से भूमिगत रखी गई थी. गांव के आसपास अचलपुर, दारापुर, खोलापुर आदि गांव मूगलों के कब्जे में थे. पश्चात 600 वर्ष की कालावधि बीत गई. इस कारण मूर्ति का पता नहीं चला था. लोगों को इस गणेश प्रतिमा के साक्षात्कार होते थे. लेकिन मूर्ति का पता नहीं चल रहा था. अचानक खुदाई काम में यह मूर्ति वायगांव में इंगोले के घर में मिली. वह समय सोलहवीं सदी का था. तब से मूर्ति मंदिर में स्थापित की गई. समय बीतने के साथ गणेश भक्तों की भीड बढने से इंगोेले परिवार में भक्तों की सुविधा के लिए ट्रस्ट की स्थापना की. पश्चात यहां मंदिर निर्मित किया गया. इसके लिए इसी परिवार के लोगों ने खेती दी. इसका व्यवस्थापन लालजी पाटिल, सीताराम पाटिल, तुलसीराम पाटिल, शिवराम पाटिल, तुकाराम पाटिल , श्रीराम पाटिल और दयाराम पाटिल के पास हैं. अध्यक्ष के रूप में विलास तुकाराम इंगोले काम संभाल रहे है. पिछले वर्ष में दो दफा यहां उत्सव मनाया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से पूर्णिमा तक गणेशोत्सव में हर दिन 10 दिन तक अन्नदान, ज्ञानदान, भजन, कीर्तन, काकडा और हरिपाठ होता है. पूर्णिमा को धूमधाम के साथ पार्थिव मूर्ति का विजर्सन होता है. गणेश जयंती उत्सव में महाराष्ट्र राज्य के हजारों भक्त यहां दर्शनार्थ पहुंचते है. मध्यप्रदेश समेत अन्य परप्रांतों के भी श्रध्दालु यहां बडी संख्या में दर्शनार्थ आते है.
* सिध्दिविनायक मूर्ति की विशेषता
वायगांव के सिध्दिविनायक की मूर्ति दाये सूंड की हैं. दायी तरफ सिध्दी और बायी तरफ रिध्दी हैं. एकदंत, पैर पर पद्म, शंख चिन्हित हैं. हाथ में माला और मोदक ऐहिक जीवन के समृध्दि का संकेत देते है. उत्तरायण व दक्षिणायण होते हुए सूर्योदय की पहली किरण मूर्ति पर पडती हैं.